Holi in Braj: जब बिहारी जी में चांदी की पिचकारी से बरसेंगे टेसू के रंग
ठा. बांकेबिहारी मंदिर में होली के उल्लास का नजारा ही होगा निराला। छह मार्च रंगभरनी एकादशी को ठा. बांकेबिहारी में होगी रंगों की होली।
आगरा, जेएनएन। ठा. बांकेबिहारी मंदिर में रंग भरनी एकादशी को होली का उल्लास निराला होगा। रंगों से सराबोर श्रद्धालु आनंद से मदमस्त नजर आएंगे। यह उल्लास ठा. बांकेबिहारी जी की चांदी की पिचकारी से निकलने वाले टेसू के रंग से बरसेगा। मंदिर में इसे लेकर तैयारियां शुरू हो चुकी हैं। टेसू के फूल से रंग तैयार किया जा रहा है।
ठा. बांकेबिहारी मंदिर सेवायत श्रीनाथ गोस्वामी ने बताया कि रंगभरनी एकादशी पर ठा. बांकेबिहारी हुुरियारे का रुप धरेंगे। मोरमुकुट के साथ कटि-काछनी और श्वेत वस्त्रों में कमर पर गुलाल का फेंटा बांधा जाएगा। चांदी की पिचकारी लिए वह भक्तों को दर्शन देंगे। इसी पिचकारी से सेवायत ठाकुरजी की प्रसादी के रुप में टेसू का रंग भक्तों पर बरसाएंगे। भक्त मंदिर में बरसने वाले इस रंग की एक-एक बूंद अपने ऊपर उड़ेलने को उतावले नजर आते हैं। ठाकुरजी की चांदी की पिचकारी को दुरस्त कर लिया गया है। होली के लिए टेसू के फूलों को सुखाया जा रहा है। रंगभरनी एकादशी से एक दिन पहले उसे गर्म पानी में उबालकर रंग तैयार किया जाएगा। मंदिर में परंपरागत तरीके से टेसू के फूल से तैयार रंग का प्रयोग होली में होता है। ये टेसू का रंग त्वचा के लिए लाभदायक होता है।
होली में अपनों को खोजते हैं श्रद्धालु
बांकेबिहारी मंदिर में होली का रंग भक्तों पर ऐसा चढ़ता है कि अंदर पहुंचकर हर कोई रंग में सराबोर हो जाता है। मगर, जब वह मंदिर के बाहर निकलते हैं तो भक्तों की भीड़ में अपनों को पहचानने की कोशिश करते नजर आते हैं।
अद्भुत है मंदिर की मान्यता
श्रीधाम वृन्दावन, यह एक ऐसी पावन भूमि है, जिस भूमि पर आने मात्र से ही सभी पापों का नाश हो जाता है। ऐसा आख़िर कौन व्यक्ति होगा जो इस पवित्र भूमि पर आना नहीं चाहेगा तथा श्री बाँकेबिहारी जी के दर्शन कर अपने को कृतार्थ करना नहीं चाहेगा। यह मन्दिर श्री वृन्दावन धाम के एक सुन्दर इलाके में स्थित है। कहा जाता है कि इस मन्दिर का निर्माण स्वामी श्री हरिदास जी के वंशजो के सामूहिक प्रयास से संवत 1921 के लगभग किया गया। मंदिर में स्थित विग्रह को राधा कृष्ण का स्वरूप है। मान्यता है कि रात में बिहारी जी निधिवन रास करने चले जाते हैं। और सुबह मंदिर वापस आते हैं। इसलिए यहां वर्ष में एक बार जन्माष्टमी पर ही मंगला आरती होती है।