आगरा में 101 दिन रहे थे छत्रपति शिवाजी महाराज, औरंगजेब की आंखों में ऐसे झोंकी थी धूल
मुख्यमंत्री द्वारा मुगल म्यूजियम का नामकरण छत्रपति शिवाजी के नाम पर करने के दिए गए हैं निर्देश। जदुनाथ सरकार की किताब औरंगजेब के अनुसार 11 मई को आए और 19 अगस्त को यहां से गए।
आगरा, निर्लोष कुमार। ताजनगरी में निर्माणाधीन मुगल म्यूजियम का नामकरण मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा छत्रपति शिवाजी महाराज के नाम पर करने के निर्देश दिए गए हैं। म्यूजियम में छत्रपति शिवाजी को समर्पित एक गैलरी बनेगी। इतिहास पर नजर डालें तो आगरा में छत्रपति शिवाजी महाराज 101 दिन रहे थे। इनमें से 99 दिन उन्हें औरंगजेब की नजरबंदी में बिताने पड़े थे।
इतिहासकार जदुनाथ सरकार ने अपनी किताब 'औरंगजेब' में लिखा है कि राजा जयसिंह से पुरंदर की संधि करने के बाद शिवाजी अपने दल के साथ 11 मई, 1666 को आगरा पहुंचे। आगरा की सीमा पर उन्होंने मुलक चंद की सराय पर डेरा डाला। यह भवन सेवला सराय के नजदीक था, जो अब नहीं है। 12 मई को आगरा किला के दीवान-ए-खास में औरंगजेब के दरबार में शिवाजी गए, लेकिन यथोचित सम्मान नहीं मिलने पर वो नाराजगी जताकर लौट आए। औरंगजेब ने इसी दिन शिवाजी को राजा जयसिंह के बेटे राम सिंह की छावनी के निकट सिद्धी फौलाद खां की निगरानी में नजरबंद करने का आदेश किया। 16 मई, 1666 को शिवाजी को रदंदाज खां के मकान पर ले जाने का आदेश हुआ। बीमारी का बहाना बनाकर शिवाजी ने गरीबों को फल बांटना शुरू कर दिया। 18 अगस्त को उन्हें राम सिंह की छावनी के निकट स्थित फिदाई हुसैन की शहर के बाहर टीले पर स्थित हवेली में रखने का आदेश औरंगजेब ने किया। 19 अगस्त, 1666 को यहीं से शिवाजी अपने पुत्र संभाजी के साथ फलों व मिठाइयों की टोकरी में बैठकर निकल गए थे। उनकी जगह हीरोजी फरजंद पलंग पर लेटे रहे थे। शिवाजी के बचकर निकलने की जानकारी औरंगजेब व अन्य को 20 अगस्त, 1666 को मिल सकी थी। इस तरह आगरा में शिवाजी का प्रवास 101 दिन का रहा था। 12 सितंबर, 1666 को वो राजगढ़ पहुंचे थे। हालांकि, पुरानी व नई तिथियों की गणना में कुछ दिनों का अंतर होता है। कुछ इतिहासकारों ने शिवाजी के औरंगजेब की नजरबंदी से 13 व 16 अगस्त को निकलने की बात भी लिखी हैं।
आगरा किला के वाटर गेट के नजदीक स्थित कोठरियां, जिन्हें शिवाजी की जेल बताकर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने 2003 में संरक्षित किया था।
दीवान-ए-खास पर रामनाईक ने बदलवाया था शिलालेख
शिवाजी के औरंगजेब के दरबार में आने से संबंधित शिलालेख अागरा किला में दीवान-ए-खास के नजदीक लगा हुआ है। यहां 2017 से पहले लगे शिलालेख में उल्लेख था कि शिवाजी औरंगजेब के दरबार में मूर्छित हो गए थे। पूर्व राज्यपाल रामनाईक ने इस शिलालेख पर आपत्ति जताई थी। उनका कहना था कि शिवाजी जैसा व्यक्ति मूर्छित नहीं हो सकता। वो दरबार में टेक लगाकर बैठे होंगे। इस पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) द्वारा शिलालेख बदलवा दिया गया था।
वाटर गेट के पास जेल बताकर किया था संरक्षण
पूर्व में आगरा किला में शिवाजी को औरंगजेब द्वारा बंधक बनाए जाने की किंवदंती प्रचलन में थी। इसके आधार पर वर्ष 2003 में एएसआइ ने वाटर गेट के नजदीक कोठरियों में शिवाजी की जेल बताकर संरक्षण कर दिया था, जिस पर करीब 45 लाख रुपये व्यय हुए थे। इसे सैलानियों के लिए खोले जाने की तैयारी थी। तत्कालीन केंद्रीय पर्यटन मंत्री जगमोहन इसके उद्घाटन को आने वाले थे, लेकिन इतिहासविद राजकिशोर राजे ने इस पर आपत्ति जताई थी। इसके बाद यह कार्यक्रम टल गया था। बाद में सूचना का अधिकार अधिनियम में उनके द्वारा जानकारी मांगे जाने पर एएसआइ ने अवगत कराया था कि उसके पास शिवाजी को आगरा किला में बंधक बनाए जाने का कोई साक्ष्य उपलब्ध नहीं है।
ग्वालियर किला था मुगलों की जेल
इतिहासविद राजकिशोर राजे बताते हैं कि औरंगजेब द्वारा शाहजहां को आगरा किला में नजरंबद करने को छोड़ दें तो किसी भी शहंशाह ने अपने दुश्मनों को आगरा किला में बंदी बनाकर नहीं रखा। मुगलों द्वारा अपने विरोधियों व दुश्मनों को ग्वालियर के किले में बंधक बनाकर रखा जाता था। आगरा किला में शिवाजी को बंधक बनाकर रखे जाने का इतिहास में जिक्र नहीं मिलता। सभी इतिहासकारों ने शिवाजी को राम सिंह की हवेली के नजदीक रखे जाने की बात कही है। यह विवाद का विषय है कि राम सिंह की हवेली जयपुर हाउस में थी या फिर ताजगंज में कहीं।
समिति ने किया था यह दावा
इतिहास संकलन समिति ने शोध में दावा किया था कि शिवाजी को राजा जयसिंह के बेटे राम सिंह की छावनी के निकट सिद्धी फौलाद खां की निगरानी में औरंगजेब द्वारा नजरबंद किया गया था। 16 मई, 1666 को शिवाजी को रदंदाज खां के मकान पर ले जाने का आदेश हुआ। राम सिंह की छावनी के निकट स्थित फिदाई हुसैन की शहर के बाहर टीले पर स्थित हवेली में शिवाजी को रखा गया। जयपुर म्यूजियम में रखे आगरा के नक्शे के अनुसार राम सिंह की हवेली कोठी मीना बाजार के नजदीक थी। अभिलेखों में यह जगह आज भी कटरा सवाई राजा जयसिंह के नाम से दर्ज है। समिति ने दावा किया था कि राम सिंह की हवेली के निकट ही फिदाई हुसैन की हवेली थी, जो कोठी मीना बाजार ही है। यहीं से शिवाजी अपने पुत्र के साथ फलों व मिठाइयों की टोकरी में बैठकर निकल गए थे।