गणिकाओं के बच्चे बनाए 'मणिक', जानिये डॉक्टर दंपति कैसे बना समाज के लिए मिसाल
समाज से कैंसर को जड़ से खत्म करने को डॉक्टर दंपती कर रहे काम। बेटियों ने खोले ब्यूटी पॉर्लर, बेटे जा रहे स्कूल।
आगरा, अली अब्बास। दर्द के डॉक्टर ने ऐसा 'इलाज' किया कि तन बेचकर औरों का मनोरंजन करने वाली गणिकाओं का मन ही बदल गया। बेटियों को उनके भविष्य के लिए समाज की 'रिवाज' से मुक्त कर दिया। बेटों को नई राह पर चलने का आशीर्वाद दे दिया। आज आलम ये है कि बेटियां ब्यूटी पॉर्लर चला रही हैं और बच्चे स्कूलों में सुनहरे भविष्य की नई इबारत लिख रहे हैं।
शमसाबाद कस्बे के डॉ. वाइएस परमार और उनकी पत्नी डॉ. विनीता परमार 'चेतना सेवा समिति संस्था' का संचालन करते हैं। संस्था ने करीब दस वर्ष पहले देहात में महिलाओं को सेहत के प्रति जागरूक करने के लिए स्वास्थ्य शिविर लगाया। उन्होंने शिविर में पाया कि क्षेत्र विशेष की ज्यादातर महिलाएं गंभीर यौन रोगों से पीडि़त थीं। छानबीन में पता चला कि ये महिलाएं विभिन्न इलाकों में गणिकाओं के रूप में काम कर रही थीं।
डॉक्टर दंपती ने विभिन्न इलाकों में भ्रमण किया। करीब 700 सक्रिय गणिकाओं का ब्योरा जुटा लिया। दंपती ने इनके बीच जाकर संवाद करना शुरू किया। करीब एक वर्ष के प्रयास के बाद ये महिलाएं खुलकर अपनी समस्याएं बताने लगीं। उनका विश्वास जीतने के बाद गणिकाओं को सुरक्षित संबंध बनाने के लिए जागरूक किया। असुरक्षित यौन संबंध से उनको होने वाली बीमारियों के खतरों से आगाह किया।
चुनौती था गलीच धंधे से निकालना
डॉ. दंपती बताते हैं कि समाज के इस कैंसर को जड़ से खत्म करने के लिए गणिकाओं को उनके बच्चों, खासकर बच्चियों के भविष्य के प्रति सचेत करना शुरू किया। गणिकाएं इसके लिए शुरुआती दौर में कतई सहमत नहीं थीं। दंपती ने हार नहीं मानी। करीब एक वर्ष तक निरंतर काउंसिलिंग करते रहे। आखिर, मेहनत रंग लाई। गणिकाओं ने अपनी बेटियों को बस्ती से बाहर न जाने की शर्त भी रख दी। इस पर डॉ. दंपती ने इनकी बेटियों को उन्हीं के घर पर सिलाई- कढ़ाई, बुटिक, ब्यूटी पार्लर जैसे प्रशिक्षण देना शुरू करा दिया। कुछ ही दिनों में ये बेटियां अपने हुनर में माहिर हो गईं। अपने क्षेत्र में ही ये बेटियां बुटिक और ब्यूटी पार्लर चला रही हैं। इतना ही नहीं, इनके बच्चे भी स्कूल जाने लगे। डा. दंपती बताते हैं कि वर्तमान में कुल मिलाकर 142 बच्चे विभिन्न क्षेत्रों में स्कूल में पढ़ रहे हैं।
महिला-पुरुष, बच्चों की टीम ने एक महीने की काउंसिलिंग
डा. परमार दंपती बताते हैं कि गणिकाओं को अपने बच्चों को स्कूल भेजने के लिए राजी करने को संस्था ने पुरुष- महिला और बच्चों की तीन अलग- अलग टीम बनाईं। पुरुषों ने परिवार के पुरुष जबकि महिलाओं ने गणिका की काउंसिलिंग की। जबकि बच्चे एक महीने तक रोज स्कूल की ड्रेस पहनकर गणिकाओं के बच्चों के पास जाते। उन्हें अपनी तरह स्कूल में साथ चलने को कहते। एक दिन बच्चों ने गणिकाओं की बेटियों से कहा कि वह घर पर यह जिद कर लें, तभी बात बनेगी। गणिकाओं की बेटियों ने यही किया, उन्होंने खाना-पीना छोड़ स्कूल जाने की जिद कर ली।
स्कूल में मनवाया प्रतिभा का लोहा
गणिकाओं की बेटियों ने मौका मिलने पर स्कूल में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया। एक दर्जन से अधिक बेटियां अपनी क्लास में अव्वल आ रही हैं। वह काफी मेधावी हैं, उनकी प्रतिभा देख स्कूल के शिक्षक विशेष ध्यान रखते हैं।
यौन रोगों से मिली निजात
डॉ. दंपती के अनुसार, संस्था ने यह कार्यक्रम उ.प्र. एड्स कंट्रोल सोसाइटी, लखनऊ के सहयोग शुरू किया। शुरू के पांच साल तक उन्हें कोई खास सफलता मिलती नहीं दिख रही थी। मगर, गणिकाओं का विश्वास जीतने के चलते वह उनका लगातार स्वास्थ्य परीक्षण कराते रहे। छह साल बाद उन्होंने पाया कि गणिकाओं में यौन रोगों से संबंधित बीमारियों के ग्राफ गिरना शुरू हो चुका था। वर्तमान में एक भी गणिका एचआइवी पॉजीटिव नहीं है।