Holi Special: रंगीली चौक नहीं बरसाना की कटारा हवेली हुआ करती थी वीआइपी स्थल
140 साल पहले अंग्रेज कलेक्टर ग्राउस ने देखी थी कटारा हवेली से होली।
आगरा, किशन चौहान। तंग रंगीली गली से भले ही श्रील नारायण भट्ट ने आज से साढ़े पांच सौ वर्ष पहले लठामार होली की शुरुआत कराई थी। लेकिन हमेशा होली का वीआइपी स्थल कटारा हवेली हुआ करती थी। इसी हवेली में ही वीआइपी लोग होली देखने के लिए रुकते थे। 140 साल पहले अंग्रेज कलेक्टर एफएस ग्राउस ने भी कटारा हवेली पर बैठकर होली देखी थी।
ब्रज अपनी होली की विलक्षणता के लिए सैकड़ों वर्ष पहले से जाना जाता है। यहां की होली की प्रसिद्धि नई नहीं है ब्रिटिशराज में अंग्रेज भी इसके मुरीद रहे थे। आज से 140 साल पहले मथुरा के जिला कलेक्टर रहे एफएस ग्राउस ने खुद आकर बरसाना, नन्दगांव और फालैन में होली के आयोजनों को देखा था। ग्राउस ने इन आयोजनों का वर्णन अपनी प्रसिद्ध पुस्तक मथुरा ए डिस्ट्रिक्ट मेमॉयर में किया है। राधाकृष्ण के प्रेम का प्रतीक कही जाने वाली लठामार रंगीली होली वैसे तो विश्व प्रसिद्ध है। लेकिन उक्त होली की दीवानगी इस कदर थी कि सात समंदर पार तक के लोगों को आकर्षित करती रही है। लठामार रंगीली होली भले ही रंगीली गली की तंग गलियों से शुरू हुई थी। लेकिन हमेशा वीआइपी स्थल कस्बे का कटारा हवेली रहा। 22 फरवरी 1877 को मथुरा के अंग्रेज कलेक्टर रहे फ्रेडरिक सोल्मन ग्राउस ने भी कटारा हवेली पर बैठकर होली का लुफ्त उठाया था। इस दौरान ग्राउस ने होली के अगले दिन नन्दगांव की भी लठामार होली देखी थी।
1871 से 1877 तक मथुरा के जिला कलेक्टर रहे फ्रेडरिक सोल्मन ग्राउस ब्रज की संस्कृति से खासे प्रभावित थे। उन्होंने यहां की संस्कृति और इतिहास के संरक्षण के लिए मथुरा संग्रहालय की भी स्थापना की थी। ग्राउस ने मथुरा ए डिस्ट्रिक्ट मेमॉयर नाम से एक पुस्तक लिखी थी, जो मथुरा के इतिहास और संस्कृति की कहानी का एक प्रामाणिक दस्तावेज है।
योगेंद्र ङ्क्षसह छोंकर (स्थानीय इतिहास के जानकार)
कस्बे की कटारा हवेली प्राचीन है, जिसका निर्माण भरतपुर स्टेट के राजा रहे सूरजमल के राज्य पुरोहित रूपराम कटारा ने कराया था। उस समय भी राजा महाराजा इस हवेली पर बैठकर होली देखा करते थे। यहां तक कि होली देखने के दौरान इसी प्राचीन हवेली में तमाम वीआईपी लोग रुकते भी थे।
गोकलेश कटारा एडवोकेट (रूपराम कटारा के वंशज)