होली का हुरंगा : फाड़े कपड़े और हुरियारों पर बरसाए कोड़े, ये है ब्रज की अनोखी होली
बलदेव के विश्व प्रसिद्ध हुरंगा में सराबोर होने को देश- दुनिया के श्रद्धालु एकत्रित हुए। 1582 से चली आ रही परंपरा।
मथुरा, जेएनएन। प्रेम से पगी लाठियां खाने के बाद अब ब्रज के हुरियारे झेल रहे हैं हुरियारनों के कोड़े। हालाकि ये भी रूप है एक प्रेम का लेकिन इस प्रेम की लीला निराली है। पहले ठिठोली, फिर होली और अब कपड़े फाड़कर कोड़ों संग हुरंगा। ये ब्रज है जनाब, यहां होता है होली का हुरंगा।
होली के एक दिन बाद बुधवार को बलदेव की छटा देवलोक सी नजर आ रही है। बलदेव के हुरंगा का नजारा देखने को प्रकृति भी व्याकुल थी। भगवान श्रीकृष्ण- बलदेव के स्वरूपों ने जैसे ही होली खेलने की आज्ञा दी, आसमान से फूलों और अबीर गुलाल की बरसात होने लगी। मंदिर में अबीर गुलाल के बादल से आसमान सतरंगी हो गया। हुरियारिनों ने कपड़े फाड़कर कोड़ा बनाकर हुरियारों की पिटाई शुरू कर दी। टेसू के रंगों की बरसात से मंदिर प्रांगण लबालब हो गया। घंटों चले कोड़ामार होली से बलदेव का वातावरण हुरंगामय हो गया।
ब्रज में होली के बाद हुरंगा का दौर शुरू हो गया है। बलदेव के विश्व प्रसिद्ध हुरंगा में सराबोर होने को देश- दुनिया के श्रद्धालु एकत्रित हुए थे। मंदिर प्रांगण में पैर रखने का भी स्थान नहीं था। आने वाले श्रद्धालु बलदाऊ महाराज और रेवती मैया के दर्शन कर निहाल हो रहे थे। परंपरागत समाज गायन भी सुबह से ही शुरू हो गया था। हुयारिनों ने भांग घोट कर दाऊजी महाराज का भोग लगाया। मंदिर में रसिया गायन देश- दुनिया के श्रद्धालुओं को मंत्रमुग्ध कर रहा था। नफीरी के स्वर वातावरण में मधुरता घोल रहे थे। दोपहर 12 बजे के लगभग हुरियारे और हुरियारिन ने मंदिर में रसिया गाते हुए मंदिर में प्रवेश किया। रसिया गायन पर श्रदालु झूमने लगे। झंडा लेकर दाऊ जी महाराज की आमंत्रित किया। मंदिर में अबीर गुलाल और फूलों की बरसात शुरू ही गई। बलदेब का आसमान सतरंगी हो गया। हुरियारिन हुरियारों के कपडे फाड़कर उन पर कोड़े बरसाती रही। हुरंगा के बाद हुरियारे और हुरियारिन ने नगर परिक्रमा करेंगे।
क्या है हुरंगा
गांव की महिलाएं लोगों को रंगों से सराबोर करती हैं। उसके बाद उनकी हंटर से पिटाई लगाती हैं। कुछ देर पिटाई करने के बाद दूसरी महिला हंटर ले लेती है और दूसरे व्यक्ति की पिटाई करने लगती है। प्रेम के हंटर की मार खाने के बाद भी लोग आनंदित होते हैं। नवविवाहित महिलाएं भी शामिल होती हैं।
रंगभरा तालाब बना मंदिर परिसर
विश्व प्रसिद्ध हुरंगे को भव्य बनाने के लिए मंदिर प्रबंधन द्वारा व्यापक इंतजाम किए गए थे। इस दौरान कई कुंटल रंग-बिरंगा गुलाल मशीनों के माध्यम से उड़ाया गया। रंग बनाने के लिए टेसू के फूल व केसर मंगाया गया था। गुलाब के फूल व गेंदा के फूल छतों से भक्तों पर लुटाए गए। भुरभुर की वर्षा भी रूक-रूक कर होती रही। कुछ ही पलों बाद मंदिर प्रागंण तालाब में तब्दील हो गया। छज्जों पर लगे फव्वारों से भी पानी की वर्षा की गई।
