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आगरा में मुगलकालीन रामबाग नाले के पानी से लबालब, दीवार भी धराशाई

यमुना पार आगरा-फीरोजाबाद हाईवे पर सर्विस रोड के बराबर बना हुआ है मुगलकालीन ये स्मारक। मुगल बादशाह बाबर ने कराया था इसका निर्माण। एनएचएआइ को एएसआइ ने नाला बनाने को भेजा पत्र प्रशासन को दी जानकारी। नाले की मरम्मत होने के बाद ही एएसआइ चहारदीवारी की मरम्मत कराएगा।

By Prateek GuptaEdited By: Published: Fri, 30 Jul 2021 10:20 AM (IST)Updated: Fri, 30 Jul 2021 10:20 AM (IST)
बाबर के बनाए रामबाग में भरा नाले का पानी।

आगरा, जागरण संवाददाता। बुधवार को दिनभर हुई बारिश की वजह से नाले का गंदा पानी यमुना पार स्थित संरक्षित स्मारक रामबाग में भर गया। स्मारक की चहारदीवारी टूटी होने से, नाले का पानी स्मारक में पहुंच गया। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) ने नाले की मरम्मत कराने को भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआइ) को पत्र भेजा है। नाले की मरम्मत होने के बाद ही एएसआइ चहारदीवारी की मरम्मत कराएगा।

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आगरा-फीरोजाबाद हाईवे पर यमुना किनारे एएसआइ द्वारा संरक्षित स्मारक रामबाग है। इसका निर्माण बाबर ने कराया था। स्मारक की चहारदीवारी के बराबर से सर्विस रोड बनी हुई है। करीब 70 से 80 मीटर लंबी स्मारक की चहारदीवारी 19 मई की रात गिर गई थी। एएसआइ के आगरा सर्किल को इसकी जानकारी अगले दिन मिली थी। चहारदीवारी ककैया ईंटों की बनी हुई है। बुधवार को सुबह से रात तक निरंतर बारिश होने पर यहां बना नाला चौक होने की वजह से ओवरफ्लो हो गया। चहारदीवारी टूटी होने की वजह से नाले का गंदा पानी स्मारक के उद्यान में भर गया। इससे उद्यान को नुकसान पहुंचा है। एएसआइ ने जिला प्रशासन को इसकी जानकारी देने के साथ ही एनएचएआइ को नाले की मरम्मत कराने को पत्र भेजा है। टूटे नाले की जब तक मरम्मत नहीं होगी, तब तक उसका गंदा पानी स्मारक में जाता रहेगा। गुरुवार को एनएचएआइ की टीम ने मौका-मुआयना भी किया।

अधीक्षण पुरातत्वविद् डा. वसंत कुमार स्वर्णकार ने बताया कि जब तक नाले की मरम्मत नहीं होगी, तब तक चहारदीवारी नहीं बनाई जा सकती है। नाले की मरम्मत न होने की स्थिति में निरंतर पानी रिसता रहेगा। नाले की मरम्मत को एनएचएआइ को पत्र भेजा गया है।

चारबाग पद्धति पर बना पहला बाग

मुगलाें द्वारा भारत में चारबाग पद्धति पर बनाए गए बागों में रामबाग पहला बाग है। बाबर ने काबुल में चारबाग पद्धति पर बने बागों को देखा था और उसने भारत में इस तरह के बाग बनवाए। उसके बाद अन्य मुगल शहंशाहों ने इस पद्धति का अनुसरण अन्य स्मारकों व बागों में किया।


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