Famous Temples In Mathura: द्वारिकाधीश मंदिर की जमीन के लिए काजी को दिए थे चांदी के सिक्के, ग्वालियर के खजांची को सपने में हुए थे दर्शन
Famous Temples In Mathura कृष्ण की नगरी मथुरा के कण-कण में भगवान का वास है। श्रीकृष्ण कई रूप में विभिन्न मंदिरों में विराजमान हैं। ऐसा ही एक मंदिर है द्वारिकाधीश मंदिर जो यमुना किनारे बसा है। कृष्ण को द्वारका के राजा के नाम से भी जानते हैं।
आगरा, जागरण टीम। भगवान जब अनेक अशेष गुणों को प्रकट करते हैं, तब वे पूर्णतम कहे जाते हैं। जब सब गुणों को प्रकट न करके बहुत से गुणों को प्रकट करते हैं तब पूर्णतर और जब उनसे भी कम गुणों को प्रकट करते हैं तो पूर्ण कहलाते हैं। आदि वाराह पुराण, पदम पुराण, श्रीमद् भागवत आदि में स्पष्ट उल्लेख है कि भगवान के जन्म महोत्सव के दर्शन का पुण्य जो मथुरा में है, वह अन्यत्र कहीं नहीं हैं।
मथुरा है भगवान श्रीकृष्ण की जन्म स्थली
भगवान श्रीकृष्ण की जन्म स्थली मथुरा है। भगवान के एसे दिव्य जन्म महाभिषेक के दर्शन करने मात्र से मनुष्य जन्म-मरण के चक्र से छूटकर साक्षात हरि को प्राप्त करता है। अजन्मे के जन्म महोत्सव का दर्शन, श्रवण और आयोजन परम् पुण्यप्रद है। भगवान श्रीकृष्ण ने कंस के कारागार में जन्म लेकर न केवल वसुदेव-देवकी को बंधन मुक्त किया बल्कि उस काल में पृथ्वी पर फैले समस्त अत्याचारियों का अंत कर दिया। उनका अवतार दुष्टों का संहार, सज्नों का परित्राण, अधर्म का विनाश और धर्म का अभ्युत्थान करने के लिए हुआ था।
ऐसा है द्वारिकाधीश मंदिर
मथुरा का द्वारिकाधीश मंदिर 1814 में सेठ गोकुल दास पारीख ने बनवाया था, जो ग्वालियर रियासत का खजांची थे। मथुरा के प्रमुख घाटों में एक विश्राम घाट के किनारे ये मंदिर है। भगवान कृष्ण को अक्सर ‘द्वारकाधीश’ या ‘द्वारका के राजा’ के नाम से पुकारा जाता था और उन्हीं के नाम पर इस मंदिर का नाम पड़ा है।
मथुरा स्थित द्वारिकाधीश मंदिर अपने सांस्कृतिक वैभव कला और सौंदर्य के लिए अनुपम है। इस मंदिर के निर्माण के लिए एक काजी और एक चतुर्वेदी की जमीन भी लेनी पड़ी थी। काजी को जमीन के बराबर चांदी के सिक्के और मोती और चतुर्वेदी से झोली फैलाकर जमीन दान में मांगी थी।
पौराणकि इतिहास
श्रीद्वारिकाधीश मंदिर के निर्माता गोकुलदास पारीख बड़ौदा राज्य के सीनौर ग्राम निवासी थे। वह द्वारिकाधीश प्रभु के अनन्य भक्त थे। श्रीधारिकाधीश प्रभु के अनुग्रह से ही ग्वालियर प्रवासकाल में सपने में दर्शन हुआ और अपार संपत्ति के साथ श्रीद्वारिकाधीश प्रभु राजधिराज का देव विग्रह प्राप्त हुआ। वह इस विग्रह को लेकर मथुरा आ गए। पहले इस विग्रह को वृंदावन के भतोरपा बगीचा पर रखा गया। इसके बाद जूना मंदिर प्रयागघाट पर रखा गया।
