Navratra Special: शक्ति आराधना के पर्व को क्यों कहा जाता है नवरात्र, जानें विशेष महत्व
छह मार्च से आरंभ हो रहे हैं चैत्र मास के नवरात्र। प्रकृति परिवर्तन के इन दिनों में निकलती है एक विशेष ऊर्जा।
आगरा, तनु गुप्ता। शक्ति की आराधना का पर्व छह अप्रैल से शुरु होने जा रहा है। नौ दिनों तक चलने वाली देवी की साधना को अलग अलग स्थानों पर नौ देवी, नौ दुर्गे, नवरात्रि, दुर्गा पूजा, नवरात्र जैसे विभिन्न नामों से जाना जाता है। धर्म वैज्ञानिक पंडित वैभव जोशी के अनुसार नौ देवियों के पूजन के विशेष दिनों को नवरात्रि कहना गलत होता है। संस्कृत व्याकरण के अनुसार नवरात्रि कहना त्रुटिपूर्ण है। इसके स्थान पर इसे पुर्लिंग रूप नवरात्र कहना उचित होता है।
पृथ्वी द्वारा सूर्य की परिक्रमा के काल मे एक साल की चार संधियां हैं। उनमें चैत्र और अश्विन माह मे पडऩे वाली संधियों में वर्ष के दो मुख्य नवरात्र पड़ते हैं। इस समय रोगाणु आक्रमण की सर्वाधिक संभावना होती है। दिन और रात के तापमान मे अंतर के कारण, ऋतु संधियों में प्राय: शारीरिक बीमारियां बढ़ती हैं, दरअसल, इस शक्ति साधना के पीछे छुपा व्यावहारिक पक्ष यह है कि नवरात्र का समय मौसम के बदलाव का होता है।
क्या है नवरात्र का अर्थ विज्ञान की नजर में
पंडित वैभव इसका रहस्य बताते हैं? रात्रि शब्द सिद्धि का प्रतीक माना जाता है। भारत के प्राचीन ऋषि मुनियों ने रात्रि को दिन की अपेक्षा अधिक महत्व दिया है। यही कारण है कि दीपावली, होलिका, शिवरात्रि और नवरात्र आदि उत्सवों को रात मे ही मनाने की परंपरा है।
यदि, रात्रि का कोई विशेष रहस्य न होता तो ऐसे उत्सवों को रात्रि न कह कर दिन ही कहा जाता, जैसे नवदिन या शिवदिन।
दिन में आवाज दी जाए तो वह दूर तक नहीं जाएगी, किंतु रात्रि को आवाज दी जाए तो वह बहुत दूर तक जाती है। इसके पीछे ध्वनि प्रदूषण के अलावा एक वैज्ञानिक तथ्य यह भी है कि दिन में सूर्य की किरणें आवाज की तरंगों और रेडियो तरंगों को आगे बढऩे से रोक देती हैं।
मनीषियों ने रात्रि के महत्व को अत्यंत सूक्ष्मता के साथ वैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य में समझने और समझाने का प्रयत्न किया। रात्रि मे प्रकृति के बहुत सारे अवरोध खत्म हो जाते हैं।
इसी वैज्ञानिक सिद्धांत के आधार पर मंत्र जप की विचार तरंगों में भी दिन के समय अवरोध रहता है, इसीलिए ऋषि मुनियों ने रात्रि का महत्व दिन की अपेक्षा बहुत अधिक बताया है।
इसी वजह से साधकगण रात्रि में संकल्प और उच्च अवधारणा के साथ अपने शक्तिशाली विचार तरंगों को वायुमंडल में भेजते हैं तो उनकी कार्यसिद्धि उनके शुभ संकल्प के अनुसार उचित समय और ठीक विधि के अनुसार करने पर अवश्य पूर्ण होती है।
आमतौर पर लोग दिन में ही पूजा पाठ निपटा लेते हैं, जबकि एक साधक रात्रि के महत्व को जानता है और ध्यान, मंत्रजप आदि के लिए रात्रि का समय ही चुनता है।
धर्म वैज्ञानिक पंडित वैभव जोशी
नवरात्र देते हैं स्वस्थ जीवन का संदेश
