आपदा में अवसरः मिलिए आगरा के इन युवाओं से, जिन्होंने नौकरी से ज्यादा दी स्वरोजगार को तरजीह
आपदा में अवसरः आगरा में युवाओं ने दी नौकरी से ज्यादा स्वरोजगार को तरजीह। इन्होंने आपदा का हकीकत में बनाया अवसर। कल तक खुद करते थे आज दे रहे हैं नौकरी। शुरुआत छोटे से की लेकिन आज गाड़ी चल निकली है और वह नौकरी छोड़ दूसरों को नौकरी दे रहे।
आगरा, जागरण संवाददाता। कभी नौकरी सुरक्षित लगती थी, बिना लागत एकमुश्त रकम महीने के अंत में हाथ में आना सुखद अहसास देता था। लेकिन कोरोना काल ने सारी मुश्किलों से रूबरू करा दिया। किसी की नौकरी गई, तो किसी का वेतन आधा रह गया, तो किसी को उतने ही वेतन में दो से तीन गुना तक बढ़ गया। इससे युवाओं का मन नौकरी से भटका, तो उन्होंने दूसरे रास्ते तलाश लिए। शुरुआत छोटे से की, लेकिन आज गाड़ी चल निकली है और वह नौकरी छोड़ दूसरों को नौकरी दे रहे हैं।
फाइनेंस कंपनी छोड़ खोला स्टोर
नेहरू एन्कलेव निवासी गौरव कौशिक ने एमबीए करने के बाद फाइनेंस कंपनी ज्वाइन की। मथुरा के ब्रांच मैनेजर थे, अच्छी खासी नौकरी और वेतन था, लेकिन लाकडाउन में काम प्रभावित होने से आय आधी, तनाव दोगुना हो गया। असर स्वास्थ्य पर पड़ा, तो हास्पिटल में भर्ती होने की नौबत आ गई। ऐसे में परिवार के प्रोत्साहन से उन्होंने नौकरी से इस्तीफा देकर अपना डिपार्टमेंटल स्टोर खोलकर नई शुरुआत की। अब खुद के लिए मेहनत करते है, जो धीरे-धीरे रंग दिखा रही है।
नौकरी की अनिश्चितता ने बदला मन
रामबाग निवासी अनूप शर्मा ने एमबीए करने बाद एक मल्टीनेशनल कंपनी को बतौर सेल्स सुपरवाइजर ज्वाइन किया। वेतन ठीकठाक था, लेकिन अनिश्चितता बहुत थी। लाकडाउन की परिस्थितियों ने उन्हें मजबूर कर दिया, तो उन्होंने निर्णय लेने में देर नहीं की। सूरजभान की बगीचा में रिटेल शाप खोलकर शुरुआत की। थोड़ी मुश्किलें भी आयीं, लेकिन बाद में बात बन गई। उनका कहना है कि नौकरी में एकमुश्त वेतन का मोह था, लेकिन अनिश्चितता ने उन्हें मन बदलने के लिए मजबूत कर दिया, अपने निर्णय से वह संतुष्ट हैं।
बने आत्मनिर्भर
खंदारी निवासी भूपेंद्र शर्मा एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करते थे।वेतन कम जिम्मेदारी अधिक थी। अनिश्चितता का भी डर था। काम में मन नहीं लगता था। कोरोना ने स्थिति और खराब की, तो आत्मनिर्रभ होने का निर्णय लिया। बाजार की रिसर्च करने के बाद दयालबाग में डिटर्जेंट पाउडर बनाने की फैक्ट्री खोली, साथ में एक अन्य कंपनी के खाद्य पदार्थ की सीएंडएफ एजेंसी ले ली। शुरुआती दिक्कतों से निर्णय पर पर डर भी लगा, लेकिन अब गाड़ी पटर पर लौट आयी है। उनका कहना है कि जोखिम लेकर आत्मनिर्भर होने से आत्मविश्वास बढ़ा है। कभी नौकरी करते थे, आज पांच लोगों को काम दे रहे हैं।
मुश्किल निर्णय था लेना
सुभाष पार्क स्थित बैंक कालोनी निवासी चंदन बंसल एक निजी कंपनी में वीडियो एडिटर थे। बताते हैं कि नौकरी में पैसा कम, जिम्मेदारी ज्यादा थी। तरक्की को लेकर अनिश्चित थी, जो कोरोना से और बढ़ गई। निराश होने की जगह आनलाइन मल्टीमीडिया कोर्स किया और नौकरी छोड़कर खुद का काम शुरू कर दिया। शुरुआती दिनों में हाथ तंग रहा, आर्थिक तंगी देखकर निर्णय गलत होने की आशंका भी सताई, लेकिन निराश होने की जगह मेहनत की। संपर्कों के दम पर काम आने लगा और व्यस्तता बढ़ती गई। बाहर की कंपनियों से आनलाइन काम मिलना शुरू हो गया, आज नौकरी से बेहतर कमा रहे हैं।