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न बनें हैलीकॉप्टर पैरेंट्स, वरना हो सकती है परेशानी बड़ी, जानिये परवरिश से जुड़ीं जरूरी बातें

अभिभावकों के व्यवहार से ही खड़ी होती है बच्चों के भविष्य के व्यक्तित्व की बुनियाद। सोच समझकर करें बच्चों संग बर्ताव।

By Prateek GuptaEdited By: Published: Fri, 02 Nov 2018 03:32 PM (IST)Updated: Fri, 02 Nov 2018 03:32 PM (IST)
न बनें हैलीकॉप्टर पैरेंट्स, वरना हो सकती है परेशानी बड़ी, जानिये परवरिश से जुड़ीं जरूरी बातें
न बनें हैलीकॉप्टर पैरेंट्स, वरना हो सकती है परेशानी बड़ी, जानिये परवरिश से जुड़ीं जरूरी बातें

आगरा [जागरण संवाददाता]: माता पिता बच्चों के लिए आइना जैसे होते हैं। जैसा व्यवहार वे बच्चों संग करते हैं वैसा ही बच्चे बड़े होकर उसका अनुसरण करते हैं। बच्चों के व्यक्तित्व की नींव भी यहीं से तैयार होती है, लेकिन वर्तमान दौर में बदलते परिवेश के साथ स्थितियां भी बदलने लगी हैं। माता- पिता और बच्चों के व्यवहार में भी परिवर्तन आने लगा है। बाल मनोवैज्ञानिक डॉ. शिवानी मिश्रा के अनुसार जरूरत से ज्यादा बच्चों की परवाह करना या बच्चों का अधिक संरक्षण करना बच्चों के भविष्य के लिए कठिनाईपूर्ण हो सकता है। वे अपने बच्चों को जिदंगी की मुश्किलों और सच्चाइयों से रूबरू नहीं होने देते, जिसके कारण बच्चा हर छोटी से छोटी बात के लिए पूरी तरह से उन पर ही निर्भर रहने लगता है। ऐसे बच्चों में आत्मबल विकसित ही नहीं हो पाता। हर काम, हर निर्णय लेने के लिए बच्चा माता पिता की ओर ही देखता है। रूॉ. शिवानी के अनुसार बच्चों पर हमेशा मंडराने वाली अपनी आदत के चलते ही इस तरह के अभिभावकों को हेलीकॉप्टर पैरेंट्स कहा जाता है।

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फैलने दें नन्हें परिंदों के पंख

डॉ. शिवानी के अनुसार बच्चों की उंगली पकड़कर चलाने की बजाय उन्हें अपनी आंखों से दुनिया देखने व समझने का मौका दें। जहां बच्चों को आपकी जरूरत हो, वहां उनको सहयोग जरूर दें। माता पिता का बच्चों के प्रति ज्यादा केयरिंग बिहेवियर उन्हें आत्मनिर्भर बनने से रोकता है। बच्चों को अपने छोटे-छोटे काम स्वयं करने दें। ऐसा करने से वे बचपन से ही जिम्मेदार व आत्मनिर्भर बनेंगे।

अपनी परवरिश पर रखें विश्वास

बच्चों पर विश्वास करना सीखें अन्यथा बच्चा किसी पर भी विश्वास न करने वाला और झूठ बोलने वाला ही बनेगा। डॉ. शिवानी कहती हैं कि अक्सर माता पिता अपने बच्चों पर पैनी नजर रखते हैं कि कहीं उनका बच्चा गलत राह पर तो नहीं जा रहा, लेकिन शक्की स्वभाव वाले माता पिता जरूरत से ज्यादा ही निगरानी रखते हैं। ऐसे अभिभावक भूल जाते हैं कि उनका ऐसा व्यवहार बच्चों के लिए कितनी मुश्किलें खड़ी कर देता है। यदि बच्चा किसी काम से बाहर गया है तो आपका बार-बार फोन या मैसेज देखते ही वह परेशान हो जाएगा और अपने आप को बचाने के लिए झूठ भी बोलने लगेगा। शक्की स्वभाव वाले माता पिता हर स्थिति को लेकर अपने बच्चे के मन में एक डर बैठा देते हैं और इसी डर के साथ उनके बच्चे बड़े होने लगते हैं। ऐसे बच्चों में आत्मविश्वास की कमी होती है। वे किसी पर भी आसानी से विश्वास करने लगते हैं।

