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मंदिर जाकर क्यों मिलती है मन को शांति, जानिये क्या है धर्म के साथ वैज्ञानिक रहस्य

दैव ऊर्जा का प्रवाह होता है मंदिर के हर कण में। वास्तु के अनुसार बनाए गए हैं प्राचीन मंदिर, इसलिये दर्शन करने से मिलता है पूर्ण फल।

By Prateek GuptaEdited By: Published: Sun, 28 Oct 2018 05:11 PM (IST)Updated: Sun, 28 Oct 2018 09:27 PM (IST)
मंदिर जाकर क्यों मिलती है मन को शांति, जानिये क्या है धर्म के साथ वैज्ञानिक रहस्य

आगरा [जागरण संवाददाता]: जब कभी जीवन में कुछ समझ नहीं आता और संघर्षों से मन हारता जाता है तो कदम खुद ब खुद मंदिर की ओर चल पड़ते हैं। लेकिन क्या कभी सोचा है कि परेशानियों के झंझावतों में लड़खड़ाता मन मंदिर में जाकर क्यों स्थिर हो जाता है। धर्म वैज्ञानिक पंडित वैभव जोशी ने जागरण डॉट कॉम के साथ मंदिर के धार्मिक के साथ वैज्ञानिक रहस्यों को साझा किया, जिसमें सामने आए ऊर्जा संचार के महत्वपूर्ण तथ्य।

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पंडित वैभव जोशी ने सबसे पहले दर्शन और पूजन का वैज्ञानिक स्वरूप बताया। उन्होंने कहा कि हमारे देश में प्राचीन मंदिर धरती के धनात्मक यानी पॉजिटिव ऊर्जा केंद्रों पर बनाये गए हैं। ये मंदिर आकाशीय ऊर्जा के ग्रिड हैं। भक्त मंदिर में नंगे पैर होता है। इससे उसके शरीर में अर्थ प्रवाहित होने लगता है। जब हाथ जोड़ता है तो शरीर का ऊर्जा चक्र चलने लगता है। देव प्रतिमा के आगे सिर झुकाता है तो प्रतिमा से परावर्तित होने वाली पृथ्वी व आकाशीय तरंगे मस्तक पर पड़ती हैं और मस्तक पर स्थित आज्ञा चक्र पर प्रभाव डालती है। जिससे सकरात्मक विचार आते हैं। भक्त अपने अंदर एक विशेष ऊर्जा और हल्केपन तथा शांति का अनुभव करने लगता है।

विशेष होता है मंदिर का शिखर

मंदिर के शिखर का भी विशेष महत्व होता है। पंडित वैभव जोशी बताते हैं कि मंदिर के शिखर की भीतरी सतह से टकरा कर ऊर्जा तरंगें व ध्वनि मनुष्य को प्रभावित करती हैं। ये परावर्तित तरंगें मानव तन की प्राकृतिक आवृति बनाये रखने में भी सहायक सिद्ध होती है। पंडित वैभव के अनुसार ध्वनि, प्रकाश, वायु आदि सभी मे तरंगें होती हैं। कोई भी तरंग सीधी रेखा में नही चलती सभी की अपनी आवृति होती है। विस्फोट होता है। ये जितनी अधिक शक्तिशाली होगी उसका उतना ही अधिक क्रिया क्षमता पर असर पड़ेगा। मन्दिरों में शंख, घण्टे और मन्त्रों की ध्वनि में एक विशेष आवृति बनती है। वह दैवीय ऊर्जा होती है जो हमें मानसिक शारीरिक और आत्मिक रूप से दृढ़ बनाती है।

मंदिर के गर्भगृह का रहस्य

पंडित वैभव जोशी कहते हैं कि कई बार लोग सवाल करते हैं कि मंदिर के गर्भगृह में सभी का प्रवेश क्यों नहीं होता जबकि भगवान तो सभी के हैं। इसके पीछे वैज्ञानिक कारण है। दरअसल दैवीय ऊर्जा गर्भ गृह के माध्यम से पूरे मंदिर को प्रवाहित करती रहती है। अर्चक ही प्रवेश का अधिकारी होता है। सामान्य जन बाहर से दर्शन करते है।

मंदिर के गुंबद

देखा जाये तो हमारे देश में मंदिरों के गुंबद पिरामिड के आकार जैसे होते हैं। जो कास्मिक ऊर्जा के संपर्क में रहते हैं। प्रतिमा का सीधा संबंध उस ऊर्जा से सदा बना रहता है। जब भक्त प्रतिमा के समक्ष जाता है तो उसका ब्रेन कास्मिक वेव के संपर्क में आ जाता है और ब्रेन यानी मस्तिक के न्यूरॉन्स विशेष प्रकार से सक्रिय होने लगते हैं। उस समय भक्त प्रतिमा के सामने जो भी प्रार्थना करता है उसका फल उसे अवश्य मिलता है। प्रार्थना जितनी गहन होगी उतनी ही जल्दी फलित भी होती है।

मंदिर की शुद्धता

पंडित वैभव कहते हैं कि जहां तक देखा जाता है दक्षिण भारत के मंदिरों में शुद्धता का विशेष ख्याल रखा जाता है। जहां शुद्धता है वहां वैभव और समृद्धि होगी। वर्तमान में दक्षिण भारत ज्ञान, विज्ञान और समृद्धि में अन्य राज्यों से आगे ही है। इसके मूल में है दैवीय ऊर्जा। आज कल लोग मंदिर तो जाते हैं लेकिन शुद्धता का ख्याल नहीं रखते। अशुद्ध मन और तन के साथ मंदिर में प्रवेश कर जाते हैं। इससे ऊर्जा तो खंडित होती ही है और दैवीय ऊर्जा भी कम होने लगती है। साथ में दर्शन करने वाले को कोई फल भी नहीं मिलता।

मंदिर का द्वार

मंदिर के द्वार के रहस्य के बारे में पंडित वैभव जोशी का कहना है कि वर्तमान में बन रहे मंदिरों के निर्माण में द्वारा पर विशेष ध्यान नहीं दिया जाता, जबकि प्राचीन मंदिर और गर्भ गृह का द्वार बड़ा नहीं होता था। बस एक ही भक्त एक बार मे प्रवेश कर सके, इस शिल्प से द्वार बनाया जाता था ताकि कास्मिक ऊर्जा का संतुलन बना रहे। उसी प्रकार मंदिर का चौखट का महत्व है। मंदिर का चौखट सामान्य चौखट से ऊंची और चौड़ी होती है। यह पत्थर, लकड़ी आदि की होती है उस पर सोने, चांदी, पीतल आदि से कवर किया जाता है इसलिए कि मंदिर की दिव्य ऊर्जा बाहर विकीर्ण न हो सके। मंदिर की ऊर्जा मंदिर के अंदर ही रहे।

इसके पीछे आध्यात्मिक रहस्य भी है। चौखट पर भगवान नर सिंह का वास माना जाता है इसलिए उसे स्पर्श कर सिर पर लगाना या सिर से स्पर्श करना चाहिए। मंदिर में प्रवेश करते समय पैर चौखट से स्पर्श न हो। मंदिर की चौखट लाल या पीले रंग से रंगी जाती है। उसके दोनों तरफ तीन रंग की धारियां होती हंै। लाल पीला और सफेद यह सत्व रज और तम का प्रतीक हैं।


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