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Krishna Janmashtami 2019: कृष्‍ण की कर रहे हैं अाराधना तो राधा का भी करें जरूर ध्‍यान Agra News

कृष्‍ण जीवन की लीलाएं हजारों वर्ष बाद भी हैं प्रासंगिक। धर्म विज्ञान की नजर में राधा में छुपा है कृष्‍ण चरित्र।

By Tanu GuptaEdited By: Published: Sat, 24 Aug 2019 04:50 PM (IST)Updated: Sat, 24 Aug 2019 08:26 PM (IST)
Krishna Janmashtami 2019: कृष्‍ण की कर रहे हैं अाराधना तो राधा का भी करें जरूर ध्‍यान Agra News
Krishna Janmashtami 2019: कृष्‍ण की कर रहे हैं अाराधना तो राधा का भी करें जरूर ध्‍यान Agra News

आगरा, जागरण संवाददाता। कहा जाता है कि कृष्‍ण की आराधना तभी पूरी होती है जब राधा का नाम भी उसमें शामिल हो। राधा के बिना कृष्‍ण अधूरे हैं और सिर्फ एक राधा के नाम जाप से मुक्ति का मार्ग मिल जाता है। राधा और कृष्‍ण दो नाम भले ही हैं लेकिन अर्थ दोनों का एक ही है। कृष्‍ण ने अपने अवतार में कर्म के साथ प्रेम की प्रधानता का महत्‍व भी समझाया। धर्म वैज्ञानिक पंडित वैभव जोशी के अनुसार राधा- कृष्ण का प्रेम तो त्याग-तपस्या की पराकाष्ठा है। अगर 'प्रेम' शब्द का कोई समानार्थी है तो वो राधा-कृष्ण है। प्रेम शब्द की व्याख्या राधा-कृष्ण से शुरू होकर उसी पर समाप्त हो जाती है। राधा-कृष्ण की प्रीति से समाज में प्रेम की नई व्याख्या, एक नवीन कोमलता का आविर्भाव हुआ। समाज ने वो भाव पाया, जो गृहस्थी के भार से कभी भी बासा नहीं होता। राधा-कृष्ण के प्रेम में कभी भी शरीर बीच में नहीं था। जब प्रेम देह से परे होता है तो उत्कृष्ट बन जाता है और प्रेम में देह शामिल होती है तो निकृष्ट बन जाता है।

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'राधामकृष्णस्वरूपम वै, कृष्णम राधास्वरुपिनम; 

कलात्मानाम निकुंजस्थं गुरुरूपम सदा भजे।'

रुक्‍मणि ने भी समझा था राधा के प्रेम का मर्म

रुक्मणि व कृष्ण की अन्य रानियों ने कभी भी कृष्ण और राधा के प्रेम का बहिष्कार नहीं किया। रुक्मणि राधा को तबसे मानती थीं, जब कृष्ण के वक्षस्थल में तीव्र जलन थी। नारद ने कहा कि कोई अपने पैरों की धूल उनके वक्षस्थल पर लगा दे, तो उनका कष्ट दूर हो जाएगा। कोई तैयार नहीं हुआ, क्योंकि भगवान के वक्षस्थल पर अपने पैरों की धूल लगाकर हजारों साल कौन नरक भोगेगा? लेकिन राधा सहर्ष तैयार हो गईं। उन्हें अपने परलोक की चिंता नहीं थी, कृष्ण की एक पल की पीड़ा हरने के लिए वह हजारों साल तक नरक भोगने को तैयार थी।

उस समय तो रुक्मणि चमत्कृत थी, जब कृष्ण के गरम दूध पीने से राधाजी के पूरे शरीर पर छाले आ गए थे। कारण था कि राधा तो उनके पूरे शरीर में विद्यमान हैं।

पंडित वैभव जोशी

हर रिश्‍ते में समभाव रखते थे कृष्‍ण

पंडित वैभव कहते हैं कि कृष्ण ने यौवन का पूर्ण आनंद लिया, जो संयमित था। उनकी उद्दीप्त मुरली की तान ने कभी भी मर्यादाओं की सीमाओं का उल्लंघन नहीं किया। राधा के प्रति प्रेम तो अनन्य है लेकिन सभी अपनों के प्रति उनके प्रेम में कोई अलग भाव नहीं था। अपनी दोनों माताओं एवं पिताओं, अपनी रानियों, ग्वाल बालों, संगी-साथियों, ब्रज वनिताओं से भी कृष्ण उतने ही घनिष्ठ थे।

