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मकर संक्रांति: सज गया बाजार, आसमान भी रंगीला होने को है तैयार Agra News

अजमेर से जयपुर तक उड़ती है आगरा की पंतग। महिला कारीगर हैं ज्यादा माहिर पतंग बनाने में।

By Tanu GuptaEdited By: Published: Mon, 13 Jan 2020 04:16 PM (IST)Updated: Mon, 13 Jan 2020 04:16 PM (IST)
मकर संक्रांति: सज गया बाजार, आसमान भी रंगीला होने को है तैयार Agra News

आगरा, जागरण संवाददाता। ताजनगरी में पतंग के थोक बाजार माल का बाजार में इन दिनों मकर संक्रांति करीब होने के कारण रौनक छाई हुई है। यहां तकरीबन एक दर्जन पतंगों की दुकानें हैं, जहां पतंगों को बनाने से लेकर बाहर से मंगाकर बेचने का काम किया जाता है। इनमें कई दुकानें तो एक सौ साल से ज्यादा पुरानी हैं। जयपुर से लेकर अजमेर तक यहां की पतंगों की मांग है।

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आगरा के काला महल बाजार में पंतग का कारोबार बड़े पैमाने पर होता है। यहांं बनी पतंग की मांग अन्य राज्यों में भी हैं। पतंग कारोबार लगभग 99 प्रतिशत महिला कारीगरों पर निर्भर हैं। पतंगों पर समाज को सदेंश देने वाले संदेश जैसे बेटी बचाओं बेटी पढ़ाओं इसके साथ ही आई लव यू, तिंरगा पंतग, बच्चों के लिए कार्टून और अपना टाइम आएगा आदि पतंगों पर छपे हुए प्रिंट देखने को मिल रहा है।

महिला कारीगर हैं ज्यादा माहिर

पंतग बनाने में शहर की महिला कारीगर पुरुषों से ज्यादा माहिर हैं। पंतग के कारोबारियों ने बताया कि महिलाओं का इस कारोबार में बहुत बड़ा योगदान हैं। बिना महिलाओं के पतंग तैयार नहीं हो पाती हैं और वह पुरुषों से भी अच्छा काम करती हैं। शहर में कई घर ऐसे हैं जिनके यहां की महिलाएं भी कई पीढिय़ों से पतंग का काम करती आ रहीं हैं। नुनहाई की रहने वाली तबसुम और हीना का कहना हैं कि उनकी सांस भी पंतग बनाने का काम करती थी और अब वह भी यहीं काम करती हैं।

नागरिकता संशोधन कानून का हुआ असर

कारोबारियों का कहना हैं सरकार द्वारा नागरिकता संशोधन के बाद देश में हुए दंगों ने पतंग के कारोबार को भी प्रभावित किया। दिसंबर जनवरी पतंग का सीजन माना जाता हैं। इस दौरान अन्य राज्य और शहरों के लिए पतंग जाती थी लेकिन इस बार उपद्रव की वजह से कई ऑडर कैंसिल हो गए और डर की वजह से हम भी क ही नहीं जा पाए।

पहले से कम हुए हैं पतंग के शौकीन

आफिर मियां बताते हैं कि वह तीसरी पीढ़ी के व्यक्ति हैं जो अपने पुश्तैनी पतंग का कारोबार संभाल रहें हैं। उनका कहना हैं कि लोगों में आज भी पतंग उठाने का शौक हैं लेकिन अब वह बात नहीं हो पहले हुआ करती थी। पहले लोगों के पास अक्टूबर से लेकर जनवरी और गंगा दशहरा पर लोगों को पतंग मुहैया कराना मुश्किल होता था। समय के साथ लोगों के मनोरंजन के साधन भी बदले हैं।

कम हुई है बिक्री

दुकानदार मुहम्मद इमरान का कहना हैं कि इस बार कारोबार पिछली साल से मंदा रहा हैं इस साल पतंगों की ब्रिकी भी कम हुई और बाहर से आने वाले ऑडर में भी कमी देखने को मिली हैं। 


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