उपचुनाव से शुरू सफर का रिकॉर्ड धुरंधर भी न तोड़ सके
1998 में विधायक सत्यप्रकाश विकल के निधन के बाद हुए थे उपचुनाव लगातार पांच बार विधायक बन बनाया था रिकॉर्ड
आगरा, संजीव जैन: भाजपा विधायक जगन प्रसाद गर्ग के नाम आगरा में किसी भी सीट पर लगातार पाच बार चुनाव जीतने का रिकॉर्ड है। हर चुनाव में भाजपा के अंदर भी उनके खिलाफ झंडा बुलंद हो जाता था लेकिन अंतत: जीत ही खाते में आती रही।
भाजपा विधायक सत्यप्रकाश विकल के निधन के बाद 1998 में उपचुनाव हुए। इसमें पार्टी ने जगन प्रसाद गर्ग को मैदान में उतारा। हालांकि इसका भी विरोध हुआ था, लेकिन इस सबके बाद जगन प्रसाद गर्ग ने जीत हासिल की। यहां से जगन प्रसाद विधानसभा पहुंचे। फिर 2002, 2007, 2012 और 2017 में जीत हासिल की। इस तरह लगातार पाच बार वे विधायक बने। उनके सामने एक से एक धुरंधर आए लेकिन कोई उन्हें हटा नहीं सका। उनसे पूर्व डॉ. रामबाबू हरित तीन बार और सत्य प्रकाश विकल तीन बार विधायक रहे थे लेकिन पाच बार लगातार चुनाव जीतने का रिकॉर्ड सिर्फ जगन प्रसाद के पास ही था। ये थी उनकी दिनचर्या
विगत दो दशकों से जगन प्रसाद गर्ग की दिनचर्या निर्धारित थी। 1998 में पहली बार चुनाव जीतने के बाद से प्रात: आठ से दस बजे तक कार्यालय में समस्याएं सुनना। फिर क्षेत्र में दौरा। सरकारी कार्यालयों में जाकर जनता की समस्याएं निपटाना यह उनकी दिनचर्या में शामिल हो गया था। ऐसे थे जगन प्रसाद गर्ग
मेहनत और लगन से पाई बुलंदी। जगन प्रसाद का विधायक बनने तक का सफर आसान नही था। इनके जन्म के महज एक साल बाद पिताजी स्वर्ग सिधार गए। बड़े भाइयों ने पाल पोसकर बड़ा किया और पढ़ाया । आगरा कॉलेज से बीए करने के साथ उन्होंने तोता का ताल स्थित बड़े भाई की घी की दुकान पर कई साल काम सीखा और फिर 1975 में मदिया कटरा तिराहे पर नीरज डेरी की शुरुआत की। खुद बनाकर बेचते थे सामान
शुरुआत में व्यापार के लिए पूंजी कम थी, इसलिए अकेले काम करना शुरू किया। खर्च बचाने के लिए उन्होंने किसी को नहीं रखा। खुद अपने हाथों से दूध से पनीर, मक्खन, घी और दही बनाते थे। रोजाना सुबह इन उत्पादों को बनाना शुरू करते थे और दोपहर से शाम तक बिना रुके उनका वितरण करते थे। सुबह छह बजे से लेकर रात 10 बजे तक वे अकेले ही बिना खाए पिए लगे रहते थे। बीमार भी हुए लेकिन काम के कारण उस तरफ ध्यान नहीं दिया। जी तोड़ मेहनत के बाद नीरज डेरी और होटल वैभव पैलेस को ब्राड बनाया। महज पाच हजार की थी पूंजी
नीरज डेरी की शुरुआत के समय जगन प्रसाद गर्ग के पास महज पाच हजार रुपये की पूंजी थी, जो उनके बड़े भाइयों ने जुटाकर दी थी। उससे उन्होंने कारोबार शुरू किया। एडीए से 150 रुपये महीने पर दो दुकान किराए पर लेकर नीरज डेरी की शुरुआत की।
मक्खन बनाने की प्रक्रिया समझने वह शुरुआत में पराग डेरी गए। वहा देखा कि किसी प्रकार चरन (एक प्रकार की मशीन) से मक्खन बनाया जाता था। उस मशीन की कीमत 25 हजार थी, इतने रुपये न होने पर उन्होंने ट्रासंपोर्ट नगर से पुराने ट्रक का इंजन खरीद कर लकड़ी से जुगाड़ का चरन बनवाया, जो आज भी उनके परिजनों के पास सुरक्षित है। बेटे संभाल रहे हैं कारोबार
