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श्री कृष्ण के चचेरे भाई का यहां हुआ था जन्म, जानिये आगे चलकर कैसे बने तीर्थंकर

जैन तीर्थ शौरीपुर में श्वेतांबर समाज ने कराया है भव्य मंदिर का निर्माण। चल रहा है भगवान नेमिनाथ की मूर्ति का प्रतिष्ठा महोत्सव।

By Prateek GuptaEdited By: Published: Wed, 13 Feb 2019 03:21 PM (IST)Updated: Wed, 13 Feb 2019 03:21 PM (IST)
श्री कृष्ण के चचेरे भाई का यहां हुआ था जन्म, जानिये आगे चलकर कैसे बने तीर्थंकर
श्री कृष्ण के चचेरे भाई का यहां हुआ था जन्म, जानिये आगे चलकर कैसे बने तीर्थंकर

आगरा, सत्येन्द्र दुबे। कालिंदी के तीर, जंगल के बीच बसे जैन तीर्थ शौरीपुर में इन दिनों भगवान नेमिनाथ के भजन गूंज रहे हैं। सुबह से दोपहर तक प्रतिष्ठा महोत्सव हो रहा है। बीहड़ के जिस जंगल में जानवरों की आवाज सुन कर आसपास के ग्रामीण भयभीत रहते थे। अब उन्हें भक्ति गीत व जयघोष आवाज सुनाई दे रहे हैं।

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तीर्थ शौरीपुर में श्वेतांबर समाज के भव्य मंदिर का निर्माण कराया गया है। उसमें भगवान नेमिनाथ की मूर्ति की प्रतिष्ठा महोत्सव चल रहा है। इस महोत्सव को संपन्न कराने को राष्ट्रीय संत पदम सागर सूरीश्वर महाराज पधारे हुए हैं।

सुबह धर्मसभा और रात्रि में भजन संध्या का आयोजन हो रहा है। पदम सागर सूरीश्वर महाराज के सानिध्य में मंगलवार को यहां अंजनसला प्रतिष्ठा महोत्सव का आयोजन किया गया। जिसमें लघुनंद व्रत, दस दिगपाल पूजन, नवगृह पूजन, अष्ठ पूजन, सोलह विद्यादेवी पूजन, भैरव पूजन कराया गया। इस प्रतिष्ठा व पूजन को इंद्रवर्धन द्वारा विधि विधान से कराया गया।

दिगंबर और श्वेतांबर के हैं यहां मंदिर

बटेश्वर से तीन किमी दूर शौरीपुर जैन समाज का पावन तीर्थ है। बटेश्वर में यमुना किनारे स्थित भगवान शिव के 101 मंदिरों की दीवारों से मुड़ती हुई यमुना इस पावन तीर्थ को छूती हुई बहती है।

माना जाता है कि सहस्त्रों वर्ष पूर्व से समर्थ यमुना तट पर शौरीपुर एक विशाल नगरी थी। इस नगरी को महाराज शूरसेन ने बसाया था। उन्हीं की पीढ़ी में महाराज समुद्र विजय हुए थे। ये दस भाई थे, उसमें छोटे वसुदेव थे, जिनके पुत्र भगवान श्रीकृष्ण थे। कुन्ती और माद्री महाराज विजय की बहनें थीं, जो कुरुवंशी पाण्डु को ब्याहीं थीं।

शौरीपुरा में जैन समाज के 22 वें तीर्थंकर भगवान नेमिनाथ का मंदिर है। भगवान नेमिनाथ भगवान श्री कृष्ण के चचेरे भाई थे और शौरीपुर नेमिनाथ का जन्म स्थान है। पूरे देश से जैन समाज के बड़ी संख्या में लोग यहां प्रतिवर्ष आते हैं। मंदिर जंगल में अंदर की ओर जाकर है। शौरीपुर मंदिर को दिगम्बर सिद्धक्षेत्र भी कहा जाता है। यहां पर जैन समाज के दो अलग- अलग मंदिर हैं। दिगंबर और श्वेतांबर दोनों अनुयायियों के लिए ही शौरपुर विशेष महत्व रखता है। दिगंबर जैन मंदिर पहले से ही था लेकिन अब श्वेतांगर जैन मंदिर का भी नव निर्माण यहां हुआ है।

25 फरवरी तक चल रही है धर्मसभा

नवनिर्मित श्वेतांबर जैन मंदिर में भगवान नेमिनाथ की प्रतिमा स्थापित करने के लिए 25 फरवरी तक धर्मसभा चलेगी। ये प्रेरणादायी कार्य सन्त पदम् सागर सूरीश्वर महाराज के सानिध्य में चल रहा है।

ये है इतिहास

चन्द्रवंशी राज यदु के वंश में शूरसेन नामक एक प्रतापी राजा हुए, जिन्होंने इस शौरीपुर नगर को बसाया था। उसका वंश यदुवंश कहलाया। शूर के अंधक वृष्णि पुत्र हुए। अंधक वृष्णि के समुद्र विजय, वासुदेव आदि दस पुत्र और कुंत्री माद्री पुत्रियां हुईं। समुद्र विजय की रानी शिवा के गर्भ से श्रावण शुक्ल पंचमी को शौरीपुर में भगवान नेमिनाथ जिनेन्द्र 22 वें तीर्थंकर का जन्म हुआ था। बताया गया है कि उस समय इन्द्र ने रत्नों की वृष्टि की थी। भगवान नेमिनाथ बचपन से ही संसार में विरक्त प्रकृति के थे। जूनागढ़ के राजा उग्रसेन की पुत्री से उनका विवाह निश्चित हुआ था। विवाह के लिए जाते समय अनेक मूक पशुओं के करुण रुद्रन से दुखी होकर नेमिनाथ जी ने कंकण आदि बंधन तोड़ फेंके और वहीं गिरनाथ पर्वत पर जल दीक्षा ग्रहण कर दिगम्बर साधु हो गए। तत्पश्चात घोर तपस्या कर भगवान नेमिनाथ ने ज्ञान प्राप्त किया साथ ही अनेक देशों में विहार कर अहिंसा धर्म का उपदेश दिया। अंत में गिरनार पर्वत पर ही निर्वाण प्राप्त किया। इस प्रकार यह पुण्य भूमि भगवान नेमिनाथ के निर्वाण की गर्भ जन्म भूमि है। श्वेताम्बर जैन मंदिर ट्रस्ट कमेटी के प्रवक्ता विनीत गोलेच्छा ने बताया कि यहां पर देश के हर कोने से श्रदालु आते हैं।  


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