आयुर्वेद के अनुसार प्रकृति के इस बदलाव से जहां शरीर में वात, पित्त, कफ में दोष पैदा होते हैं, वहीं बाहरी वातावरण में रोगाणु जो अनेक बीमारियों का कारण बनते हैं। सुखी- स्वस्थ जीवन के लिये इनसे बचाव बहुत जरूरी है। पंडित वैभव बताते हैं कि नवरात्र के विशेष काल में देवी उपासना के माध्यम से खान-पान, रहन-सहन और देव स्मरण में अपनाए गए संयम और अनुशासन, तन व मन को शक्ति और ऊर्जा देते हैं।
क्या है नौ का सम्बंध
पंडित वैभव बताते हैं कि हमारे शरीर में आंख, कान, नाक, जीभ, त्वचा, वाक्, मन, बुद्धि, आत्मा ये नौ इंद्रियां हैं। बुध, शुक्र, चंद्र, बृहस्पति, सूर्य, मंगल, केतु, शनि, राहु नौ ग्रह हैं जो हमारे सभी शुभ- अशुभ के कारक होते हैं। ईश, केन, कठ, प्रश्न, मूंडक, मांडूक्य, एतरेय, तैतिरीय, श्वेताश्वतर नौ उपनिषद हैं और शैलपुत्री, ब्रम्हचारिणी, चंद्रघंटा, कुशमांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्री, महागौरी, सिद्धरात्री नौ देवियां हैं।
शरीर और आत्मा के सुचारू रूप से क्रियाशील रखने के लिए नौ द्वारों की शुद्धि का पर्व नौ दिन मनाया जाता है। इनको व्यक्तिगत रूप से महत्व देने के लिए नौ दिन नौ दुर्गाओं के लिए कहे जाते हैं।
नवरात्र का विशेष आहार बदल देता है व्यवहार
धर्म वैज्ञानिक पंडित वैभव जोशी के अनुसार सात्विक आहार से व्रत का पालन करने से शरीर की शुद्धि, साफ सुथरे शरीर से शुद्ध बुद्धि, उत्तम विचारों से उत्तम कर्म, कर्मों से सच्चरित्रता और क्रमश: मन शुद्ध होता है। स्वच्छ मन मंदिर में ही तो ईश्वर की शक्ति का स्थाई निवास होता है।
नवरात्र मे विशेष आहार को अधिक महत्व दिया गया है, जिसका सीधा सीधा संबंध हमारे स्वास्थ और रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिए ही है।
हर आहार में है देवी का रूप
कुट्टू: शैल पुत्री
दूध दही: ब्रह्मचारिणी
चौलाई: चंद्रघंटा
पेठा: कूष्माण्डा
श्यामक चावल: स्कन्दमाता
हरी तरकारी: कात्यायनी
काली मिर्च व तुलसी: कालरात्रि
साबूदाना: महागौरी
आंवला: सिध्दीदात्री
क्या है नवग्रहों से संबंध
नवग्रह में कोई भी ग्रह अनिष्ट फल देने जा रहा हो तो शक्ति उपासना करने से विशेष लाभ मिलता है।
- सूर्य ग्रह के कमजोर रहने पर स्वास्थ्य लाभ के लिए शैलपुत्री की उपासना से लाभ मिलती है।
- चंद्रमा के दुष्प्रभाव को दूर करने के लिए कुष्मांडा देवी की विधि विधान से नवरात्रि मे साधना करें।
- मंगल ग्रह के दुष्प्रभाव से बचने के लिए स्कंदमाता की आराधना।
- बुध ग्रह की शांति तथा अर्थव्यवस्था मे वृद्धि के लिए कात्यायनी देवी की साधना।
- गुरु ग्रह के अनुकूलता के लिए महागौरी की साधना।
- शुक्र के शुभत्व के लिए सिद्धिदात्रि की आराधना करनी चाहिए।
- शनि के दुष्प्रभाव को दूर कर शुभता पाने के लिए कालरात्रि के उपासना सार्थक रहती है।
- राहु की शुभता प्राप्त करने के लिए ब्रह्माचारिणी की उपासना करनी चाहिए।
- केतु के विपरीत प्रभाव को दूर करने के लिए चंद्रघंटा की साधना अनुकूलता देती है।