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जब जवाहर की हरकत से लाल हो गए नेहरू, पढि़ए राजनीति का वो भूला बिसरा किस्‍सा

अनुयायी ने थाल में रखकर भेंट कर दिया बेटी का सिर। वर्ष 1962 में आगरा क्लब मैदान में हुई थी सभा।

By Prateek GuptaEdited By: Published: Sun, 14 Apr 2019 01:09 PM (IST)Updated: Sun, 14 Apr 2019 01:09 PM (IST)
जब जवाहर की हरकत से लाल हो गए नेहरू, पढि़ए राजनीति का वो भूला बिसरा किस्‍सा
जब जवाहर की हरकत से लाल हो गए नेहरू, पढि़ए राजनीति का वो भूला बिसरा किस्‍सा

आगरा, ऋषि दीक्षित। वाकया तीसरे लोकसभा चुनाव के दौरान का है। पंडित जवाहर लाल नेहरू आगरा एक चुनावी सभा के लिए आये थे। यहां उनके ही एक हमनाम अनुयायी जवाहर ने भक्ति दिखाने के लिए एक ऐसी हरकत कर दी कि नेहरू जी गुस्से से लाल-पीले हो गए।

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आजादी के बाद पंडित नेहरू की लोकप्रियता चरम पर थी। आगरा भी इससे अछूता नहीं था। यहां के लोग भी पंडित जी के इतने दीवाने थे कि उनके लिए कुछ भी करने को तैयार रहते थे। 1962 में हुए चुनावों से पहले वे आगरा क्लब मैदान पर जनसभा को संबोधित करने आए थे। घटना के प्रत्यक्षदर्शी पूर्व प्रवक्ता एनआर स्मिथ बताते हैं कि नेहरू के स्वागत में पूरा शहर उमड़ पड़ा था। खेरिया हवाई अड्डे से लेकर आगरा क्लब मैदान तक इतनी भीड़ थी कि जाम लग गया था। नेहरू जी को कार से उतरकर घोड़े से सभास्थल पर पहुंचना पड़ा। इसी दौरान विचलित कर देने वाली एक घटना घटी। जवाहर काछी नाम का व्यक्ति थाल में अपनी बेटी का कटा हुआ सिर ढककर लाया था। किसी को अंदाजा भी नहीं था। जब उसने नेहरू जी से कहा कि मैं भी जवाहर हूं और आपके लिए मैं कुछ भी कर सकता हूं। यह कहते हुए भेंट देने के लिए थाल से जैसे ही कपड़ा हटाया तो कटा सिर देखकर लोगों के होश उड़ गए।

इस घटना से नेहरूजी विचलित हो गए। गुस्से में लाल हुए नेहरू जी ने इस व्यक्ति को तुरंत गिरफ्तार करने के निर्देश दिये। बाद में गुदड़ी मंसूर खां निवासी इसे जवाहर को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया था। इस घटना के एक और प्रत्यक्षदर्शी प्रतिष्ठित वास्तुकार शशि भूषण शिरोमणि बताते हैं कि वह व्यक्ति नेहरू जी का दीवाना ही नहीं मनोरोगी भी था। उसकी पुत्री की मृत्यु किसी बीमारी से हुई थी। नेहरू जी के प्रति आस्था प्रकट करने के लिए वह मरी हुई बेटी का सिर काट कर ले आया था। शिरोमणि बताते हैं कि आगरा में मिलने वाले प्यार और स्वागत से नेहरू जी भी अभिभूत हो जाते थे, लेकिन जवाहर काछी की करतूत से वह नि:शब्द रह गए। 


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