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School Fee of Daughters: दो बेटियों में से एक की फीस माफी मामला, आगरा में अभिभावक हुए खुश

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने दो या दो से अधिक बेटियों में से एक की फीस माफ करने की अपील की। स्कूल संचालकों को आदेश आने का है इंतजार। निजी शिक्षण संस्थान स्वयं ले निर्णय तो बेहतर नहीं तो शासन स्तर से होगा फैसला।

By Prateek GuptaEdited By: Published: Sun, 03 Oct 2021 01:45 PM (IST)Updated: Sun, 03 Oct 2021 01:45 PM (IST)
School Fee of Daughters: दो बेटियों में से एक की फीस माफी मामला, आगरा में अभिभावक हुए खुश
दो बेटियों में से एक की फीस माफी के फैसले की आगरा में सराहना की जा रही है।

आगरा, जागरण संवाददाता। निजी कालेज व शिक्षण संस्थानों में दो या दो से अधिक सगी बहनों के एक साथ पढ़ने पर उनमें से एक की फीस माफ की जाएगी। इसके लिए सरकार पहले निजी शिक्षण संस्थानों को प्रेरित करेगी, फीस माफ नहीं करने पर उसकी भरपाई सरकार करेगी। शनिवार को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने यह घोषणा की, तो ऐसे अभिभावकों में खुशी की लहर थी, जबकि स्कूल संचालकों ने गेंद शासन के पाले में फेंकते हुए व्यवस्था शासन द्वारा ही करने की बात कह डाली।

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प्रोग्रेसिव एसोसिएशन आफ पेरेंट्स के दीपक सरीन का कहना है कि कोरोना काल में अभिभावकों पर काफी संकट रहा है। मुख्यमंत्री के इस कदम से निश्चित तौर पर दो या दो से अधिक बेटियों के अभिभावकों को राहत मिलेगी। इससे जिले में करीब 300 से 400 अभिभावक लाभांवित होंगे। अभिभावक मनोज शर्मा का कहना है कि मांग सभी अभिभावकों को राहत देने की थी, लेकिन मुख्यमंत्री ने दो या दो से अधिक बेटियों में से एक की फीस माफ करने से अभिभावकों को काफी राहत मिलेगी। अब देखना यह होगा कि कितने निजी स्कूल इस आदेश को मानते हैं।

सरकार करे व्यवस्था

एसोसिएशन आफ प्रोग्रेसिव स्कूल्स आफ आगरा (अप्सा) अध्यक्ष डा. सुशील गुप्ता का कहना है कि कोरोना काल में स्कूल वैसे ही तमाम आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं। अब तक वह अक्षम और सक्षम के भेंट में ही फंसे हैं। ऐसे में दो या अधिक बेटियों का आदेश उनकी परेशानी और खड़ी करेगा। बेहतर है शासन ऐसे मामलों में फीस की व्यवस्था स्वयं करे।

नेशनल प्रोग्रेसिव स्कूल आफ आगरा (नप्सा) अध्यक्ष संजय तोमर का कहना है कि अभी सिर्फ बयान आया है, जब आदेश आएगा, तो उसी के हिसाब से निर्णय लिया जाएगा।यदि ऐसे मामलों में सही तरह से मदद करनी है, तो बेहतर होगा कि स्कूलों पर छोडऩे की जगह शासन खुद कोई नीति तैयार कर उन्हें सीधे तौर पर मदद करे। 


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