सीप संग कांच मिला को जड़ गई पिया संग फोटो, आखिर कैसे बदला रूप सुहाग के श्रंगार का
सन 2000 में आया कंगन का दौर तो फिर नहीं मुड़कर देखा पीछे। कंगन पर आने लगा नाम तो अब फोटो के साथ बढ़ रही है डिमांड।
आगरा [जेएनएन]: दशकों पुरानी चूडिय़ों की खनक ने कई बदलाव देखे। वक्त के साथ चूड़ी बदली भी तो संवरी भी। नए-नए रूप भी लिए। जब प्लास्टिक के कंगन से टक्कर मिली तो सन 2000 में चूड़ी ने भी अपना रूप बदल लिया। सुहाग नगरी फीरोजाबाद के चूड़ी निर्माताओं ने सुहाग के श्रंगार में थोड़ा से फेरबदल कर केमिकल से दो चूडिय़ों को मिलाकर कंगन का रूप दिया तो फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। आज चूड़ी के साथ कांच के कंगन की खनक भी कांच उद्योग को दम दे रही है।
पहले गर्म कांच से लिखा जाता था नाम
कई हाथों से गुजरने वाली चूड़ी कई प्रयोगों से गुजरी है। कंगन बनने से पहले ही मुडाई की चूड़ी पर गर्म कांच से नाम लिखा जाता था। हालांकि कम रंग एवं चमक न होने के कारण यह लोगों को कम पसंद आते थे।
ऐसे में जब दो एवं चार चूड़ी के कंगन बनना शुरू हुए तो नग की सजावट के साथ नाम का ट्रेंड बढ़ा। सालों तक यह कंगन जमकर चले। इधर लहंगे से मैच खाती डिजाइन की डिमांड आने लगी। इस दौरान 2008-09 में सीप की चूड़ी राजस्थान से लाकर कुछ कारोबारियों ने कंगन की शक्ल में संवारना शुरू किया। सीप पर डिजाइन अच्छी होती है। बदलते वक्त में कलाई पर पिया के फोटो की मांग आई तो फिर सीप की चूड़ी पर नाम के साथ फोटो लगाने का चलन सन 2011 में शुरु हुआ। फोटो युक्त कंगन महंगा होने के कारण इसकी डिमांड बाहर से ही ज्यादा निकल रही है।
कब शुरू हुआ कंगन बनाने का सिलसिला
कंगन बनाने का काम छोटे-मोटे रूप में तो 1997-1998 में ही शुरू हो गया था, लेकिन इसने जोर पकड़ा सन 2000 के बाद में। पहले दो चूड़ी पर केमिकल लगा कर कंगन बनाए जाते थे। शुरुआती दौर में कंगन की सजावट पुरदिल नगर से आने वाले सादा नग से की जाती थी। इसके बाद जरकिन (चमकदार पत्थर) आया तो उसकी मांग बढ़ गई। 2004 में यह छा गया। मुंबरई, दिल्ली तथा जयपुर से आने वाले जरकिन ने पुरदिल के नग को पीछे छोड़ दिया।
दो दर्जन से अधिक रंगों में तैयार हो रहे कंगन
शुरुआती दौर में मात्र लाल, मैरून, टमाटरी एवं नीले रंग में ही आने वाले कंगन आज 25 से 30 रंग में तैयार हो रहे हैं। चूड़ी एवं कंगन के बाजार की तुलना करें तो खनक के कुल कारोबार में 70 फीसद हिस्सेदारी चूड़ी की है तो 30 फीसद कब्जा कंगन का।
कंगन की खास बातें
- 25 रुपये से 150 रुपये में बिकती है दो कंगन की डिब्बी।
- 350 से 550 में तैयार होता है नाम वाला कंगन।
- 700 से 1100 में तैयार होता है नाम एवं डिजाइन का कंगन।
- 1100 से 1500 रुपये तैयार होता है फोटो वाला कंगन।
नये प्रयोग और ऑन लाइन व्यापार ने बढ़ाई कंगनों की मांग
2000 से दो चूड़ी के कंगन की डिमांड बढऩे लगी। हालांकि कारोबार 2005 तक उछाल में आया। आज कई तरह के कंगन कांच नगरी में बन रहे हैं।
-आनंद अग्रवाल, चूड़ी कारोबारी
फोटो वाले कंगन को लेकर कई प्रयोग किए गए हैं। नाम, डिजाइन एवं फोटो के कंगन की डिमांड अब बढ़ी है। ऑनलाइन भुगतान की व्यवस्था अच्छी होने से ऑर्डर आसान होते हैं।
-अंशुल गुप्ता, चूड़ी कारोबारी