बनें बच्चों के दोस्त

बच्चों पर शक करने की बजाय उन्हें आजादी दें, लेकिन उन्हें इतनी छूट भी न दें कि वे लापरवाह ही हो जाएं। माता पिता अपने शक्की स्वभाव को छोड़कर बच्चों पर विश्वास करना सीखें। यह मानकर चलें कि बच्चे गलतियों से ही सीखते हैं।

रखें जुबान पर काबू

डॉ. शिवानी के अनुसार गलती करने पर बच्चे को उसकी गलती का एहसास कराना जरूरी है, लेकिन उसके साथ बदतमीजी से बात करना या उसे मारना-पीटना सही नहीं है। पैरेंट्स द्वारा ऐसा व्यवहार करने पर उनके मन-मस्तिष्क पर बुरा प्रभाव पड़ेगा। अभद्र भाषा (गाली-गलौज) का प्रयोग करनेवाले माता पिता अपने बच्चों के विकास को रोककर उनके आत्मविश्वास को कम करते हैं। ऐसे में बच्चे अनुशासन में न रहने वाले, तोड़-फोड़ करने वाले, बेकाबू और अनेक तरह की मानसिक परेशानियों से घिरे होते हैं। इन बच्चों में बिस्तर गीला करना, डिप्रेशन, पढ़ाई में कमजोर होना आदि जैसी समस्याएं देखने में आती हैं।

ऐसा रखें अपना व्यवहार

गलती करने पर बच्चे को उसकी गलती का एहसास ज़रूर कराएं। अपना आपा खोने से पहले स्थिति को समझने की कोशिश करें। बेवजह गाली-गलौज न करें। बच्चों के सामने अपशब्दों का प्रयोग न करें, क्योंकि जिस ढंग से आप अपने बच्चे से बात करेंगे, बच्चा भी उसी तरी़के से आपसे बात करेगा। इसलिए स्थितियां चाहे कैसी भी हों, बच्चों के साथ सहज व सौम्य व्यवहार करें। बच्चों के सामने अनावश्यक झूठ न बोलें, क्योंकि बच्चे अपने पैरेंट्स की नकल करते हैं। माता पिता बच्चों के आदर्श होते हैं, इसलिए वह बच्चों के साथ जैसा आचरण करेंगे, वे भी वैसा ही सीखेंगे।

न बनाएं बच्चे पर दवाब

कॉम्पिटीशन के इस दौर में ऐसे महत्वाकांक्षी अभिभावकों की संख्या बढ़ती जा रही है, जो अपने बच्चों को हमेशा विजेता के रूप में देखना चाहते हैं या उन पर जीत के लिए हमेशा दबाव बनाए रखते हैं। ऐसे पैरेंट्स जाने-अनजाने में अपने बच्चों पर मानसिक बोझ लाद देते हैं। मानसिक बोझ तले दबे ऐसे बच्चे नर्वस ब्रेकडाउन और डिप्रेशन का शिकार होकर आत्महत्या जैसा कदम उठा लेते हैं।

जीत का दबाव बनाने वाले पैरेंट्स अपने बच्चों की छोटी से छोटी असफलताओं को भी बर्दाश्त नहीं कर पाते। धीरे-धीरे उन पर भी तनाव हावी होने लगता है। दूसरों की अपेक्षाओं पर खरे न उतरने के कारण वे उनसे कतराने लगते हैं और ख़ुद को नकारा समझने लगते हैं। ऐसे माता पिता हाइपर पैरेंटिंग सिंड्रोम से पीडि़त होते हैं, जो बच्चों को नॉर्मल तरीके से बड़ा भी नहीं होने देते। उन पर दवाब बनाने की बजाय उनमें सकारात्मक ऊर्जा का संचार करें। उनके सामने नकारात्मक बातें कर उनका आत्मविश्वास कम करने की कोशिश न करें। किसी कॉम्पिटीशन में हारने के बाद भी बच्चे को डांटने-फटकारने की बजाय उत्साहित करें, ओवर रिएक्ट न करें। बच्चों से बहुत ज़्यादा अपेक्षाएं न रखें। अक्सर माता पिता अपनी अधूरी महत्वाकांक्षाओं को बच्चों के जरिए पूरा करना चाहते हैं, इसलिए उन पर अधिक दबाव बनाते हैं, जो सही नहीं है।

