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कमर तोड़ महंगाई से निपटने को इस बाजार को है अब गंगा दशहरा का इंतजार

गंगा दशहरा को लेकर सजा पतंग का बाजार। कमाई के लिए पूरी तैयारी से जुटे हैं कारोबारी।

By Tanu GuptaEdited By: Published: Sun, 09 Jun 2019 02:32 PM (IST)Updated: Sun, 09 Jun 2019 06:21 PM (IST)
कमर तोड़ महंगाई से निपटने को इस बाजार को है अब गंगा दशहरा का इंतजार
कमर तोड़ महंगाई से निपटने को इस बाजार को है अब गंगा दशहरा का इंतजार

आगरा, जागरण संवाददाता। गंगा दशहरा में अब तीन दिन शेष हैं। ऐसे में कारीगर एक बार फिर पतंग बनाने में जुट गए हैं। इसके साथ वह इस धंधे में पहले सी आमदनी न होने की बात भी कह रहे हैं।

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आगरा के काला महल, माल का बाजार व गुदड़ी मंसूर खां में पतंग बनाने का काम घर-घर होता है। युवा हों या बुजुर्ग सभी पंतग बनाते हैं। यहां आसिफ अहमद बताते हैं कि पतंग का धंधा अब पहले जैसा नहीं रहा। केवल खास मौकों पर ही बिक्री बढ़ती है। इसमें भी महंगाई की मार, गर्मी का माहौल व जीएसटी ने इस धंधे को चौपट कर रखा है। पतंग बनाने के लिए कच्चा माल भी काफी महंगा हो चला है। इस वजह से ग्राहकों को भी पतंग महंगी देनी होती है। यह सब पतंग उड़ाने वाले युवाओं की संख्या को कम कर रहा है। वैसे अब गंगा दशहरा का बाजार चार दिन पहले से ही रफ्तार पकड़ चुका है। लोग पतंग के साथ चरखी, मांझा और डोर खरीद रहे हैं। बाजार में एक रुपये से लेकर 200 रुपये तक की पतंग उपलब्ध है।

मोदी-सलमान के पोस्टर की पतंगों का क्रेज

पतंग विक्रेता पप्पू बताते हैं कि इस बार पतंगों के बाजार में मोदी और सलमान के पोस्टर लगी पतंगे बहुत बिक रही हैं। आज से 10 साल पहले की दुकानदारी के अनुपात पर नजर डाले, तो यह 90 फीसद कम हो गया है। एक समय वो था कि मनोरंजन के साधनों में पतंग का कोई तोड़ नहीं था। यह लोगों के लिए ताजा हवा का जरिया भी बनती थी। अब तो प्रदूषण ही इतना है कि लोग बाहर ही नहीं निकलना चाहते।

डिजीटल युग में खो सी गई है पतंगबाजी

ताज नगरी में गंगा दशहरा पर पतंगबाजी की सैकड़ों साल पुरानी परंपरा है, लेकिन डिजिटल युग में यह खो सी गई है। पतंग विक्रेता अंसार बताते हैं कि अब युवाओं को मोबाइल से ही फुरसत नहीं। एक समय में शहर की सेठगली में पतंग की सैकड़ों दुकानें होती थीं, लेकिन आज बमुश्किल 2-3 ही हैं।

बच्चों में अब भी क्रेज 

शाहगंज के पतंगसाज साजिद ने बताया, एक जमाना था जब पतंगबाजी जूनून होता था। हम पौना-अद्धा से नीचे पतंगे बहुत कम बनाते थे। आज पतंगबाजी सिर्फ छोटे बच्चे ही करते हैं। कागज महंगा होने के कारण छोटी पतंगे ही बनाते हैं। ऊपर से पालीथिन की पतंगे भी बाजारों में आ गई हैं। बच्चों के कार्टून छोटा भीम, डोरेमॉन मोटू-पतलू की प्रिंटेड पतंगे ज्यादा बिक रही हैं।

महंगा पड़ रहा बरेली का मांझा

पतंग विक्रेता जमाल ने बताया कि महंगाई की बात करें तो इस बार पतंग, मांझा और सद्दा के रेट भी काफी बढ़ गए हैं। मांझे की चरखी पर 100 से 150 रुपये की बढ़ोतरी हुई है। सद्दा के गुल्लों पर भी 10 से 20 रुपये बढ़े हैं। पतंगों पर भी महंगाई छाई हुई है। दुकानदार हमीद ने बताया कि महंगाई के कारण कारोबार में कुछ कमी आई है। चाइनीज मांझे की जगह आया बरेली का मांजा भी महंगा पड़ रहा है।  

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