गजब है बरसाना का जल महल
आगरा:मथुरा के बरसाना में स्थित वृषभानु कुंड के जल में जल महल की पाच मंजिला इमारतों में दो मंजिलें जल में डूबी रहती हैं। गर्मियों में भी चलती हैं यहां ठंडी हवाएं।
विवेक दत्त मथुरिया,आगरा:मथुरा के बरसाना में स्थित वृषभानु कुंड के जल में जल महल की पाच मंजिला इमारत हैं, जिनमें दो मंजिल जलमग्न रहती हैं। जल महल गर्मियों की तपती दोपहर में भी कूलर जैसी ठंडक का आनंद देता है। कुछ दशक पहले तक जब पंखा, कूलर जैसे उपकरणों का चलन कम था, तब स्थानीय लोगों के लिए दोपहर बिताने का यह एक पसंदीदा स्थान हुआ करता था। पौराणिक वृषभानु-कीर्ति कुंड का यह सरोवर युग्म और यहा बने जल महल में आज भले ही पहले जैसी रौनक नहीं रही, पर इससे इसके सौंदर्य पर कोई फर्क नहीं पड़ा है। बाबा वृषभानु और माता कीर्ति के नाम पर हैं कुंड
जिस तरह राधाकुंड में एक सरोवर युग्म है, जिसमें से एक राधा कुंड कहलाता है तो दूसरा कृष्ण कुंड कहलाता है। उसी तरह बरसाना में भी एक सरोवर युग्म है, जिसमें से एक वृषभानु कुंड कहा जाता है तो दूसरे का नाम कीर्ति कुंड है। इन कुंडों का नामकरण राधा रानी के पिता वृषभानु गोप और उनकी माता कीर्ति रानी के नाम पर किया गया है। ये दोनों कुंड एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं और एक कुंड का जल दूसरे में पहुंचता रहता है। कीर्ति कुंड छोटा है और चारों ओर घाटों पर हुए अतिक्रमण के चलते कुछ छिप सा गया है, पर वृषभानु कुंड आज भी अपने विराट स्वरूप में मौजूद है। दर्जनों सीढ़ीदार घाटों और गो घाटों से इसकी विशालता दिखती है। इस कुंड का सबसे खास पहलु है इसके एक ओर बना पाच मंजिला जल महल। रूपराम कटारा ने कराया था निर्माण
वृषभानु कुंड पौराणिक है। इसका उल्लेख नारायण भट्ट रचित ब्रज भक्ति विलास में भी मिलता है। शुरुआत में यह एक कच्चा सरोवर रहा होगा। इसके दाएं किनारे पर प्राचीन वृषभानेश्वर महादेव का मंदिर है। मान्यता है कि इस महादेव मंदिर की स्थापना कृष्ण काल में हुई थी। इस कुंड के घाट और जल महलों का निर्माण 1740 ईस्वी से 1760 ईस्वी के मध्य स्थानीय निवासी रूपराम कटारा ने कराया। रूपराम कटारा भरतपुर के जाट शासक सूरजमल का राज पुरोहित, दीवान और वकील था। उस दौर में वह दिल्ली, जयपुर और पूना दरबारों में एक प्रभावशाली व्यक्ति के तौर पर जाना जाता था। रूपराम कटारा ने अपनी संपत्ति का एक बड़ा हिस्सा ब्रज के तमाम धार्मिक स्थलों पर निर्माण कराने पर व्यय किया। गर्मियों में ठंडक का अहसास कराते हैं जल महल
जल महल वृषभानु कुंड के एक किनारे पर बना है। इनकी इमारत पाच मंजिला है, जिसकी दो मंजिलें अधिकतर जल में डूबी रहती हैं। जलस्तर बढ़ने पर ढाई से तीन मंजिलों तक जलस्तर पहुंच जाता है। इस इमारत का निर्माण बावड़ीनुमा तरीके से किया गया है। इनमें महिलाओं के स्नान के लिए अलग कक्ष बने हुए हैं। इन कक्षों में जल के तल तक पहुंचने के लिए सीढिया बनी हुई हैं। कुण्ड में जल का स्तर भले ही कितना ही घटे या बढ़े, इन महिला कक्षों की सीढि़यों पर जल हमेशा बना रहता है, जिससे महिलाएं वहा पर्दे में स्नान और जल क्त्रीड़ा करती थीं। वृषभानु कुंड और कीर्ति कुंड को क्षेत्र के चारों ओर एक विशाल दीवार भी बनवाई गई थी, जिसका अधिकाश हिस्सा अब नष्ट हो गया है।
वृषभानु कुंड पर बने जल महलों की सबसे बड़ी खासियत यह है कि ये गर्मियों में भी ठंडे बने रहते हैं। कुंड के पानी को छूकर आती हुई हवा यहा बेहद शीतल हो जाती है। गर्मियों की दोपहरी में चलने वाली गर्म तपती लू भी यहा बेअसर साबित होती है। पंखा, कूलर के आविष्कार के पहले के दिनों में ये जल महल गर्मियों की दोपहर में ग्रामीणों को शीतलता देने का जरिया थे। बड़ी संख्या में ग्रामीण यहा आकर दोपहर बिताते थे। बुजुर्ग बताते हैं कि उन दिनों लोग यहा ताश, शतरंज, 18 गोटी जैसे खेल खेलते हुए यहा की शीतलता का लुत्फ उठाया करते थे। आज की तेज रफ्तार जिंदगी में लोगों के पास इन जल महलों में दोपहर बिताने का समय नहीं है। ब्रज के विशाल सरोवरों में से एक है वृषभानु कुंड
वृषभानु कुंड ब्रज मंडल के विशाल सरोवरों में से एक है। इसके एक ओर जल महल की भव्य इमारत है और शेष तीन और पक्के घाट बने हुए हैं। आठ पक्के सीढ़ीदार घाट हैं, जो नहाने के काम आते हैं। चार गो घाट भी बने हुए हैं, जो किसी समय पशुओं को पानी पिलाने के लिए काम आते थे। कुंड काफी गहरा है और तली में दलदल होने के कारण खतरनाक हो गया है। लोगों की रुचि कम होने के चलते अब यहा नहाने -तैरने वालों की संख्या बहुत कम हो गई है। कुंड की दशा सुधारने के लिए अक्सर यहा इसके जीर्णोद्धार के काम चलते रहते हैं। विक्त्रमी संवत 1941 में मथुरा के सेठ लाला नारायण दास ने इसका जीर्णोद्धार कराया था। सरकारें भी इसकी साफ सफाई और घाटों की मरम्मत अक्सर कराती रहती हैं। ब्रज फाउंडेशन ने भी एक बार जल महल का जीर्णोद्धार कराया था। लुप्त होने के कगार पर है कीर्ति कुंड
वृषभानु कुंड के बाईं और स्थित छोटा सा कीर्ति कुंड अतिक्त्रमण के चलते अपना अस्तित्व खोने के कगार पर है। यह कुंड शुरू शुरू से ही थोड़ा गुमनाम रहा है। इसके घाट हालाकि पक्के हैं, पर लंबे समय से जीर्णोद्धार न होने के कारण बेहद जर्जर हालत में हैं। इसका हर घाट स्थानीय लोगों द्वारा कब्जा लिया गया है, जिसके कारण इस कुंड तक पहुंचना भी मुश्किल हो गया है।