पुराने काम को दे रहे नया आयाम
कोरोना काल में नौकरी के बजाय स्वरोजगार की अहमियत समझे युवा उच शिक्षा लेने के बाद चुन रहे अपना काम स्थापित करने की राह
आगरा, जागरण संवाददाता । कोरोना काल में बदली परिस्थितियों में युवा स्वरोजगार की अहमियत को समझ रहे हैं। उन्हें अहसास हो गया है कि कोई काम छोटा या बड़ा नहीं होता। दिल से किया गया हर काम सफल होता है। उच्च शिक्षा प्राप्त शहर के ऐसे कई युवा इसी राह पर हैं। वह पुराने काम को अपने अनूठे प्रयोगों से नए आयाम पर पहुंचा रहे हैं।
बाह के मुकुंदीपुरा निवासी हरिओम चक इनमें से एक हैं। एमएससी, एग्रीकल्चर में उनका अंतिम साल है। नौकरी तलाशने की बजाय वह अपने पैतृक काम में ही भविष्य तलाश रहे हैं। उन्होंने खेती को अपना लिया है। ये अलग बात है कि पिता शोभरन सिंह जिस पारंपरिक तरीके से खेती करते थे, उसमें उन्होंने बदलाव किया है। अपनी शिक्षा का उपयोग करते हुए हरिओम आर्गेनिक खेती कर रहे हैं। लाकडाउन के बाद उन्होंने टमाटर की पौध लगाई थी। जो अब फल-फूल गई है। वह हर सुबह घर से तैयार होकर कार से खेतों पर पहुंचते हैं और अपने हिसाब से मजदूरों से फसल में काम कराते हैं। इसके साथ ही पारंपरिक तरीके से गेहूं, बाजरा की फसल भी कर रहे हैं।
फतेहाबाद रोड निवासी यश खंडेवाल ने दयालबाग शिक्षण संस्थान से मास्टर आफ बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन (एमबीए) करने के बाद नौकरी के बजाय स्वरोजगार को प्राथमिकता दी। उन्होंने गाय के गोबर से काष्ठ, मूर्तियां, गमले बनाने का काम शुरू किया है। इसके माध्यम से वह दूसरों को भी रोजगार दे रहे हैं। फसल में अंतर
हरिओम का कहना है कि आर्गेनिक खेती के माध्यम से एक एकड़ जमीन में 80 क्रेट टमाटर निकलते हैं। जबकि सामान्य तरीके से टमाटर की पैदावर करने पर सिर्फ 10 से 12 क्रेट ही टमाटर निकलते हैं। लाकडाउन में तमाम लोगों की नौकरी छिन गईं। ऐसे में मुझे लगा कि ये नौबत कभी भी किसी के साथ आ सकती है। ऐसे में मैंने अपने पैतृक काम को ही करने का फैसला लिया। इसे नए तरीके से कर रहा हूं। आमदनी भी अच्छी हो रही है।
- हरिओम चक, एमएससी एग्रीकल्चर छात्र कोरोना काल में बाहर नौकरी करना सुरक्षित नहीं है। इसलिए मैंने अपना घर ना छोड़ने का फैसला लिया। वैसे भी अपना काम, अपना ही होता है। अभी शुरुआत की है। मेहनत कर रहा हूं। अच्छे परिणाम आएंगे। दूसरों को रोजगार भी दे रहा हूं।
यश खंडेलवाल, एमबीए