International Nurse Day 2020: कोरोना संकट में ये नर्स, कैसे निभा रहे फर्ज, जानेंगे तो करेंगे सलाम
International Nurse Day 2020 नर्स दिवस पर रेनबो हॉस्पिटल में हुई सुरक्षा टॉक दोहराया गया प्रोटोकॉल।
आगरा, जागरण संवाददाता। कोरोना संकट की इस घड़ी में नर्स बड़ी कीमत चुका रहे हैं। ये कीमत संक्रमण का खतरा तो है ही साथ ही अपने परिवार की फिक्र भी है। आज नर्स दिवस पर रेनबो हॉस्पिटल ने ऐसे अपने सभी स्वास्थ्य कर्मियों को सलाम किया है।
रेनबो हॉस्पिटल में नर्स दिवस पर सामाजिक दूरी एवं समस्त दिशा सतर्कता दिशा निर्देशों का पालन करते हुए एक टॉक आयोजित की गई। यह टॉक नर्सिंग स्टाफ के सुरक्षा तंत्र को और मजबूत बनाने के लिए थी। अस्पताल के निदेशक डॉ नरेंद्र मल्होत्रा, डॉ निहारिका मल्होत्रा और मेडिकल सुपरिटेंडेंट डॉ राजीव लोचन शर्मा ने नर्सिंग स्टाफ से मरीजों की देखभाल के दौरान कोविड के सुरक्षा नियमों में जरा भी कोताही न बरतने की बात कही। इस अवसर पर एचआर प्रबंधक लवकेश गौतम, नर्सिंग सुपरिटेंडेंट ग्लायडन जॉर्ज आदि मौजूद थे।
दुश्मन अदृश्य है, हर समय रहें सावधान
अस्पताल के महाप्रबंधक राकेश आहूजा ने नर्स दिवस के अवसर पर अस्पताल के स्टाफ को बधाई दी और चिकित्सा सेवाओं की रीढ़ बताया। कहा कि कोविड अस्पतालों में फ्रंटलाइन वारियर्स की तरह ही रेनबो अस्पताल में अन्य बीमारियों का आपातकाल इलाज शासन प्रशासन के तय दिशा निर्देशों अनुसार चल रहा है।
दुश्मन अदृश्य है। आज किसी मरीज का इलाज करते हैं और कल रिपोर्ट पॉजिटिव आ जाए तो भी संक्रमित होने का पूरा खतरा है। रेनबो हॉस्पिटल में भी ऐसे तमाम कोरोना योद्धा हैं जो विषम परिस्थितियों में भी अपने परिवार और अपनी सेहत सब कुछ भूल कर लोगों की सेवा में दिन रात लगे हुए है। इन्होंने अपने परिवार से भी दूरी बना ली है।
क्या है इस दिन का इतिहास
12 मई 1820 को इटली के फ्लोरेंस में विलियम नाइटिंगेल और फेनी के घर जन्मीं फ्लोरेंस नाइटिंगेल इंग्लैंड में पली-बढ़ीं। फ्लोरेंस नाइटिंगेल को आधुनिक नर्सिंग की जनक के तौर पर जाना जाता है।उनके जन्मदिवस के खास मौके पर अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस मनाया जाता है। धनी परिवार की फ्लोरेंस को 16 साल की उम्र में एहसास हो गया था कि उनका जन्म सेवा के लिए हुआ है। गणित, विज्ञान और इतिहास की पढ़ाई करने वाली फ्लोरेंस नर्स बनना चाहती थीं। वह मरीजों, गरीबों और पीड़ितों की मदद करना चाहती थी। धनवान पिता विलियम फ्लोरेंस की इस इच्छा के खिलाफ थे, क्योंकि नर्सिंग को उस वक्त सम्मानित पेशा नहीं माना जाता था। अस्पताल भी गंदे होते थे और बीमारों के मर जाने से डरावना जैसा लगता था। फ्लोरेंस ने सेवा की अपनी जिद मनवा ली और साल 1851 में उन्होंने नर्सिंग की पढ़ाई शुरू कर दी। 1853 में उन्होंने लंदन में महिलाओं का अस्पताल खोला। साल 1854 में जब क्रीमिया का युद्ध हुआ तब ब्रिटिश सैनिकों को रूस के दक्षिण स्थित क्रीमिया में लड़ने को भेजा गया। ब्रिटेन, फ्रांस और तुर्की की लड़ाई रूस से थी। युद्ध से जब सैनिकों के जख्मी होने और मरने की खबर आई तो फ्लोरेंस नर्सों को लेकर वहां पहुंची। बहुत ही बुरे हालात थे। गंदगी, दुर्गंध, उपकरणों की कमी, बेड, पेयजल आदि तमाम असुविधाओं के बीच काफी तेजी से बीमारी फैली और सैनिकों की संक्रमण से मौत हो गई। फ्लोरेंस ने अस्पताल की हालत सुधारने के साथ मरीजों के नहाने, खाने, जख्मों की ड्रेसिंग आदि पर ध्यान दिया। सैनिकों की हालत में काफी सुधार हुआ। युद्ध काल में फ्लोरेंस नाइटिंगेल ने घायल और बीमार सैनिकों की देखभाल में दिन-रात एक कर दी। रात में जब सब सो रहे होते थे, वह सैनिकों के पास जाकर देखती थीं कि कहीं उन्हें कोई तकलीफ तो नहीं। सैनिक आराम से सो सकें, इसके लिए वह सेवा में लगी रहती थीं। सैनिकों की ओर से उनके घरवालों को फ्लोरेंस चिट्ठियां भी लिखकर भेजती थीं। रात में हाथ में लालटेन लेकर वह मरीजों को देखने जाती थीं और इसी कारण सैनिक आदर और प्यार से उन्हें 'लेडी विद लैंप' कहने लगे। साल 1856 में वह युद्ध के बाद लौटीं, तो उनका यह नाम प्रसिद्ध हो गया था। 13 अगस्त, 1919 को फ्लोरेंस नाइटिंगेल का निधन हो गया। फ्लोरेंस नाइटिंगेल के सम्मान में उनके जन्मदिन को नर्स दिवस के तौर पर मनाने की शुरुआत की गई। इस खास मौके पर नर्सिंग के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान देने वाली नर्सों को फ्लोरेंस नाइटिंगेल पुरस्कार से भी सम्मानित किया जाता है।