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“बेबी” ने बदली किसानों की किस्मत, जानिए कौन है वो जिसने किसानों को बनाया धनवान

घर बैठे आ जाते हैं खरीदार मूल्य भी होता है पूर्व निर्धारित मंडी जाने का झंझट न कोल्ड स्टोर में रखने की चिंता

By Jagran News NetworkEdited By: Published: Sun, 05 Jan 2020 06:00 PM (IST)Updated: Sun, 05 Jan 2020 06:22 PM (IST)
“बेबी” ने बदली किसानों की किस्मत, जानिए कौन है वो जिसने किसानों को बनाया धनवान

आगरा, ऋषि दीक्षित।  अन्नदाता की हालत सुधारने में तमाम सरकारें फेल हो गईं, लेकिन एक बेबी ने एटा जिले के करीब एक दर्जन गांवों में किसानों की किस्मत बदल दी है। यह बेबी कौन है, कैसी है यह जानेंगे तो आप भी चौंक जाएंगे। दरअसल यह बेबी कॉर्न (मक्का) है, जो सलाद और सब्जी के काम आती है।

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अवागढ़ विकास खंड के हैं  गांव 

एटा जिले के अवागढ़ विकास खंड के गांव इसौली, भूड़नगरिया, वाकलपुर, जरानी कलां, जरानी खुर्द, मुड़समा, बाबरपुर, चिरावली आदि के किसान आलू पर भरोसा नहीं करते। उनके लिए बेबी कॉर्न की खेती 100 फीसद मुनाफे का सौदा साबित हो रही है। गर्मी के मौसम में इसकी फसल तीन महीने में तैयार हो जाती है तो सर्दी के मौसम में करीब साढ़े चार माह का समय लेती है। इसका बीज 500 रुपये प्रति किलो आता है। एक बीघा खेत के लिए दो किलो बीज की आवश्यकता होती है।

अजीत पाल की मेहनत रंग लाई

भूड़नगरिया निवासी प्रगतिशील किसान अजीतपाल सिंह ने बताया कि करीब 15 वर्ष पहले आलू से तौबा कर बेबी कॉर्न की खेती शुरू की थी। आज क्षेत्र में अधिकांश किसान यह खेती कर रहे हैं और खुशहाल हैं। उन्होंने बताया कि क्षेत्र में बेबी कॉर्न के चार डीलर विजय, महेश, विनीत और आगरा के अनुपम पालीवाल हैं, जो किसानों को पैदावार के लिए अग्रिम भुगतान करते हैं और उत्पादन की कीमत भी पहले ही निर्धारित कर दी जाती है। बाजार में चाहे कोई भी भाव क्यों न हो लेकिन यह किसान का माल उसी दर पर खऱीदते हैं, जो भाव एडवांस देते समय तय होता है। किसानों से वर्तमान में बेबी कॉर्न 50 रुपये प्रति किलो की दर से खरीदी जा रही है। एक बीघा में औसतन ढाई से तीन क्विंटल बेबी कॉर्न पैदा होती है।

अजीत ने बताया कि इसकी करब जो पशुओं के चारे के काम आती है, वह भी तीन से साढ़े तीन हजार रुपये प्रति बीघे के हिसाब से बिक जाती है। बीज, खाद और सिंचाई का कुल मिलाकर जो खर्चा आता है वह भी दो से ढाई हजार रुपये प्रति बीघा आता है। फसल का दाम भी पूर्व निर्धारित दर से मिल जाता है और प्राकृतिक खतरा भी कम ही रहता है क्योंकि फसल कच्ची ही बाजार में जाती है। उन्होंने बताया कि जिसके पास दो बीघा जमीन है वह भी इसकी खेती से अपना खर्चा चला रहा है।

किसानों को सुरक्षा देने वाली फसल

यह बड़े ही नहीं छोटे किसानों को भी पूरी तरह सुरक्षित रखने वाली फसल है। खास बात ये है कि बेबी कार्न की फसल के साथ सर्दी गर्मी में मूली की फसल भी ले सकते हैं। अजीत ने बताया कि उनके पास 30 बीघा जमीन है, जिसमें वे बेबी कॉर्न की ही फसल पैदा कर रहे हैं। उन्हें इस फसल का आइडिया 16 साल पहले मुड़समा निवासी विनीत के मामा राजेंद्र सिंह से मिला था। वे दिल्ली में रहते हैं। अजीत ने बताया जब से उन्होंने बेबी की खेती शुरू की है, दिन बदल गए हैं।

आलू के चक्कर में कोल्ड स्टोर को लेकर ही टेंशन रहता था, फिर भाव को लेकर चिंता बनी रहती थी। इसको न कहीं रखने की चिंता है न किसी मंडी में बेचने ले जाने की। घर बैठे डीलर सप्ताह में दो बार बुधवार और रविवार को फसल खरीद ले जाते हैं। उन्होंने बताया कि उनकी फसल यदि आगरा मंडी में आती होगी तो वह भी बाया दिल्ली आती होगी क्योंकि वे स्थानीय मंडियों में फसल नहीं बेचते हैं।

कॉन्टीनेंट फूड में बेबी कॉर्न का उपयोग

बेबी कॉर्न का उपयोग मुख्यतः थाई व्यंजनों में ज्यादा होता है। साथ ही पीजा की टापिंग्स और अन्य भारतीय व्यंजनों में किया जाने लगा है। शादी-विवाहों के साथ ही बड़े शहरों और होटलों में इसकी ज्यादा मांग रहती है। कभी-कभी इसका भाव दो सौ रुपये प्रति किलो तक पहुंच जाता है।

यूरोपीय देशों में होता है निर्यात

दिल्ली और पंजाब के बड़े सब्जी व्यापारी बेबी कॉर्न का निर्यात यूरोपीय देशों में करते हैं। यूरोपीय देशों में भी इसकी बहुत मांग रहती है। मुड़समा के एक डीलर विनीत हैं जो इसको पंजाब के व्यापारियों को देते हैं, वे इसकी पैकिंग कर यूरोपीय देशों में निर्यात करते हैं।

क्या हाल हैं, कैसी है बेबी

क्षेत्र में किसानों के बीच एक दूसरे के हालचाल पूछने का पर्याय बन चुकी बेबी ने राजा को पीछे छोड़ दिया है। पहले लोग राजा (आलू) के बारे में जानकारी लेते थे तो कहते थे कि और कैसे है तुम्हारे राजा, लेकिन अब लोग मिलते ही पूछते हैं कैसी ही तुम्हारी बेबी, कोई बताता है पानी मांग रही है तो कोई कहता है बेबी को खाद की जरूरत है।


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