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Stop Begging: शेर अली की दास्‍तां कर देगी प्रेरित, भीख मांगना छोड़कर अब आगरा में देते हैं भिक्षावृत्ति से दूर होने की सीख

झोपड़ी में रहने वाले शेरअली खान को पढ़ाई के साथ-साथ डांसिंग में मिल चुके हैं कई पुरस्कार। सात वर्ष से शिक्षा से जुड़े तो छोड़ दिया था भीख मांगना अब चौराहों पर जाकर बच्चों को करते हैं प्रेरित। दूसरा बच्‍चा दानिश कई शार्ट फिल्मों में भी भाग ले चुका है।

By Prateek GuptaEdited By: Published: Fri, 25 Jun 2021 08:48 AM (IST)Updated: Fri, 25 Jun 2021 08:48 AM (IST)
Stop Begging: शेर अली की दास्‍तां कर देगी प्रेरित, भीख मांगना छोड़कर अब आगरा में देते हैं भिक्षावृत्ति से दूर होने की सीख
आगरा के शेर अली खान, भिक्षावृत्ति छोड़ डांस की दुनिया में नाम कमा रहे हैं।

आगरा, यशपाल चौहान। मुफलिसी की जिंदगी। जमीन में गढ़ी तीन ईंटाें का चूल्हा। रहने के लिए तिरपाल वाली झोंपड़ी और सोने को जमीन पर बिस्तर। यहीं जिंदगी है इनकी। ऐसे हालातों में रहने वाले पचास परिवारों के बच्चे पहले भीख मांगते थे। मगर, सात वर्ष पहले इनमें से कुछ बच्चों का शिक्षा से जुड़ाव हुआ तो इनकी जिंदगी ही बदल गई। अब हालत यह है कि ये खुद तो भिक्षावृत्ति से दूर हुए ही, दूसरे बच्चों को भी चौराहों पर जाकर सीख देते हैं। परिवार का खर्च उठाने को कमाई का दूसरा जरिया ढूंढ़ लिया है। अब ये चौराहों पर हाथ फैलाकर रुपये कमाने के नहीं आसमान में ऊंची उड़ान के सपने देख रहे हैं।

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पंचकुइयां चौराहा के पास डीआइओएस कार्यालय के पीछे खाली मैदान में झोंपड़ियों में करीब एक दशक से लोग रहते हैं। ये अपना मूल गांव फैजाबाद में रुदौली बताते हैं। वर्तमान में यहां करीब पचास परिवार रह रहे हैं। इन सभी परिवारों में सौ से अधिक बच्चे हैं। पहले ये सभी बच्चे चौराहों पर भीख मांगते थे। एक बच्चा दिनभर में पचास से सौ रुपये तक कमाकर लाता था। इनमें से कुछ रुपये वे नशे में खर्च कर देते थे। वर्ष 2014 में महफूज संस्था के नरेश पारस के संपर्क में ये बच्चे आए। नरेश पारस ने बस्ती में जाकर मां-बाप को शिक्षा का महत्व बताया। इसके बाद 56 बच्चों के प्रवेश डायट परिसर स्थित प्राथमिक विद्यालय में कराए। उम्र के हिसाब से कुछ के प्रवेश दूसरी और तीसरी कक्षा में भी हो गए। तब से इन बच्चों की जिंदगी में बदलाव शुरू हो गया। इन्हीं में से एक 17 वर्षीय शेर अली खान अब रत्नमुनि जैन इंटर कालेज में 10वीं कक्षा में पढ़ रहा है। उसकी पढ़ाई के साथ-साथ डांसिंग में भी विशेष रुचि है। दिल्ली में बाल मेला, ताज महोत्सव व अन्य आयोजनों में स्टेज पर प्रस्तुति दे चुका है। उसकाे अच्छी प्रस्तुति के लिए स्कूल व अन्य आयोजकों की ओर से प्रशस्ति पत्र व मोमेंटो भी मिले हैं। इन्हें उसने अपनी झोंपड़ी में सजाकर रखा है। रखने को जगह नहीं है, इसलिए कुछ ट्राफी उसकी स्कूल में ही रखी हैं। शेर अली खान का कहना है कि अब वह भीख नहीं मांग सकता। जो बच्चे भीख मांगते हैं, उन्हें भिक्षावृत्ति से दूर होकर पढ़ाई करने को प्रेरित करता है। चौराहों पर जाकर वह उनसे बात करता है। अपना उदाहरण देता है। इसी तरह बस्ती में रहने वाला दानिश भी है। वह नौवीं कक्षा में पढ़ रहा है। वह पढ़ाई के साथ डांस और एक्टिंग में रुचि रखता है। कई शार्ट फिल्मों में वह भाग ले चुका है। दानिश भी शेर अली खान के साथ चौराहों पर जाता है। यहीं का आशिक अभी छठवीं क्लास में है। वह पढ़ाई के साथ-साथ गाना गाता है। बस्ती में रहने वाली करीना दिल्ली में बाल मेले में माडलिंग कर चुकी है। निर्जला भी उसके साथ पढ़ रही है। दोनों सहेली हैं। पढ़कर शिक्षक बनना चाहती हैं। इसके बाद अपने समुदाय के बच्चों को शिक्षित करना चाहती हैं।

ऐसे चलता है परिवार का खर्च

दानिश और शेर अली खान ने बताया कि बस्ती के अधिकतर लोग दुकानों के सामने नीबू मिर्च लगाने का काम करते हैं। सभी ने अपने इलाके बांट रखे हैं। मंडी से नीबू व मिर्च लाते हैं और बाजार से धागा। परिवार के सभी सदस्य मिलकर नीबू और मिर्च धागे में पिरो लेते हैं। सप्ताह में एक दिन बच्चे स्कूल से छुट्टी कर लेते हैं। शनिवार को सुबह चार बजे से ही वे दुकानों के सामने नीबू मिर्च लगाना शुरू कर देत हैं। दोपहर 12 बजे तक वे सभी से पांच-पांच रुपये लेकर घर आ जाते हैं। इस तरह एक सप्ताह में वे 1500 रुपये तक का काम कर लेते हैं। इसी से परिवार का खर्च चलता है।


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