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National Video Games Day: बचा लें अपने बच्‍चों को इस लत से, दिमाग हो सकता है विकृत Agra News

दिन-रात गेम खेलने की लत के चलते हो रहे डिप्रेशन का शिकार। गेम में लगातार हारने पर बच्चे करने लगते हैं हिंसक व्यवहार।

By Tanu GuptaEdited By: Published: Mon, 08 Jul 2019 02:12 PM (IST)Updated: Mon, 08 Jul 2019 02:12 PM (IST)
National Video Games Day: बचा लें अपने बच्‍चों को इस लत से, दिमाग हो सकता है विकृत Agra News
National Video Games Day: बचा लें अपने बच्‍चों को इस लत से, दिमाग हो सकता है विकृत Agra News

आगरा, गौरव भारद्वाज। मोबाइल पर गेम खेलने के बच्चे दीवाने हैं। शुरुआत में तो अभिभावक भी बच्चों को खुश करने के लिए मोबाइल थमा देते हैं, लेकिन बाद में इसके दुष्परिणाम भुगतने पडते हैं। मोबाइल हो या कंप्यूटर बच्चों को बस वीडियो गेम चाहिए। आलम यह हो गया है कि दिन-रात वीडियो गेम खेलकर बच्चे हिंसक हो रहे है। कइयों ने तो वीडियो गेम में हारने पर अपने आप को नुकसान तक पहुंचा लिया है।

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छोटे बच्चे से लेकर बडे आदमी तक इन दिनों मोबाइल पर पबजी जैसे टॉस्क वाले गेम खेलते नजर आते हैं। खाना-पीना भूल वह बस गेम खेलने में व्यस्त रहते है। मगर, बच्चों पर इन गेम्स का विपरीत प्रभाव देखा जा रहा है। छोटे बच्चों का मन कोरे कागज जैसा होता है। वह जो भी देखते हैं, वैसी ही नकल करने लगते हैं। वर्तमान में ज्यादातर वीडियो गेम्स हिंसा से भरपूर हैं, उनमें सिर्फ मारधाड देखकर बच्चे हिंसा की प्रवृत्ति बढ रही है। मनोचिकित्सक यूसी गर्ग का कहना है कि पिछले छह सात महीने में उनके पास मोबाइल वीडियो गेम के चलते हिंसक होने वाले बच्चे के मामलों की संख्या बढी है। इसमें सबसे ज्यादा 10 से 17 साल तक के बच्चे है। इसका कारण है कि मारधाड वाले गेम में बच्चा मानसिक व शारीरिक तौर पर भी इनवॉल्व हो जाता है। इस कारण वह उत्तेजित हो जाता हैं और हिंसक हो जाते है।

केस-1 रामबाग निवासी होटल मैनेजर का सात साल का बेटा दिनभर मोबाइल पर गेम खेलता है फोन लेते ही गुस्सा हो जाता है। घर का सामान फेंकने लगता है। माता-पिता ने बच्चे को मनोचिकित्सक को दिखाया है।

केस-2 बोदला निवासी कारोबारी का सातवीं कक्षा में पढने वाला बेटा मोबाइल पर गेम खेलता रहता है। गेम हारने पर वह घर में किसी से बात नहीं करता । अकेला कमरे में बंद हो जाता है। घरवालों ने उसकी काउंसिलिंग कराई है।

सीबीएसई जारी कर चुकी है गाइडलाइन

ब्लू व्हेल और पबजी जैसे गेम को लेकर सीबीएसई पहले ही गाइड लाइन जारी कर चुकी है। ऐसे बच्चों की काउंसिलिंग के लिए स्कूलों में काउंसलर भी नियुक्त करने के निर्देश दिए गए है। जीडी गोयनका स्कूल के प्रधानाचार्य पुनीत वशिष्ठ का कहना है कि बच्चों में गेम के कारण उनके व्यवहार में परिवर्तन देखेन को मिलता है, ऐसे बच्चों की काउंसिलिंग की जाती है।

क्या है पबजी

यह गेम की फुल फॉर्म शूटर्स बैटल रॉयल गेम है। यह खेल पूरी तरह हिंसा पर आधारित है और बच्चों की मासूमियत को खत्म कर रहा है। अगर आपका बच्चा दिन में दो धंटे से अधिक पबजी लगातार कई दिनों से खेल रहा है और मना करने के बाद भी नहीं मान रहा है तो वह मानसिक रुप से बीमार होता जा रहा है।

एक बार घुसते हैं फिर निकल नहीं पाते

मनोचिकित्सक विशाल सिन्हा का कहना है कि सबसे पहले गेम का मतलब समझना होगा। कोई भी एक्टिविटी जो हम मनोरंजन के लिए करते हैं, जिसमें शारीरिक और मानसिक तौर पर हम शामिल होते हैं, उससे हमें अच्छा लगता है, उसे हम गेम कहते है। पबजी और ब्लू व्हेल जैसे गेम में एक बार घुसते हैं तो उसमें बंध कर रह जाते हैं। इन गेम्स में बदला लेने की भावना आती है। हम इसके प्रभाव में कई चीजों का उत्तेजना के साथ करते हैं । हारने पर हीन भावना आती है। इसके बाद बच्चा जीतने का प्रयास करता है। सफल न होने पर वह परेशान हो जाता है।

माता पिता की जिम्मेदारी

मनोचिकित्सकों को कहना है कि गेम के चलते बच्चों को डिप्रेशन व हिंसक बनने से बचाने के लिए अभिभावकों को अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी। प्रयास करें कि बच्चे को मोबाइल न दें, अगर जरुरी है तो कीपैड वाला मोबाइल दें। उन्हें बहलाने के लिए मोबाइल के जगह कोई दूसरी चीज दें।

गेम्स का बच्चों पर पुरा प्रभाव

- हिंसा से भरे या बदला लेने वाले गेम्स बच्चों में आक्रामकता को बढाते हैं।

- बुरे गेम्स भावनाओं पर बुरा असर डालते है और अच्छी भावनाओं को दबाते है।

-लंबे समय तक गेम्स खेलने से मोटपा बढता है। सिरदर्द, चिढचिढापन, ध्यान न लगना और पढाई में खराब प्रदर्शन करने जैसी समस्याएं भी होती है।

-जिन बच्चों को मिर्गी या किसी अन्य तरह के दौरे पडते है। या फोटो सेंसिटिविटी डिस ऑडर्र होता है, गेम्स उन्हें उकसाने का काम करते हैं  


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