खाकी और काले कोट की रार: कानूनी दायरे में कर्तव्य का निर्वाह करें तो मिट सकता है विवाद Agra News
दिल्ली में हुए पुलिस- वकील विवाद पर जागरण विमर्श कार्यक्रम में बोले एडवोकेट दुर्गविजय सिंह।
आगरा, ऋषि दीक्षित। पुलिस और अधिवक्ताओं के बीच बढ़ती टकराव की घटनाओं से मुश्किल जनता को होती है। दोनों के बीच अहम की लड़ाई है। यदि पुलिस सीआरपीसी के तहत अपने कर्तव्य का निर्वहन करे तो सामंजस्य बना रहेगा। यह विचार शहर के वरिष्ठ अधिवक्ता दुर्गविजय सिंह ‘भैया’ ने जागरण के विमर्श कार्यक्रम में व्यक्त किए।
पुलिस और वकीलों के बीच कैसे रुके टकराव विषय पर दुर्गविजय सिंह का कहना था कि वकीलों को थाने में सम्मान नहीं मिलता है। जबकि कोर्ट में जहां वकील के बैठने की जगह निर्धारित होती है वहां अक्सर पुलिस वाले बैठे रहते हैं और वकील अपना काम अदालत में खड़े-खड़े निपटाते हैं। हमें एक दूसरे की भावनाओं की कद्र करनी होगी। आमतौर पर पुलिस सात साल से कम सजा वाले अपराधों में वादी को थाने से जमानत देने में जब नानुुुुकुर करती है तब अधिवक्ता अपने मुवक्किल के साथ थाने जाता है और कानून के बारे में बताता है। जब कानून जानने वाले व्यक्ति को डंडा दिखाया जाता है तो टकराव होता है।
कानून के तहत दोनों पक्ष काम करें तो कोई टकराव नहीं होगा। पुलिस और वकील एक गाड़ी के दो पहिये हैं। वकील के बिना पुलिस अधूरी है और पुलिस के बिना वकील। उन्होंने कहा कि दिल्ली में जो घटना हुई वह पार्किग को लेकर है। उनका सुझाव है कि पुलिस प्रशासन, जिला प्रशासन और न्याय प्रशासन मिलकर सामंजस्य बैठाएं, जिससे कि रोज-रोज की घटनाओं से जनता का अहित न हो।
जेलों में 30 फीसद निर्दोष हैं बंदी
एक सवाल के जवाब में दुर्गविजय सिंह का कहना था कि पुलिस ईमानदारी से काम नहीं करती है। बिना जांच के ही निर्दोष के खिलाफ एफआइआर दर्ज कर ली जाती है। यही वजह है आज जेलों में 30 फीसद लोग निर्दोष बंद हैं। यदि पुलिस अपने स्तर पर जांच करे और झूठे मामलों में वादी के खिलाफ 182 की कार्रवाई करे तो इससे जनता में विश्वास बढ़ेगा। पुलिस कानूनी प्रक्रिया पूरी नहीं करती है।
अधिवक्ताओं को कार्ड जारी किए जाएं
दुर्गविजय सिंह का कहना था कि अदालत में आज हर कोई काला कोट पहनकर आ जाता है और रौब गालिब करता है। इसलिए ये जरूरी है कि अधिवक्ताओं को कार्ड जारी किए जाएं।