Preservation of Culture: देश में अब अप्रचलित हो चलीं बोलियों को सहेज रहा केंद्रीय हिंदी संस्थान
Preservation of Culture भोजपुरी कोष का हो चुका है प्रकाशन राजस्थानी और ब्रज कोष हुआ तैयार। लोक शब्द कोष परियोजना में 18 बोलियों के शब्दों का होगा संकलन।
आगरा, प्रभजोत कौर। बटमार, खुरपौ, यामरौ, माँझौ...यह शब्द कभी लोक कहानियां, लोकोक्ति, लोक देवताओं से जुड़े गीतों में सुनाई देते थे, लेकिन अब यह शब्द बदलाव की बयार में बह गए हैं। यह शब्द अब सुनाई ही नहीं देते। धीरे-धीरे लोग पुरानी लोक भाषाओं को भूल रहे हैं। आने वाली पीढ़ी पुराने शब्दों से अंजान है। शोधार्थी कठिन शब्दों को अपनी शोध में शामिल ही नहीं करना चाहते हैं। इसलिए केंद्रीय हिंदी संस्थान ने 18 पुरानी बोलियों को सहेजने और उनके संरक्षण का बीड़ा उठाया है। संस्थान के अनुसंधान एवं भाषा विभाग द्वारा हिंदी लोक शब्द कोष परियोजना के तहत पुरानी लोक बोलियों पर शोध किया जा रहा है। इन बोलियों के पुराने स्वरूप को बचाने के लिए कोष का निर्माण किया जा रहा है, जिसे प्रकाशित भी संस्थान द्वारा ही किया जाता है। अब तक भोजपुरी का कोष निर्णाण हो चुका है। बुंदेली, मारवाड़ी और कन्नौजी बोली पर शोध चल रहा है। राजस्थानी और ब्रज का कोष प्रकाशित होने के लिए तैयार हो चुका है।
2008 में हुई परियोजना की शुरुआत
12 साल पहले इस परियोजना की शुरुआत हुई थी। सबसे पहले भोजपुरी बोली का कोष तैयार किया गया था, जो 2010 में प्रकाशित हुआ था। उसके बाद ब्रज और राजस्थानी भाषा की बोलियों पर शोध चल रहा था। अब इनके कोष भी तैयार हो चुके हैं, जो जल्द ही प्रकाशित किए जाएंगे।परियोजना के तहत 18 बोलियों यानि अवधी, कन्नौजी, बुंदेली, बघेली, हड़ौती, हरयाणवी, छत्तीसगढ़ी, मालवी, नागपुरी, खोरठा, पंचपरगनिया, कुमाउंनी, मगही आदि भाषाओं के अप्रचलित शब्दों पर शोध कर कोष तैयार किए जाएगा। इस कोष में मेले, तमाशे, खेती, कहानियों से जुड़े पुराने शब्दों को खोजा जा रहा है, जो अब सुनाई नहीं देते हैं। साथ ही उनका अर्थ, व्याकरण आदि भी तलाशा जाता है।
कैसे होती है शोध?
इसके लिए एक टीम तैयार की जाती है, जिसमें कोषकर्मी इन क्षेत्रों में जाकर शब्दों का संकलन करते हैं। यह कोषकर्मी उन क्षेत्रों के ही वाशिंदे होते हैं, जिससे उन्हें भाषा समझने में आसानी होती है। शब्दों के संकलन के बाद भाषा विशेषज्ञों द्वारा शब्दों का प्रकाशन के लिए चयन किया जाता है।फील्ड सर्वे के अलावा लिखित साहित्य से भी शब्दों का संकलन किया जाता है। देश भर की लाइब्रेरी में रखी पुस्तकों की भी मदद ली जाती है।
हजारों शब्दों का बनता है कोष
कोष में कितने शब्दों का संकलन होगा, यह भाषा के क्षेत्र विस्तार पर निर्भर करता है। जैसे राजस्थानी, भोजपुरी और ब्रज भाषा में आठ से दस हजार शब्दों का संकलन किया गया है। जबकि कुछ भाषाओं में डेढ़ से पांच हजार शब्दों का ही संकलन किया जा सकेगा। कोष में हर बोली के शब्द का हिंदी अर्थ और अन्य भाषा के शोधार्थियों के लिए अंग्रेजी अर्थ भी दिया जाता है।
एेसे शब्द जो प्रचलन से बाहर हो रहे हैं, पर वो भाषा की संस्कृति के लिए महत्वपूर्ण हैं, इसलिए उनका संकलन करना बहुत जरूरी हैा।इस परियोजना का उद्देश्य एेसे ही शब्दों को सुरक्षित करना है। अॉक्सफोर्ड और पोलेंड शब्दकोषों के लिए बहुत बड़ी टीमें काम करती हैं, इसलिए जल्दी काम होता है। हमारे यहां टीम छोटी हैं, इसलिए वक्त ज्यादा लगता है।
- डा. अनुपम श्रीवास्तव, परियोजना प्रभारी