रास का अर्थ

पंडित वैभव जोशी बताते हैं कि श्रीकृष्‍ण ने रास रचाया, लेकिन रास है क्या? जब कोई मनोवेग इतना प्रबल हो जाए कि चुप न रह सके, चिल्ला उठे तो वह रास बन जाता है। उस महारास का मुख्य उद्देश्य था महिलाओं की जाग्रति। बेचारी महिलाएं अपने मन की बात कैसे करें। समाज का बंधन, परिवार का बंधन। उस महारास में ब्रज की महिलाओं ने अपने अस्तित्व को नई पहचान दी थी। कृष्ण की कुशलता थी कि उन्होंने सबको एक जैसा स्नेह दिया। पशु-पक्षी, शिक्षित-अशिक्षित, रूपवान-कुरूप सभी को समदृष्टि से देखा और अपने स्नेह से वश में कर लिया।

जनमानस से जुड़े कृष्‍ण

कृष्ण का भारतीय जनमानस पर अद्भुत प्रभाव है। जन्म से लेकर मोक्ष तक वो भारतीय जनमानस से जुड़े रहे। उनके चरित्र को लोग इतने निकट पाते हैं कि लगता है कि ये सब उनके घर में ही घटित हुआ हो। अपने पूरे जीवनकाल में वो भारतीय जनमानस का नेतृत्व करते हुए दिखाई देते हैं।

बचपन में इन्द्र के अभिमान को चूर करके प्रकृति के स्वरूप गोवर्धन की पूजा करवाते हुए ग्रामीणजनों एवं किसानों का प्रतिनिधित्व करते हुए दिखाई देते हैं। अन्यायी कंस का वध करके पूरे परिवार एवं समाज को भयमुक्त बनाते हैं। गरीब सुदामा के प्रति उनका प्रेम समाज के दलित एवं शोषित वर्ग के उत्थान का प्रतिनिधित्व करता है। गीता का संबोधन समस्त मानव जाति को बुराइयों से बचने का संदेश है।

हजारों वर्ष बाद भी जीवन संदेश देता है कृष्‍ण का चरित्र

पंडित वैभव जोशी कहते हैं कि पाप और शोक के दावानल से दग्ध इस जगती तल में भगवान ने पदार्पण किया। इस बात को आज पांच सहस्र वर्ष हो गए। वे एक महान संदेश लेकर पधारे। केवल संदेश ही नहीं, कुछ और भी लाए। वे एक नया सृजनशील जीवन लेकर आए। वे मानव प्रगति में एक नया युग स्थापित करने आए। इस जीर्ण-शीर्ण रक्तप्लावित भूमि में एक स्वप्न लेकर आए।

जन्माष्टमी के दिन उसी स्वप्न की स्मृति में महोत्सव मनाया जाता है। हम लोगों में जो इस तिथि को पवित्र मानते हैं कितने ऐसे हैं जो इस नश्वर जगत में उस दिव्य जीवन के अमर-स्वप्न को प्रत्यक्ष देखते हैं?

श्रीकृष्ण गोकुल और वृन्दावन में मधुर-मुरली के मोहक स्वर में कुरुक्षेत्र युद्धक्षेत्र में (गीता रूप में) सृजनशील जीवन का वह संदेश सुनाया जो नाम-रूप, रूढ़ि तथा साम्प्रदायिकता से परे है। रणांगण में अर्जुन को मोह हुआ। भाई-बन्धु, सुहृद-मित्र कुटुम्ब-परिवार, आचार-व्यवहार और कीर्ति अपकीर्ति ये सब नाम-रूप ही तो हैं। श्रीकृष्ण ने अर्जुन को इन सबसे उपर उठने को कहा, व्यष्टि से उठकर समष्टि में अर्थात सनातन तत्त्व की ओर जाने का उपदेश दिया। वही सनातन तत्त्व आत्मा है।


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