Holi Special: गुरुवार से शुरु हो रहे हैं होलाष्टक, अब आठ दिनों तक नहीं होगा कोई संस्कार
14 मार्च से 20 मार्च तक इस वर्ष रहेंगे होलाष्टक। 16 संस्कारों इन दिनों करने की होती है मनाही। अंतिम संस्कार से पूर्व भी करने होते हैं शांति कार्य।
आगरा, जागरण संवाददाता। रंग और उमंग के त्योहार की दस्तक यूं तो कई दिन पहले से ही आ चुकी है लेकिन विधिवत घोषणा के रूप में गुरुवार से होलाष्टक शुरु हो रहे हैं। जनमान्यता के अनुसार होलाष्टक शुरु होने के बाद से सभी शुभ कार्यों पर रोक जैसी लग जाती है। इस संदर्भ में ज्योतिषाचार्य डॉ शोनू मेहरोत्रा का कहना है कि होलाष्टक का शाब्दिक अर्थ होला+ अष्टक अर्थात होली से पूर्व के आठ दिन, जो दिन होते हैं, वह होलाष्टक कहलाते हैं। सामान्य रुप से देखा जाये तो होली एक दिन का पर्व न होकर पूरे नौ दिनों का त्यौहार है।धुलेण्डी के दिन रंग और गुलाल के साथ इस पर्व का समापन होता है।
डॉ शोनू बताती हैं कि चन्द्र मास के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को होलिका पर्व मनाया जाता है। होली पर्व के आने की सूचना होलाष्टक से प्राप्त होती है। होलाष्टक को होली पर्व की सूचना लेकर आने वाला एक हरकारा यानि संदेशवाहक कहा जा सकता है।
होली की शुरुआत होली पर्व होलाष्टक से प्रारम्भ होकर दुलेण्डी तक रहती है। इसके कारण प्रकृति में खुशी और उत्सव का माहौल रहता है। वर्ष 2019 में 14 मार्च 2019 से 20 मार्च, 2019 के मध्य की अवधि होलाष्टक पर्व की रहेगी। होलाष्टक से होली के आने की दस्तक मिलती है, साथ ही इस दिन से होली उत्सव के साथ-साथ होलिका दहन की तैयारियां भी शुरु हो जाती है।
होलिका दहन में होलाष्टक की विशेषता
होलिका पूजन करने के लिये होली से आठ दिन पहले होलिका दहन वाले स्थान को गंगाजल से शुद्ध कर उसमें सूखे उपले, सूखी लकडी, सूखी खास व होली का डंडा स्थापित कर दिया जाता है। जिस दिन यह कार्य किया जाता है, उस दिन को होलाष्टक प्रारम्भ का दिन भी कहा जाता है। जिस गांव, क्षेत्र या मौहल्ले के चौराहे पर पर यह होली का डंडा स्थापित किया जाता है वहां होलिका दहन होने तक कोई शुभ कार्य संपन्न नहीं किया जाता है।
होलाष्टक के दिन से शुरु होने वाले कार्य
सबसे पहले इस दिन, होलाष्टक शुरु होने वाले दिन होलिका दहन स्थान का चुनाव किया जाता है। इस दिन इस स्थान को गंगा जल से शुद्ध कर, इस स्थान पर होलिका दहन के लिये लकडियां एकत्र करने का कार्य किया जाता है। इस दिन जगह- जगह जाकर सूखी लकडियां विशेष कर ऐसी लकडियां जो सूखने के कारण स्वयं ही पेडों से टूट्कर गिर गई हों, उन्हें एकत्र कर चौराहे पर एकत्र कर लिया जाता है।
होलाष्टक से लेकर होलिका दहन के दिन तक प्रतिदिन इसमें कुछ लकडियां डाली जाती है। इस प्रकार होलिका दहन के दिन तक यह लकडियों का बड़ा ढेर बन जाता है। इस दिन से होली के रंग फिजाओं में बिखरने लगते है।अर्थात होली की शुरुआत हो जाती है। बच्चे और बडे इस दिन से हल्की फुलकी होली खेलनी प्रारम्भ कर देते है।
होलाष्टक में कार्य निषेध
होलाष्टक मुख्य रुप से पंजाब और उत्तरी भारत में मनाया जाता है। होलाष्टक के दिन से एक ओर जहां उपरोक्त कार्यो का प्रारम्भ होता है। वहीं कुछ कार्य ऐसे भी हैं जिन्हें इस दिन से नहीं किया जाता है। यह निषेध अवधि होलाष्टक के दिन से लेकर होलिका दहन के दिन तक रहती है। अपने नाम के अनुसार होलाष्टक होली के ठीक आठ दिन पूर्व शुरु हो जाते है।
होलाष्टक के मध्य दिनों में 16 संस्कारों में से किसी भी संस्कार को नहीं किया जाता है। यहां तक की अंतिम संस्कार करने से पूर्व भी शान्ति कार्य किये जाते है। इन दिनों में 16 संस्कारों पर रोक होने का कारण इस अवधि को शुभ नहीं माना जाता है।
होलाष्टक की पौराणिक मान्यता
डॉ शोनू के अनुसार फाल्गुण शुक्ल अष्टमी से लेकर होलिका दहन अर्थात पूर्णिमा तक होलाष्टक रहता है। इस दिन से मौसम की छटा में बदलाव आना आरम्भ हो जाता है। सर्दियां अलविदा कहने लगती हैं, और गर्मियों का आगमन होने लगता है।साथ ही वसंत के आगमन की खुशबू फूलों की महक के साथ प्रकृ्ति में बिखरने लगती है। होलाष्टक के विषय में यह माना जाता है कि जब भगवान भोले नाथ ने क्रोध में आकर काम देव को भस्म कर दिया था, तो उस दिन से होलाष्टक की शुरुआत हुई थी।
होलाष्टक से जुडी मान्यताओं को भारत के कुछ भागों में ही माना जाता है। इन मान्यताओं का विचार सबसे अधिक पंजाब में देखने में आता है। होली के रंगों की तरह होली को मनाने के ढंग में विभिन्नता है। होली उत्तर प्रदेश, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, तमिलनाडु, गुजरात, महाराष्ट्र, उडिसा, गोवा आदि में अलग ढंग से मनाने का चलन है। देश के जिन प्रदेशो में होलाष्टक से जुडी मान्यताओं को नहीं माना जाता है। उन सभी प्रदेशों में होलाष्टक से होलिका दहन के मध्य अवधि में शुभ कार्य करने बन्द नहीं किये जाते हैं।