Cyber Criminals: दिल्ली-एनसीआर से जुड़े हैं जामताड़ा साइबर गैंग के तार
झारखंड में पकड़ा गया था मथुरा के महंत के खाते से 24 लाख रुपये निकालने वाला गिरोह। दो आरोपितों ने दिल्ली में कॉल सेंटर में सीखा था शिकार को जाल में फांसने का तरीका।
आगरा, अली अब्बास। मथुरा के महंत के खाते से 24 लाख रुपये निकालने वाले जामताड़़ा के साइबर गैंग के तार दिल्ली एनसीआर से जुड़े हैं। गिरफ्तार दो लोगों ने दिल्ली में एक कॉल सेंटर में काम किया था। इस दौरान वहां पर उन्होंने शिकार को जाल में फांसने का तरीका सीखा था। झारखंड के देवघर जिले में गिरफ्तार गैंग से की गई विस्तृत पूछताछ की रिपोर्ट वहां की पुलिस ने आइजी रेंज की साइबर सेल को भेजी है।
मथुरा के वृंदावन निवासी महंत कमल गोस्वामी के खाते से जामताड़ा के साइबर गैंग ने नेट बैंकिंग के माध्यम से अप्रैल में 24 लाख रुपये निकाल लिए थे। मामले में आइजी रेंज ए.सतीश गणेश ने इसकी जांच रेंज साइबर सेल को सौंपी थी। उसके इनपुट पर झारखंड के देवघर जिले की साइबर सेल ने 18 आरोपितों काे गिरफ्तार किया था। जिनसे ढाई हजार से ज्यादा बैंक पासबुक और डेबिट कार्ड बरामदर किए थे। अधिकांश एटीएम कार्ड हाई वैल्यू वाले थे। जिनसे एक दिन में एक लाख रुपये तक निकाले जा सकते थे।
रेंज साइबर सेल प्रभारी शैलेश कुमार सिंह ने बताया देवघर में गिरफ्तार आरोपियों में जामताड़ा के नैमुल हक,अनवर और निजामुद्दीन मुख्य आरोपित हैं। जिन्होंने महंत कमल गोस्वाती के खाते से 24 लाख रुपये निकाले थे। देवघर पुलिस द्वारा गिरोह से विस्तृत पूछताछ करके इसकी रिपोर्ट तैयार की गयी। नैमुल हक,अनवर और निजामुद्दीन ने जानकारी दी कि लोगों को जाल में फांसने का तरीका वह लोग दिल्ली-एनसीअार में चलने वाले कॉल सेंटर से सीखते हैं। साइबर सेल प्रभारी शैलेश कुमार सिंह ने बताया कि दिल्ली, नोएडा, गुरुग्राम और फरीदाबाद में दर्जनों कॉल सेंटर चलते हैं। इन कॉल सेंटर में साइबर शातिर काम करके ग्राहकों को बातचीत के द्वारा अपने जाल में फांसने का तरीका सीखते हैं। इसके साथ ही साइबर क्राइम के नए-नए तरीके वहां रहकर सीखते हैं। नैमुल हक और अनवर ने दिल्ली के एक कॉल सेंटर में काम किया था।
इस तरह काम करता था गैंग
-गिरोह से जुड़ा एक व्यक्ति का काम फर्जी दस्तावेज तैयार करना होता है। इसके बदले उसे 50 से 100 रुपये तक मिलते हैं।
-गिरोह से जुड़ा दूसरे व्यक्ति के जिम्मे इन दस्तावेजों के आधार पर बैंक में खाता खुलवाना होता है।
-इन खातों को साइबर गैंग के सदस्य पांच से सात हजार रुपये में खरीद लेते हैं। इसके बाद जाल में फंसे शातिरों की रकम इन खातों में ट्रांसफर कर दी जाती है।
-इन खातों से रकम निकालने वाले गिरोह में प्रीपेड कहलाते हैं। वह गिरोह द्वारा उपलब्ध कराए गए एटीएम लेकर अपने शहर से 500 से 700 किलोमीटर दूर जाकर दूसरे शहरों और राज्याें से रकम निकालते हैं।इससे उनकी तस्वीरें सीसीटीवी फुटेज में आने के बाद भी पुलिस उन्हें नहीं तलाश पाती है।
-ये रकम साइबर गैंग को दे दी जाती है। प्रीपेड को इस काम के लिए दस हजार रुपये तक मिलते हैं।अधिकांश प्रीपेड सदस्य पश्चिम बंगाल के बताए गए हैं।