Move to Jagran APP

हिदी के लिए बापू का चरखा चलता रहा, जगाई अलख

साहित्य का गाधी पर प्रभाव और गाधी का साहित्य पर प्रभाव पर होनी चाहिए चर्चा हिदी को राष्ट्रभाषा के स्तर पर स्वीकार्य बनाने का स्वप्न रहा अधूरा केंद्रीय हिदी संस्थान में आयोजित की गई गोष्ठी

By JagranEdited By: Published: Thu, 24 Oct 2019 09:00 AM (IST)Updated: Sat, 26 Oct 2019 06:26 AM (IST)
हिदी के लिए बापू का चरखा चलता रहा, जगाई अलख
हिदी के लिए बापू का चरखा चलता रहा, जगाई अलख

आगरा, जागरण संवाददाता। साहित्य का गांधी पर प्रभाव और गांधी का साहित्य पर प्रभाव, इन दोनों विषयों पर चर्चा होनी चाहिए। चंपारण सत्याग्रह से हिदी के लिए बापू का चरखा शुरू हुआ और यह आज भी चल रहा है। इसे लेकर केंद्रीय हिदी संस्थान में बुधवार से आयोजित दो दिवसीय महात्मा गांधी के हिदी पर प्रभाव गोष्ठी में चर्चा की गई।

loksabha election banner

विशिष्ट अतिथि डॉ. राकेश उपाध्याय भारत अध्ययन केंद्र, बीएचयू, वाराणसी ने कहा कि महात्मा गांधी के चंपारण सत्याग्रह शुरू करते ही दशा और दिशा बदल गई। लोक गीत ने जन आंदोलन खड़ा कर दिया, इसमें भी मोरे चरखा का ना टूटे तार, चरखवा चालू रहे, गांधी महात्मा दूल्हा बने, दुल्हन बनी सरकार जुबां पर था। उन्होंने कहा कि गाधी का प्रभाव भारतीय साहित्य पर वैसा ही है जैसा परमात्मा का प्रभाव जन-जन पर है। गाधी किसी और देश में पैदा हो भी नहीं सकते। भारत के संपूर्ण संस्कार उस एक शरीर में एक साथ प्रकट हो गए। घृणा पैदा करने वाले साहित्य की आयु नहीं होती। भारतीय संस्कृति को जाने बिना साहित्य रचना नहीं हो सकती। साहित्य का गाधी पर प्रभाव और गाधी का साहित्य पर प्रभाव इन दोनों विषयों पर बात होनी चाहिए।

मुख्य अतिथि डॉ. राममोहन पाठक, कुलपति, दक्षिण भारत हिंदी प्रचार प्रो. राममोहन पाठक ने कहा कि गाधी जी का जीवन एक संकल्प-यात्रा थी। उनकी लोकयात्रा ने पूरे देश को प्रभावित किया। गाधी जी हिंदी के प्रति आग्रही थे। गाधी का एक स्वप्न अधूरा है कि हिंदी को राष्ट्रभाषा के स्तर पर स्वीकार्य बनाया जाए। गाधी जी ने कहा था कि 'हिंदी हृदय की भाषा है'। आज हिंदी को संपूर्ण भारत के हृदय की भाषा बनाने का दायित्व हम सब पर है। गाधी भारतीय साहित्य के लिए आज भी प्रकाश स्तंभ की तरह हैं। विशिष्टि अतिथि डॉ. उदय प्रताप सिंह, हिंदुस्तानी अकादमी, प्रयागराज ने कहा कि महात्मा गाधी राजनेता मात्र नहीं थे, मार्गदर्शक थे। संस्थान के निदेशक नंद किशोर पांडेय, संयोजक प्रो. हरि शकर, प्रो. उमापति दीक्षित, संचालन डॉ. सपना गुप्ता आदि मौजूद रहे।

लोक गीत की दी प्रस्तुति

अध्यापक शिक्षा विभाग के छात्र-छात्राओं ने अपने प्रदेशों के लोक गीत एवं नृत्य प्रस्तुत किए। भजन, ओडिसी नृत्य, अरुणाचली नृत्य, बिहू नृत्य (असम), बैम्बू नृत्य (नागालैंड), संबलपुरी नृत्य (ओडिशा), बांसुरी (असमिया लोक संगीत) और रियाग नृत्य (त्रिपुरा) की प्रस्तुति दी।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.