न करें तुलना वरना बच्चे बनेंगे दिखावटी

तुलना करने वाले माता पिता अपने बच्चों को सही तरी़के से समझ नहीं पाते हैं। इसलिए दूसरे बच्चों के साथ अपने बच्चों की तुलना करने लगते हैं। बच्चों की सही बात को सुने-समझे बिना अपनी बातों को जबर्दस्ती उन पर लादने की कोशिश करते हैं। ऐसे पैरेंट्स के बच्चे स्वयं को किसी लायक नहीं समझते। वे अपनी क्षमता को नहीं पहचान पाते और स्वयं को बेवकूफ समझने लगते हैं। कई बार तो स्थितियां उलट भी होती हैं, जब माता पिता अपने समझदार बच्चे की तुलना किसी कमजोर बच्चे से करते हैं तो वह ख़ुद को बहुत स्पेशल और ओवर कॉन्फिडेंट समझने लगता है। डॉ. शिवानी सलाह देती हैं कि भाई-बहनों की भी आपस में तुलना न करें। दूसरे बच्चों के साथ तुलनात्मक व्यवहार करने से उनमें सुपीरियोरिटी कॉम्प्लेक्स आ जाता है। बच्चों की छोटी से छोटी सफलता पर भी उनकी तारीफ करें। माता-पिता द्वारा की गई प्रशंसा बच्चों में आत्मविश्वास जगाती है और वे भविष्य में बेहतर प्रदर्शन करने का प्रयास करते हैं। यदि अभिभावक बच्चों की किसी बात पर सहमत नहीं हैं तो उनकी तुलना करने के बजाय उन्हें पॉजीटिव फील कराएं। बच्चों को समझाते समय दिल दुखाने वाले शब्दों का प्रयोग न करें, बल्कि प्यार व नम्रता से उनके साथ पेश आएं। हर बच्चे का स्वभाव अलग-अलग होता है इसलिए उसके अच्छे गुणों को परखना, हर पैरेंट्स की जिम्मेदारी होती है।

कम ध्यान देंगे तो बढ़ जाएगा बच्चों में घमंड

भागती दौड़ती जीवन शैली का तनाव आज माता पिता के पास बच्चों के लिए वक्त ही नहीं होता और यदि थोड़ा बहुत समय निकल भी जाए तो बच्चे के साथ सख्ती से पेश आने लगते हैं। अभिभावकों का ऐसा व्यवहार बच्चों के मन पर बुरा प्रभाव डालता है और वे उनसे दूर और मन ही मन दुखी रहने लगते हैं। ऐसे में माता पिता बच्चों की सारी मांगे पूरी करने लगते हैं। इस व्यवहार के कारण बच्चे जिद्दी और घमंडी बन जाते हैं। ऐसे बच्चे अपनी आलोचना कभी बर्दाश्त नहीं कर पाते। डॉ. शिवानी के अनुसार बच्चों के साथ क्वालिटी टाइम बिताएं. उनकी दिनचर्या में शामिल होना भी बच्चों के संपूर्ण विकास का ही हिस्सा है। बच्चों के द्वारा गलतियां करने पर उन्हें प्यार से समझाएं। बच्चों की हर जिद, इच्छा को पूरा न करें। जो उनके लिए जरूरी हो, उन्हीं पर ध्यान दें। यदि बच्चा इस दौरान रोने-चिल्लाने लगे, तो उसकी इस एक्टिविटी को नजरअंदाज करें, नहीं तो आपका ऐसा व्यवहार उसकी आदतों को और भी बिगाड़ सकता है।  


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