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आगरा ने राजनेता के बजाय प्रखर वक्ता और कवि के रूप में अटल बिहारी को अधिक स्वीकारा

यह ताजमहल, यह ताजमहल, यमुना की रोती धार विकल...यह ताजमहल का गान ही नहीं, अटल जी की पहली कविता भी थी।

By Nawal MishraEdited By: Published: Thu, 16 Aug 2018 06:59 PM (IST)Updated: Fri, 17 Aug 2018 12:58 AM (IST)
आगरा ने राजनेता के बजाय प्रखर वक्ता और कवि के रूप में अटल बिहारी को अधिक स्वीकारा

आगरा (संजय रुस्तगी)। यह ताजमहल, यह ताजमहल, यमुना की रोती धार विकल...। यह ताजमहल का गान ही नहीं, अटल जी की पहली कविता भी थी। आगरा का जितना गहरा नाता ताज से है, उतने ही गहरे रिश्ते अटल जी से भी थे। उनकी पहचान देश में भले ही कुशल राजनेता के रूप में रही, लेकिन आगरा उन्हें प्रखर वक्ता, साहित्यकार व कवि के रूप में ही जानता है। वह जब भी यहां आए, खुद को एक कवि के रूप में ही पेश किया। विकास को लेकर वह भले ही देश की चिंता रखते थे, लेकिन उनकी धड़कनों पर आगरा ही राज करता था। 

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पिता कृष्ण बिहारी वाजपेयी के  ग्वालियर में नौकरी करने के कारण अटल जी का जन्म वहीं हुआ था, लेकिन उनका पैतृक गांव आगरा जिला मुख्यालय से करीब 70 किलोमीटर दूर बसे गांव बटेश्वर से भी गहरा लगाव था। उन्होंने हमेशा आगरा और बटेश्वर और यहां के लोगों से जुड़ाव रखा। शायद यही कारण रहा, उन्होंने अपनी पहली कविता ताज को ही समर्पित की। आगरा के अलकापुरी में उनकी बहन कमला दीक्षित रहती थीं। उनके घर भी अटल जी का अक्सर आना-जाना था। अटल जी वर्ष 2005 में अंतिम बार आगरा आए। उनके भांजे अजय दीक्षित का निधन हो गया था। अटल जी के रिश्ते के भाई देवेंद्र वाजपेयी कहते हैं कि जब भी दिल्ली बंगले पर सभी परिवारीजन बैठते थे, तो वह (अटल जी) खुद ही कविता सुनाते थे। उनकी यादों में बटेश्वर हमेशा रहा। बटेश्वर के विकास का तानाबाना भी वह बुनते रहे। यही कारण था कि उन्होंने ट्रेन चलाने को रेल पटरी बिछाने का शिलान्यास किया था। 

हार के लिए नहीं जीत के लिए आया हूं 

पूर्व प्रधानमंत्री का आगरा से कितना गहरा लगाव था। उसकी एक बानगी ये भी है। वर्ष 1959 में वह फुलïट्टी में जनसभा को संबोधित कर रहे थे। संचालनकर्ता ने उनके माल्यार्पण करने के लिए कार्यकर्ताओं को बुलाया। इसी बीच अटल जी ने खुद उन्हें रोक दिया और बोले-मैं हार के लिए नहीं जीत के लिए आया हूं और खुद ही संबोधन शुरू कर दिया। 

शिखर वार्ता से आगरा को नया शिखर 

ये शायद अटल बिहारी वाजपेयी का आगरा के प्रति लगाव ही था कि उन्होंने पाक राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ के साथ वर्ष 2001 में शिखर वार्ता के लिए आगरा का ही चयन किया। शहर के जेपी पैलेस होटल में शिखर वार्ता की गई। होटल प्रबंधन ने आज भी उनकी कई यादें संजो कर रखी हैं। 

गलियां गुमसुम, गांव उदास

बटेश्वर (आगरा) वह गांव जहां अटल जी का बचपन बीता। जिसकी माटी में वह साथियों संग अठखेलियां करते थे। जो गलियां उनके अïट्टाहास से गूंजती थीं, बुधवार को वह गुमसुम हैं और गांव उदास। उदासी ऐसी कि हर आंख डबडबाई है। जिस लाल पर उन्हें नाज था, वह उन्हें सदा के लिए छोड़कर चला गया। 

बटेश्वर पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का पैतृक गांव रहा है। परिवार के अन्य लोग अभी भी बटेश्वर में रहते हैं। पिता की नौकरी के कारण वह ग्वालियर में ही बस गए। लेकिन स्कूल की छुïिट्टयों में वह बटेश्वर आते, तो बालसखाओं के साथ खूब मस्ती करते थे। गुरुवार को खुशी इस गांव से रूठी थी। तीर्थ नगरी का संकेत देते गांव के प्रवेश द्वार से कुछ अंदर बढ़े तो गांव का बाजार सजा था। खरीददारी के बीच हर शख्स की जुबां पर अटल जी के ही चर्चे थे। कुछ आगे बढ़े तो टीले पर बसे बटेश्वर गांव में भी अजीब सी खामोशी थी। गांव के अंदर घुसते ही राम सिंह का मकान है, वैसे तो रोज यहां दिन में कई बार ग्र्रामीण कोई न कोई चर्चा करते थे, लेकिन आज यहां सन्नाटा था। गांव की कच्ची गलियों से ही रास्ता अटल जी के पैतृक आवास को जाता था। जिन गलियों में रोज बच्चों की अठखेलियां होती थीं, वह सन्नाटे में डूबी हैं। घरों के चूल्हों में धधक आग की लपटें निधन की खबर से खुद-ब-खुद शांत हो गईं। अटल जी जब अस्पताल में थे, तो गांव का हर शख्स उनकी पल-पल की खबर पूछता। निगाहें टीवी पर लगती थीं। गुरुवार को जब उनकी दुनिया से रुखसती की खबर पहुंची, तो आंखों से आंसुओं की धारा बह चली। उनके चचेरे भाई राकेश वाजपेयी फफक कर रो पड़े। पूर्व प्रधान चरन सिंह से अटल जी की कई मुलाकातें हुईं, जब वह रक्षामंत्री थे तब भी और जब प्रधानमंत्री थे तब भी। अटल जी की बात चली, तो चरन सिंह फफक पड़े। बोले, हमने बहुत कुछ खो दिया, उसकी भरपाई कोई नहीं कर सकता। रिश्ते में उनके भतीजे अश्वनी वाजपेयी अटल जी का नाम लेते ही गांव के उस मैदान की ओर हाथ उठाकर इशारा करते हैं, जहां कभी बाल सखाओं के साथ अटल जी गिल्ली-डंडा खेलते थे। गर्मी की छुïिट्टयों में जिस तपती दुपहरी में वह जहां खेलते थे, उस मैदान पर आज चारपाई पर बैठे कुछ बुजुर्ग अटल जी की ही यादों में खोए थे। 

यादों में खो गए घाटों के सन्नाटे 

यमुना के किनारे बसे बटेश्वर के घाट भी शायद आज अटल जी की यादों मेें खो गए हैं। गांव में अटल जी जब भी आते, बच्चों के साथ यमुना के घाटों पर खूब नहाते थे। आज वही घाट वीरान से थे। 

कुलदेवी के मंदिर में करते थे पूजा  

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के खंडहर हो चुके मकान के सामने ही कुलदेवी का मंदिर है। खुद अटल जी और उनके परिवार के लोग इसी मंदिर में पूजा करते थे।


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