जागरण विमर्श: खर्चों की पूर्ति के लिए फीस वृद्धि शिक्षण संस्थानों की मजबूरी Agra News
डॉ. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय के गणित विभाग के प्रो. संजीव कुमार ने रखे विचार। कहा बीएचयू एएमयू में भी फीस बढ़ाई गई फिर जेएनयू को लेकर विरोध सही नहीं।
आगरा, आशीष कुलश्रेष्ठ। दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में फीस वृद्धि के मुद्दे पर बवाल उचित नहीं है। सभी शिक्षण संस्थानों ने फीसवृद्धि की है, चाहे वह बीएचयू हो या एएमयू। फिर जेएनयू ही अपवाद क्यों? वहां तो हॉस्टल फीस आज भी काफी कम है। महंगाई बढऩे का शिक्षण संस्थानों पर भी असर पड़ता है। बिल्डिंग के रखरखाव से लेकर अन्य तमाम खर्चों की पूर्ति फीस से ही होती है। देश के हर शिक्षण संस्थान में फीस बढ़ाया जाना जायज है।
ये कहना है कि डॉ. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय के गणित विभाग के प्रोफेसर संजीव कुमार का। वे सिकंदरा स्थित दैनिक जागरण कार्यालय में 'जागरण विमर्श' में 'क्या हो उच्च शिक्षा संस्थानों की फीस वृद्धि का पैमाना' विषय पर विचार प्रकट कर रहे थे। उन्होंने कहा कि उच्च शिक्षण संस्थानों में सबसे पहले आइआइटी इंस्टीट्यूशंस ने फीस वृद्धि की। समय के साथ अन्य सरकारी और गैर सरकारी शिक्षण संस्थान भी इससे अछूते नहीं रहे। महंगाई बढऩे के साथ तमाम खर्चों को मेंटेन करने के लिए उन्हें भी फीस बढ़ानी पड़ी। फीस बढ़ाना संस्थानों की मजबूरी है, ऐसा नहीं करने पर वे खर्चों की पूर्ति नहीं कर सकेंगे। उन्होंने कहा कि जिस प्रोफेसर की तनख्वाह वर्ष 1999 में पांच से छह हजार रुपये प्रतिमाह थी, अब 70 हजार रुपये तक पहुंच गई है। सरकार किसी भी शिक्षण संस्थान की बिल्डिंग बनाकर शिक्षकों की नियुक्ति, वेतन का भुगतान तो कर सकती है, लेकिन प्रतिदिन होने वाले अन्य खर्चों (बिजली, पानी, खानपान, केयर टेकर, मेंटेनेंस आदि) का वहन नहीं करती। एडमिशन के लिए छपवाए जाने वाले ब्रोशर तक का खर्चा संस्थान को खुद ही भुगतना पड़ता है। ऐसे में वे छात्रों की फीस में बढ़ोत्तरी कर दें तो क्या गलत है?
... तो देश भर के 70 फीसद विवि हो जाएंगे बंद
यदि छात्रों की फीस नहीं बढ़ानी तो सरकार सभी शिक्षण संस्थानों में मुफ्त शिक्षा मुहैया कराए। यदि ऐसा हुआ तो देशभर के 70 फीसद विश्वविद्यालय बंद हो जाएंगे।
शिक्षण संस्थानों को वहन करने पड़ते कई खर्चे
डॉ. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय हो या कोई अन्य उच्च शिक्षण संस्थान। वहां लेक्चर देने के लिए आने वाले एक्सपर्ट का पारश्रमिक तो सरकार देती है, लेकिन उनके जलपान का खर्चा नहीं देती। सवाल यह कि वह खर्चा कहां से आए? इसके अलावा भी ऐसे तमाम खर्चे हैं जो शिक्षण संस्थानों को खुद ही वहन करने पड़ते हैं। यही वजह है कि समय-समय पर फीस बढ़ाई जाती है।
कई यूरोपीय देशों में पीजी तक पढ़ाई मुफ्त
सिक्के का दूसरा पहलू ये भी है कि ऐसे कई यूरोपीय देश हैं, जहां छात्र-छात्राओं की रुचि पढ़ाई में नहीं है। फिनलैंड, आयरलैंड, आस्ट्रिया के विश्वविद्यालयों में छात्र संख्या काफी कम है। वहां सरकारों की तरफ से ग्रेजुएशन, पोस्ट ग्रेजुएशन तक की पढ़ाई को मुफ्त किया गया है। वहां की सरकारें अन्य कई तरीकों से भी छात्र-छात्राओं को पढ़ाई के प्रति जागरूक कर रही हैं।