1998 मे पहली बार विधायक बनने से पहले तक वह खुद ही कारोबार संभालते थे। इस दौरान उन्होंने अपनी दो बड़ी बेटियों श्वेता और नमिता के साथ दोनों छोटे बेटे वैभव और सौरभ गर्ग को पढ़ा-लिखाकर सक्षम बनाया। चारों बच्चों की धूमधाम से शादी की। अब उनके दोनों बेटे ही नीरज डेरी के साथ उनके होटल वैभव पैलेस को संभाल रहे हैं। हालाकि पाच बार के विधायक होने के बाद आज भी उनका निर्देशन कारोबार पर रहता था। उत्तरी विस सीट पर वैश्य बिरादरी का जलवा रहा कायम
उत्तरी विधान सभा सीट पर कई प्रत्याशियों ने ताल ठोंकी लेकिन जीत का सेहरा वैश्य प्रत्याशियों के सिर ही बंधता रहा। आजादी के बाद हुए पहले विधानसभा चुनाव से लेकर अब तक इस सीट पर वैश्य समाज का ही दबदबा रहा। 1951 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में उत्तरी विधानसभा सीट से बाबू लाल मीतल पहले विधायक बने। इसके साथ ही इस सीट पर वैश्य समाज का आधिपत्य हो गया। प्रत्याशी चाहे किसी भी जाति का हो, उसका प्रचार कितना ही प्रभावी हो लेकिन जीत वैश्य प्रत्याशियों की झोली में ही जाती रही। पहले पूर्वी विधानसभा के नाम से जानी जाने वाली इस सीट पर वैश्य प्रत्याशियों के जीतने का सिलसिला लगातार जारी रहा। वैश्य बहुल सीट होने के कारण राजनीतिक दल भी प्रत्याशियों का चयन करने से पहले वैश्य समाज के प्रत्याशियों को प्रमुखता देने लगे। 1977 तक वैश्य समाज के कब्जे में रहने वाली उत्तर विधानसभा सीट पर पहली बार इस मिथक को तोड़ते हुए सुरेन्द्र कुमार कालरा ने कब्जा किया। हालाकि कालरा सिर्फ तीन साल ही इस सीट को अपने पास रख सके। 1980 के विधानसभा चुनाव में ओम प्रकाश जिंदल ने यह सीट अपने नाम कर ली। ओम प्रकाश जिंदल के बाद अब तक इस सीट पर सिर्फ वैश्य प्रत्याशी के सिर ही जीत का सेहरा सजा। ओम प्रकाश जिंदल के बाद सत्य प्रकाश विकल इस सीट पर 1985 से 1998 तक लगातार तीन बार विधायक बने। इसके बाद से यह सीट जगन प्रसाद गर्ग के कब्जे में रही। कालरा ने तोड़ा था मिथक
1977 में हुए विधानसभा चुनाव में 1969 से लगातार दो बार काग्रेस से विधायक डॉ प्रकाश नारायण गुप्ता और सुरेन्द्र कुमार कालरा (सिंधू) के बीच करीबी मुकाबला रहा था। काग्रेस की सीट पर चुनाव लड़े सिंधू ने यह सीट महज 556 वोट से अपने नाम की। सिंधू के 25472 वोट के मुकाबले जेएनपी के डॉ प्रकाश नारायण गुप्ता को 24916 वोट मिले। वर्ष- विजेता- जाति
1951- बाबू लाल मीतल- वैश्य
1957- आदिराम सिंघल- वैश्य
1962- बालोजी अग्रवाल -वैश्य
1967-69- आरएस अग्रवाल- वैश्य
1969-77 - प्रकाश नारायण गुप्ता -वैश्य
1980-85- ओम प्रकाश जिंदल - वैश्य
1985-98 - सत्यप्रकाश विकल- वैश्य
1998-अब तक जगन प्रसाद गर्ग वैश्य ये है जगन प्रसाद का परिचय
जन्म तिथि- 20 जुलाई 1952
पिता- स्वर्गीय बद्री प्रसाद गर्ग
जन्म स्थान- सरहदी गांव
शिक्षा- बीए, आगरा कॉलेज
विवाह- 5 मार्च 1978
पत्नी- लक्ष्मी गर्ग
संतान-दो पुत्र व दो पुत्री
पहला उप चुनाव जीता- नवंबर 1998
उप्र प्राकलन समिति सदस्य-2001-2003
वर्ष 1971-72 में विद्यार्थी परिषद सदस्य