मंदिर के निर्माण को लेकर हुई बहस
इस विग्रह के मंदिर के निर्माण के लिए मथुरा और वृंदावन के लोगों में जमकर बहस हुई। लॉटरी के माध्यम से मंदिर के मथुरा में बनने का निर्णय हुआ। यमुना किनारे स्थान की तलाश तो पूरी हो गई लेकिन इस जमीन में कुछ भाग एक काजी और एक चतुर्वेदी की जमीन का था।
काजी ने शर्त रखी जितनी जमीन चाहिए उस हिस्से पर चांदी के सिक्के रखने होंगे। सिक्के गोल होने के कारण सिक्कों के बीच की जगह खाली रह जाती। इस खाली स्थल में चांदी के मोती भरे गए। चतुर्वेदी ने शर्त रखी की सेठजी दान मांगे तो वह जमीन दे देंगे। इस पर सेठजी ने झोली फैलाकर दान मांगा।
साल भर होते हैं कार्यक्रम
इसके बाद मंदिर का निर्माण 1814-15 में प्रारंभ हुआ। पारीख जी की मृत्यु के बाद उनके उत्तराधिकारी सेठ लक्ष्मीचंद ने मंदिर का निर्माण कार्य पूर्ण कराया। सन 1873 में मंदिर की रजिस्ट्ररी कराई गई। यह मंदिर पुष्टीमार्ग के आचार्य श्रीगिरधारीलाल महाराज कांकरोली वालों को भेंट किया गया। मंदिर में प्रतिवर्ष सोने चांदी के हिंडोले, अन्नकूट, जन्माष्टमी, नंदोत्सव, दीपावली, होली आदि आयोजन श्रद्धालुओं की आस्था के केंद्र रहते हैं।
मुख्य आश्रम में भगवान् कृष्ण और उनकी प्रिय राधा के विग्रह हैं। इस मंदिर में दूसरे देवी देवताओं की मूर्तियां भी हैं। मंदिर के अंदर सुंदर नक्काशी, कला और चित्रकारी का बेहतरीन नमूना देखा जा सकता है।
यह रहेंगे घटा और हिंडोला के आयोजन
14 जुलाई-सोने-चांदी के हिंडोला
15 जुलाई-फिरोजी हिंडोला
16 जुलाई-केसरी हिंडोला
17 जुलाई-कली हिंडोला
18 जुलाई-गुलाबी मखमल हिंडोला
19 जुलाई-आसोपालव का हिंडोला
20 जुलाई-लाल मखमल का हिंडोला
21 जुलाई-श्याम मखमल का हिंडोला
22 जुलाई-केले का हिंडोला
23 जुलाई-हरा-मखमल का हिंडोला
24 जुलाई-फूलपत्ती का हिंडोला
25 जुलाई-लाल हिंडोला
26 जुलाई-केसरी घटा
27 जुलाई-पंचरंगी फूलों का हिंडोला
28 जुलाई-हरी घटा
29 जुलाई-श्याम हिंडोला
30 जुलाई-सोसनी घटा
31 जुलाई-फल-फूलों का हिंडोला
1 अगस्त-आसमानी घटा
2 अगस्त-मोती हिंडोला
3 अगस्त-गुलाबी घटा
4 अगस्त-सोसनी मखमल का हिंडोला
5 अगस्त- लाल घटा
6 अगस्त-पान का हिंडोला
7 अगस्त-श्याम काली घटा
8 अगस्त-पवित्रा का हिंडोला
9 अगस्त-लहरिया घटा नौ हिंडोला
10 अगस्त-केसरी चित्रकाम का हिंडोला
11 अगस्त-सफेद घटा
12 अगस्त-राखी मनोरथ श्रृंगार में लाल हिंडोला
13 अगस्त-फल-फूलाें का हिंडोला
14 अगस्त-हिंडोला विजय
19 अगस्त-श्रीकृष्ण जन्माष्टमी
20 अगस्त-नंद महोत्सव