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Gopinath Temple Vrindavan: सप्तदेवालय में शामिल गोपीनाथ मंदिर, चमत्कारी है भगवान की प्रतिमा, वक्षस्थल है हुबहू श्रीकृष्ण के जैसा

Gopinath Temple Vrindavan कछवाहा सरदार ने बनवाया था गोपीनाथ मंदिर। भगवान श्रीकृष्ण के प्रपौत्र बज्रनाभ ने देवशिल्पी विश्वकर्मा से निर्मित कराई गोपीनाथ की प्रतिमा का वक्षस्थल हूबहू भगवान श्रीकृष्ण जैसा है। दिर में विराजमान ठाकुरजी की मूर्ति बहुत ही चमत्कारी है

By Tanu GuptaEdited By: Published: Mon, 16 May 2022 02:03 PM (IST)Updated: Mon, 16 May 2022 02:03 PM (IST)
Gopinath Temple Vrindavan: सप्तदेवालय में शामिल गोपीनाथ मंदिर, चमत्कारी है भगवान की प्रतिमा, वक्षस्थल है हुबहू श्रीकृष्ण के जैसा
Gopinath Temple Vrindavan: वृंदावन स्थित गोपीनाथ मंदिर में विराजित भगवान श्रीकृष्ण की प्रतिमा।

आगरा, जागरण टीम। वृंदावन के सप्तदेवालयों में शामिल राधागोपीनाथ मंदिर भी चैतन्य महाप्रभु के अनुयायियों में शामिल मधु पंडित के सान्निध्य में करवाया गया था। यमुना किनारे केशीघाट के समीप स्थित लाल पत्थर का यह मंदिर भी वृंदावन की उस आध्यात्मकि उत्कर्ष की श्रृंखला का साक्षी है, जिसमें गोविंददेव, मदनमोजन, जुगलकिशोर मंदिर आते हैं। इन सभी मंदिरों ने मुगल बादशाह औरंगजेब की धार्मिक असहिष्णुता की नीतियों का कुुठाराघात अपने अस्तित्व पर सहन किया।

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मुगल बादशाह अकबर के दरबार में सम्मानित कछवाहा सरदार रायसेन ने इस मंदिर का निर्माण सन् 1589 में करवाया। अंग्रेजी हकूमत के दौरान मथुरा के डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट रहे इतिहासकार एफएस ग्राउस ने लिखा है गोविंददेव, गोपीनाथ मंदिर के निर्माण का काल लगभग समान रहा। औरंगजेब के शासनकाल में ठाकुरजी पहले कामवन और उसके बाद जयपुर में विराजे, जहां आज भी राजसी सेवा अंगीकार कर रहे हैं।

मंदिर के बारे में उल्लेख है कि शांडिल्य ऋषि की प्रेरणा से भगवान श्रीकृष्ण के प्रपौत्र बज्रनाभ ने देवशिल्पी विश्वकर्मा से निर्मित कराई गोपीनाथ की प्रतिमा का वक्षस्थल हूबहू भगवान श्रीकृष्ण जैसा है। इन्हीं के द्वारा निर्मित गोविंददेव की मूर्ति का मुखारबिंद और मदनमोहन के चरण बिल्कुल श्रीकृष्ण की प्रतिकृति हैं। कालांतर में यह मूर्ति गौड़ीय संत परमानंद भट्टाचार्य को वंशीवट के समीप यमुना तट पर प्राप्त हुई। जिसे उन्होंने सेवा के लिए अपने शिष्य मधु पंडित को दे दिया।

मधु पंडित की प्रेरणा से गोपीनाथ मंदिर का निर्माण हुआ और ठा. गोपीनाथ की सेवा पूजा आरंभ हुई। औरंगजेबा के काल में जयपुर में स्थायी रूप से सेवित होने के बाद सन् 1821 में नवीन मंदिर में गोपीनाथ जी के प्रतिभू विग्रह की स्थापना की गई। मंदिर परिसर में ही आचार्य मधु पंडित की समाधि भी स्थित है।

ऐसा कहा जाता है कि मंदिर में विराजमान ठाकुरजी की मूर्ति बहुत ही चमत्कारी है और मंदिर में आने वाले सभी भक्तों की हर मनोकामना पूरी करती है। गोपीनाथ मंदिर में वर्तमान में मुरलीधर भगवान की बांसुरी बजाते हुए दर्शन दे रहे हैं। भगवान श्रीकृष्ण अपनी बायीं ओर अनंग-मंजरी और दाहिनी ओर राधा जी के साथ खड़े हैं। ललिता और विशाखा दोनों तरफ उनका साथ देती हैं। मोक्ष की कामना करने वाले प्राणी और वृंदावन की पवित्रता की महसूस करने के लिए तीर्थ यात्रियों को अपने जीवन में कम से कम एक बार ठा. गोपीनाथ मंदिर में भगवान गोपीनाथजी के दर्शन करने चाहिए, जिसे वृंदावन के राधा गोपीनाथ मंदिर के रूप में भी जाना जाता है। 


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