पद गायन ने लगाए चार चांद
दाऊजी हुरंगा में पदों के माध्यम से संकीर्तन मंडली ने भी चार चांद लगाए। छैल-छबीलौ ठाकुर मैरो भयौ है आज रंगीलो, होरी कैसे खेलूंगी जा दाऊजी के संग, माने ना मोरी के रसिया माने ना मोरी, ढप बाजौ रे छैल मतवारै को, सुन ले वृषभानु किशोरी, सारे ब्रज में होरी होवे दाऊजी होय हुरंगा, तेरी सबरी चमक बिगड़ जाएगी तू कह रही होरी-होरी, मेरी कोरी चुनरिया रंग गयौ री, होली बरसाने की देखी, हुरंगा दाऊ को मशहूर आदि पंक्तियों पर श्रद्धालुओं स्वयं को नृत्य करने से रोक ना सके।
1582 में हुई थी विग्रह की स्थापना
बलदाऊ की नगरी बलदेव में हुरंगा की परंपरा पांच सौ वर्ष पुरानी है। माना जाता है कि श्री बलदाऊ के विग्रह की यहां प्रतिष्ठा 1582 में हुई थी। बताया जाता है कि मंदिर में विग्रह की स्थापत्य काल में बलदाऊ में हुरंगा खेलने की परंपरा पड़ी। हुरंगा को भव्य स्तर आयोजित करने की पंरपरा तभी से चली आ रही है।
बांकेबिहारी मंदिर में धुल्हेंडी पर धमाल
इससे पहले धुल्हेंडी के दिन ठाकुर बांके बिहारी जी के मंदिर के पट सुबह 7.45 बजे खुल गए थे। शृंगार आरती के बाद मंदिर में होली का धमाल शुरू हो गया, जो दोपहर बाद एक बजे तक लगातार चला। वृंदावन की कुंज गलियों में होली के रंग उड़ते रहे। एक दूसरे के ऊपर लोग ने प्रेम से रंग बरसाए। आश्रमों में भी खूब होली हुई। अपरान्ह तक होली होती रही। शाम को ठाकुरजी के पट खुल गए और गरमा गरम जलेबी का ठाकुरजी को भोग लगाया गया।
जन्मभूमि पर ब्रजवासियों संग होली
कान्हा की जन्मभूमि श्रीकृष्ण जन्मस्थान पर भी श्रद्धालु बड़ी संख्या में दर्शन करने के लिए पहुंचे और इसके बाद दूरदराज के आए श्रद्धालुओं ने ब्रजवासियों के साथ होली खोली। गली मुहल्लों में भी दिन भर होली होती रही। युवाओं के समूह समूह रंग, गुलाल और अबीर बरसाते हुए निकले। समूचा ब्रज होली के रंगों से सराबोर हो गया। द्वारिकाधीश मंदिर पर भी होली खेली गई। यमुना के घाटों पर लोग होली की मस्ती में झूमते नजर आए। भांग की तरंग के साथ रसिया गायन करते हुए होली खेली। ब्रज दर्शन करने के लिए आए श्रद्धालु जो भी घाट किनारे पहुंचे और उनके ब्रजवासियों ने होली के प्रेम रंग से रंग दिया।
राधारानी के आंगन में उड़ा गुलाल
बरसाना में भी राधारानी के आंगन में होली की मस्ती छायी रही। लाडि़लजी ने गर्भगृह से निकल कर संगमरमर की सफेद छतरी पर आई। यहां से अपने भक्तों पर रंगों की बरसात की गई। जो जीवैगो सो खेलेगे, ढप धर दे यार गई परकी के धमार गायन के साथ फाग महोत्सव का समापन हो गया। नंदगांव, गोकुल, मधुवन और गोवर्धन में भी होली जमकर होली गई। यहां के मंदिर, मठ और आश्रमों में भी श्रद्धालुओं ने होली का उत्सव धूमधाम से बनाया।