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Independence Day 2022: इन्होंने धर्म नहीं बदला, बदल दिया वतन ही, जमींदार परिवार को छोड़नी पड़ी अपनी जमीन ही

Independence Day 2022 एक संदेशा और छोडना पड़ा घर-वार। देश विभाजन के बाद त्रासदी की यादें हैं आज भी ताजा। भरा-पूरा कारोबार व घर छोड़कर बनना पड़ा शरणार्थी। आज उसी शरणार्थी परिवार का बेटा आगरा शू फैक्टर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष।

By Tanu GuptaEdited By: Published: Sun, 14 Aug 2022 01:43 PM (IST)Updated: Sun, 14 Aug 2022 01:43 PM (IST)
Independence Day 2022: इन्होंने धर्म नहीं बदला, बदल दिया वतन ही, जमींदार परिवार को छोड़नी पड़ी अपनी जमीन ही
गागन दास रामानी, अध्यक्ष आगरा शू फैक्टर्स एसोसिएशन ।

आगरा, जागरण संवाददाता। अगस्त 1947 में विभाजन की प्रक्रिया शुरू होते ही पाकिस्तान से हिंदुओं का पलायन शुरू हो गया। हिंदुओं, सिंधी और सरदारों को सिर्फ दो ही विकल्प दिए गए, या तो धर्म बदलो या सबकुछ छोड़कर भाग जाओ। मरते क्या न करते, जमींदारी और करोड़ों की संपत्ति व हवेली छोड़कर भारत की ओर दौड़ लगानी पड़ी। ट्रेन से बाड़मेर पहुंचें, वहां से जोधपुर, जयपुर होते हुए आगरा पहुंचें और यहीं आकर बस गए।

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पलायन की चर्चा होते ही मारूती एस्टेट निवासी सेवानिवृत बैंक अधिकारी व आगरा शू फैक्टर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष गागन दास रामानी के नजरों के सामने पूरी कहानी चलना शुरू हो जाती है, जो उनके पिता और दादा के साथ घटी। वह बताते हैं कि गांव में जमींदारी और शान-ओ-शौकत होने के बाद भी सिर्फ एक रात में सभी बेघर होकर दर-दर की ठोकरें खानेे को मजबूर हो गए।शरणार्थी शिविर में जगह नहीं मिली, तो सड़कों पर परिवार के साथ रात गुजारी।

कई इलाकों में बसाए लोग

पाकिस्तान से करीब 15 हजार सिंधी और पंजाबी आगरा आए।तो हमें उन लोगों के घरों में बसाया गया, जो विभाजन के बाद पाकिस्तान चले गए थे। बिल्लोचपुरा, शाहगंज, नाई की मंडी, काला महल, ताजगंज, घटिया आदि क्षेत्रों में मिले मकानों का किराया एक से दो रुपये महीना होता था।

दादा थे जमीदार

वह बताते हैं कि दादा वीएम रामानी पाकिस्तान के शहजादपुर में जमीदार थे। ब्याज पर पैसा उधार देने का बड़ा काम था। पिता बाधुमल रामानी दादा का साथ देते थे। लेकिन अगस्त 1947 में एक दिन सुबह दादा और पिता को संदेश मिला कि या तो इस्लाम स्वीकार करो या भारत चले जाओ। अचानक यह सुनकर वह परेशान हो गए क्योंकि करीब 10 लाख रुपया उधारी में बंटा था, वापसी की स्थिति न देख खुद की जान बचाने को उन्हें जो हाथ लगा, वह बटोर कर भारत के लिए निकल लिए।

अपने दम पर बनाई पहचान

दादा और पिता ने आगरा आगरा सुभाष बाजार में कपड़े का काम शुरू किया। धीरे-धीरे गाड़ी पटरी पर आयी, लेकिन 1967 में दादा और 1969 में पिता का देहांत हो गया, मैं छोटा था, इसलिए काम नहीं संभाल पाया और उसे बंद करना पड़ा। लेकिन मैं पढ़ाई में अच्छा था। इसलिए मेहनत की और बैंक आफ इंडिया में अधिकारी बना। वर्ष 2000 में सेनानिवृत होने के बाद भाजपा नेता राजकुमार सामा के संपर्क में आने के बाद आगरा शू फैक्टर्स एसोसिएशन अध्यक्ष की जिम्मेदारी मिली। सिंधी सेंट्रल पंचायत महामंत्री की जिम्मेदारी संभाली। अब बडा बेटा हरीश जयपुर में प्रापर्टी डीलर है, छोटा बेटा दीपक आगरा में शू कारोबारी है। 


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