एससी-एसटी कानून पर बना रहेगा विवाद : डॉ. वाजपेयी
आगरा : एससी-एसटी कानून पर सरकार और शीर्ष अदालत के बीच विवाद बना रहेगा।
ऋषि दीक्षित, आगरा : एससी-एसटी कानून पर सरकार और शीर्ष अदालत के बीच विवाद बना रहेगा। बेशक सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का आदेश बदलने वाला संशोधन विधेयक संसद में पारित कर दिया है लेकिन कोर्ट को इसकी पुन: समीक्षा करने का अधिकार है। अदालत चाहे तो इसे रद भी कर सकती है।
जागरण के विमर्श कार्यक्रम में सोमवार को आगरा कॉलेज के राजनीति विज्ञान के विभागाध्यक्ष डॉ. अरुणोदय वाजपेयी ने बताया कि संसद में इस विधेयक को सरकार ने ज्यों का त्यों पारित करा दिया है, इसमें अनुच्छेद 21 के तहत आम आदमी के जीवन और निजी स्वतंत्रता के अधिकारों पर ध्यान नहीं दिया गया है। दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने एससी-एसटी अधिनियम में उन खामियों को खत्म किया था, जिनकी वजह से निर्दोष लोगों का उत्पीड़न होता था। इस एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज होते ही गिरफ्तारी कर ली जाती थी और अंतरिम जमानत का भी कोई प्रावधान नहीं था। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में 89 पेज के अपने निर्णय में जांच के बाद गिरफ्तारी करने और अंतरिम जमानत देने का निर्णय किया था। इस एक्ट में किसी सरकारी अधिकारी या कर्मचारी को गिरफ्तार करने से पहले उसके नियोक्ता की अनुमति लेने और गैर सरकारी मामलों में डिप्टी एसपी स्तर के अधिकारी की जांच के बाद गिरफ्तारी का प्रावधान किया था। यह निर्णय संविधान के अनुच्छेद 21 को ध्यान में रखते हुए किया गया था। डॉ. वाजपेयी ने बताया कि वर्ष 2014-15 में लोकसभा में स्टैंडिंग कमेटी ने इस अधिनियिम का दुरुपयोग होने की जानकारी दी थी। एससी-एसटी अधिनियिम को ज्यों का त्यों पुन: संसद में पारित करना व्यावहारिक रूप से ठीक नहीं है, यह राजनीतिक फैसला है। यह रूल ऑफ लॉ पर आधारित नहीं है। उन्होंने बताया कि जिस समय यह संशोधन विधेयक संसद में पास हुआ तो इसके विरोध में किसी भी दल और उसके सांसद ने अपनी बात नहीं रखी। क्योंकि सबकी मंशा राजनीतिक लाभ लेने की है। लेकिन अदालत अनुच्छेद 21 से समझौता नहीं करेगी। वह स्वयं और किसी के वाद दायर करने पर इस विधेयक को रद कर सकती है।
डॉ. वाजपेयी ने कहा कि यह सही है कि एससी-एसटी का उत्पीड़न हो रहा है और उसपर रोक लगाने के लिए इस तरह का कानून होना चाहिए, लेकिन यह भी सही है कि इस कानून का दुरुपयोग भी हो रहा है उसे रोका जाना चाहिए। सरकार को चाहिए था कि वह इस एक्ट के तहत मामले की जांच की समय सीमा निर्धारित कर देती तो बात बन जाती। किसी भी मामले में किसी निर्दोष को दंड देने से पहले प्रारंभिक जांच जरूरी है। जिस तरह महिला उत्पीड़न और दहेज एक्ट का दुरुपयोग होने पर उसमें बदलाव किया गया था, इसी तरह अदालत ने इसमें बदलाव किया था।
एससी-एसटी कानून के तहत मात्र 25 फीसद मामलों में ही सही कार्रवाई हो पा रही थी 75 फीसद मामलों में गड़बड़ी थी। डॉ. वाजपेयी ने बताया कि इस मुद्दे के तीन पहलू हैं, राजनीतिक, लीगल और संवैधानिक। कई सदस्यों ने कोर्ट पर भी मनमानी का आरोप लगाया है, जिससे संसद और शीर्ष अदालत के बीच यह तनाव का मुद्दा बनेगा। संवैधानिक संकट पैदा हो सकता है। इस मामले में अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल भी जस्टिस एके गोयल और जस्टिस यूयू ललित के इस फैसले से इत्तेफाक रखते थे। सामाजिक समरसता बनी रहे। आदमी के अधिकारों का हनन न हो। स्वस्थ लोकत्रंत के लिए जरूरी है अदालती निर्णयों का सम्मान।
एससी-एसटी एक्ट में हैं 19 अपराध : एससी-एसटी अत्याचार निवारण अधिनियम में 19 तरह के अपराध रखे गए हैं, जिनमें छुआछूत भी है। इस एक्ट में पहले भी 1989 में संशोधन किया जा चुका है। कई अन्य देशों में भी इस तरह के कानून को लेकर सरकार और अदालत के बीच खींचतान बनी रहती है। क्योंकि सरकारें राजनीतिक नफा-नुकसान देखती हैं और अदालतें आम आदमी को न्याय दिलाने के लिए प्रतिबद्ध होती हैं।