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वर्तमान सिनेमा पर बोले दादा साहब के परिजन, आज का सिनेमा नहीं था उनका सपना Agra News

ग्लोबल ताज इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल का रविवार को है अंतिम दिन। ओपन सेशन में दादा साहब के परिजनों ने साझा की कही-अनकही बातें।

By Tanu GuptaEdited By: Published: Sun, 17 Nov 2019 12:55 PM (IST)Updated: Sun, 17 Nov 2019 12:55 PM (IST)
वर्तमान सिनेमा पर बोले दादा साहब के परिजन, आज का सिनेमा नहीं था उनका सपना Agra News
वर्तमान सिनेमा पर बोले दादा साहब के परिजन, आज का सिनेमा नहीं था उनका सपना Agra News

आगरा, जागरण संवाददाता। भारतीय फिल्मों के जनक दादा साहब फाल्के को इसकी प्रेरणा जीजस क्राइस्ट फिल्म देखकर मिली। क्राइस्ट में उन्हें मां मैरी में मीरा और येरूशलम में ब्रज दिखाई दिया था। वहीं से उन्होंने ठाना कि हिंदू धर्म, संस्कार और परंपरा को पर्दे पर उतारकर नई ऊंचाइयों तक पहुंचाएंगे। अब फिल्मों से कहानी गायब है और अश्लीलता व फूहड़ता हावी, जिसे लेकर वह 40 के दशक में ही चिंता जताने लगे थे।

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यह सब बातें खंदारी कैंपस के जेपी सभागार में चल रहे ग्लोबल ताज इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में सुनाई दीं। मौका था ओपन डिस्कशन सेशन का, जिसमें दादा साहब फाल्के के परिजन चंद्रशेखर और मृदुला पुसालकर मुख्य वक्ता थे। उन्होंने दादा से जुड़ी कई कही-अनकही बातें साझा कीं। बताया कि पहले वह प्रिंटिंग प्रेस चलाते थे, लेकिन साझेदार से मतभेद के बाद उन्होंने काम छोड़ दिया। एक दिन बेटे के साथ घूमते हुए सिनेमा हॉल में जीसस क्राइस्ट फिल्म देखी, उसे देखकर विचार आया कि क्या हम हिंदू देवी-देवताओं को फिल्मी पर्दे पर नहीं ला सकते? वहीं से उन्होंने इसके लिए प्रयास शुरू कर दिए। आयोजक सूरज तिवारी और विवि के प्रो. लवकुश मिश्रा ने सेशन होस्ट किया।

संस्कारों का सिनेमा था उनका मकसद

उन्होंने बताया कि दादा संस्कारों के सिनेमा का सपना देखते थे, जिसमें समाज को प्रेरक संदेश मिलें। आज के सिनेमा के संकेत उन्हें 40 के दशक में ही मिलना शुरू हो गए थे, जिसकी वह चिंता भी जताते थे। उन्हें सिनेमा में अश्लीलता और नग्नता कतई पसंद नहीं थी।

बेवसीरीज की गाइलडाइंस भी हों तय

दादा साहब के परिजन फिल्म और बेवसीरीज के मौजूदा कंटेंट से व्यथित हैं। इसलिए उनके लिए अश्लीलता व फूहड़ता की गाइडलाइन की पैरवी करते हैं। हालांकि इसके लिए सेंसर बोर्ड है, लेकिन सरकारी हस्तक्षेप के कारण वह ज्यादा प्रभावी नहीं।

पत्नी ने दिया साथ

फिल्म बनाने का अनुभव नहीं था। उन्होंने सिनेमा हॉल से फिल्म की रील ली, टॉय कैमरा लेकर प्रयोग शुरू किए। एबीसी गाइड ऑफ सिनेमा नाम की किताब ने उन्हें सहायता दी। तब कैमरे और तकनीक लंदन में मिलती थी, इसलिए पत्नी सरस्वती के गहने बेचकर संसाधन जुटाए। उनकी पत्नी कैमरा पकडऩे और रील डबलप करने में मदद करती थीं।

ऐसे नाम पड़ा फाल्के

दादा पेशवा के राजा के यहां केले के पत्तों की छंटाई का काम भी करते थे, जिसे मराठी में फाल्के कहा जाता है। इसलिए उनका नाम फाल्के पड़ा। वैसे उनका उपनाम भट्ट था।

भारत रत्न मिलना चाहिए

चंद्रशेखर कहते हैं कि दादा को भारत रत्न मिलना चाहिए। उनसे जुड़ी जानकारी हमने एक वेबसाइट के माध्यम से साझा करना शुरू की है। इसे लेकर अभियान भी चलाया जा रहा है। सरकार को इस दिशा में सोचना चाहिए। हालांकि फिल्म फेस्टिवल आयोजक सूरज तिवारी ने दादा साहब की पत्नी सरस्वती जी के नाम पर एक अवॉर्ड शुरू करने का भरोसा दिया। 


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