लाड़िली के जन्म पर नाची थी नानी तो शुरू हुई चरकुला नृत्य की कहानी
सिर पर वजनी चक्र को रखकर, उसपर दीपक जलाए जाते हैं। स्त्रियां संतुलन रखते हुए नृत्य करती हैं।
आगरा(तनु गुप्ता): लंबा घूंघट, सिर पर लकड़ी का चक्र , चक्र के ऊपर 108 दीपकों की जगमग। लोक वाद्ययंत्रों के संगीत पर थिरकते कदम और अचंभित होकर एकटक दृष्टि से देखते दर्शक। चरकुला नृत्य। जितना रोचक उतनी ही रोचक इसके प्रादुभाव की कहानी है।
राधा- कृष्ण की छाप ब्रज के कण- कण में बसी है और इसी छाप का एक अंश ब्रज के इस लोक नृत्य में भी दिखता है।
राधाष्टमी के उत्साह में डूबा ब्रज नृत्य की इस शैली का जन्मदाता भी है। आज भी बरसाना में चल रहे राधाष्टमी उत्सवों में चरकुला नृत्य जगह- जगह कलाकार प्रस्तुत कर रहे हैं। लोकमान्यताओं के अनुसार
वृषभानु दुलारी राधा के जन्म का समाचार जब उनकी नानी ने सुना तो मारे खुशी के आंगन में रखे रथ के पहिये पर जलते हुए दीप सजाए और सिर पर रखकर पूरे गांवभर में घूमी थीं। घर- घर जाकर राधे रानी के जन्म की खुशी साझा की और नृत्य करने लगीं। तभी से इस नृत्य को चरकुला नृत्य का नाम मिल गया। वहीं दूसरी मान्यता के अनुसार होली के तीसरे दिन राधा जी की नानी ने इस नृत्य को किया था। वहीं कुछ पुस्तकों में उल्लेख है कि भगवान श्री कृष्ण ने जब गोवर्धन पर्वत उठाकर इंद्र देव का मद चूर किया तो ब्रजवासियों ने चरकुला नृत्य किया था।
ब्रज की गलियों से शुरू हुआ यह नृत्य आज विदेशों में भी अपनी खासी पहचान बना चुका है। कई नृत्यकारों को चरकुला नृत्य ने रोजगार भी दिया है तो उनकी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान भी बनाई है। ब्रज की स्त्रियों का है प्रमुख नृत्य:
केंद्रीय हिंदी संस्थान की अतिथि प्रवक्ता ज्योति खंडेलवाल के अनुसार
ब्रज में हर त्योहार पर स्त्रियां चरकुला नृत्य करती हैं। अधिकांशत: ब्राह्मण समुदाय की स्त्रियों का यह प्रमुख नृत्य है। एकल और समूह में होने वाला यह नृत्य पूरी तरह से संतुलन पर आधारित है। ज्योति के अनुसार चरकुला में लोक वाद्य यंत्र जैसे ढोलक, नगाड़ा, हारमोनियम, बांसुरी, थाली, मंजीरा, करताल आदि प्रयोग होते हैं। ऊंचा लहंगा और कढ़ाईदार ब्लॉउज इसकी पोशाक होती है। नाक तक घूंघट इस नृत्य को परंपरा और सभ्यता से जोड़ता है। बिना अभ्यास और प्रशिक्षण के नहीं हो सकता चरकुला: आगरावासियों को चरकुला नृत्य से रुबरु कराने वालीं रामचंद्र सराफ गर्ल्स इंटर कॉलेज की पूर्व प्रधानाचार्य मिथलेश जौहरी हैं। करीब 30 वर्ष पहले उन्होंने यहां मंच पर चरकुला की प्रस्तुतियां शुरू करवाई थीं। मिथलेश बताती हैं कि चरकुला मेहनतभरा और मुश्किल नृत्य है। इसे बिना प्रशिक्षण और सख्त अभ्यास के करना नामुमकिन है। जलते हुए दीपकों को थिरकते कदमों के साथ सिर पर चक्र पर रखना और लगातार नृत्य करना आसान नहीं होता। चरकुला नृत्य की विशेषता होती है कि इसके स्टेप आरामदायक और कम होते हैं। यश भारती से सम्मानित गीतांजलि का पहला प्यार है चरकुला: देश विदेश में ब्रज की राधा के नाम से प्रसिद्ध और यश भारती सम्मान से सम्मानित गीतांजलि शर्मा का पहला प्यार चरकुला नृत्य ही है। गीतांजलि बताती हैं छोटी सी उम्र से ही नृत्य में रुचि थी। लोकनृत्यों में राधा का किरदार निभाती थीं। एक बार पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने जब नृत्य करते हुए देखा तो ब्रज की राधा का नाम दे दिया। इसके बाद थोड़ी समझदार हुई तो ब्रज के कलाकारों को चरकुला नृत्य करते देखा। तब से इस नृत्य के प्रति आकर्षण मन ऐसा आया कि 14 वर्ष की उम्र में करीब 45 किलो वजनी चरकुला सिर पर रखकर नृत्य किया। गीतांजलि वर्तमान में शास्त्रीय नृत्य कथक की प्रसिद्ध कलाकार हैं।