दहेज है गुनाह, इसे न करें कबूल
मस्जिदों से हो रहा अनाउंसमेंट शादी में न करें दहेज की मांग मुस्लिम धर्मगुरुओं ने कहा दहेज की बजाय मिरास का हिस्सा अदा करें
आगरा, जागरण संवाददाता। दहेज उत्पीड़न का दंश झेल रही अहमदाबाद की आयशा ने मोहब्बत में खुद को फना जरूर कर दिया, पर उसका दुनिया से जाना जाया नहीं गया। आगरा की बेटियों को इस दंश से बचाने के लिए मुस्लिम धर्मगुरुओं ने अपने समुदाय से दहेज प्रथा को खत्म करने की अपील की है। शहर के धर्मगुरुओं ने यही कहा कि शरीयत में दहेज देना-लेना गुनाह है, इसे कबूल न करें। इस अपील से दहेज उत्पीड़न का दंश झेल रही बेटियों को राहत मिली है। दहेज मांगने की बात तो दूर, बल्कि पति को मेहर में तीन तोला चांदी या उसकी कीमत का सोना देना होता है और शादी भी उसी लड़के के साथ की जाती है, जो लड़की की सारी जिम्मेदारी उठाने के काबिल हो। शरीयत में दहेज मांगना गुनाह करार दिया है।
मोहम्मद अहमद अली, शहर काजी शरीयत के हिसाब से बेटियों को मिरास (पिता की संपत्ति) में हिस्सा अदा करना शामिल है। जो संपूर्ण संपत्ति का आठवां हिस्सा पत्नी का है और बाकी संपत्ति में दो हिस्सा में बेटों का और एक हिस्सा बेटियों का होता है।
मुफ्ती अमीरूद्दीन, शिक्षक आयशा की तरह मुल्क में बहुत सारी बेटियों का दहेज उत्पीड़न हो रहा है। समाज सुधार के लिए सभी को एक साथ जुटना होगा। इसमें घर के मुखिया की जिम्मेदारी तय होगी, तभी समाज की स्थिति बदलेगी।
मौलाना उजैर आलम, नायब शहर काजी मुसलमान अपनी बेटियों को दहेज की बजाय मिरास दें। इस चलन से बेटी का हक भी अदा होगा और दहेज के लेन-देन से आने वाली परेशानियां दूर होंगी। आयशा की तरह कोई बेटी खुदकुशी करने के मुकाम पर नहीं पहुंचेगी।
मुफ्ती मुदस्सिर, राष्ट्रीय अध्यक्ष आल इंडिया उलमा बोर्ड