बगीचों में भ्रमण पर निकले भगवान रंगनाथ, मोहिनी रूप में भक्तों को दिए दर्शन
वृंदावन के रंगजी मंदिर में चल रहा है ब्रह्मोत्सव। शाम को भगवान सोने के सिंह सार्दूल पर विराजमान होकर नगर भ्रमण को निकले।
आगरा, जेएनएन। दक्षिण भारतीय परंपरा के रंगजी मंदिर में चल रहे ब्रह्मोत्सव में बुधवार को भगवान रंगनाथ मोहनी रूप धारण कर हाथ में अमृत कलश लेकर मंदिर से भ्रमण पर निकले। सबसे पहले भगवान श्रीरंगलक्ष्मी महाविद्यालय पहुंचे। इसके बाद मंदिर की संप्रदाय से जुड़े अनेकों बगीचों में होते हुए पुन: मंदिर को पहुंचे।
चांदी की पालकी में विराजमान भगवान रंगनाथ के दर्शन करने को श्रद्धालुओं का हुजूम उमड़ पड़ा। वैदिक मंत्रोच्चारण के मध्य पूजन-अर्चन के बाद जब भगवान रंगजी मंदिर से बाहर निकले तो सबसे पहले श्रीरंगलक्ष्मी महाविद्यालय पहुंचे। यहां आरती के बाद वे झांझडिय़ा की कोठी, बड़ा खटला, रघुनाथ आश्रम, नीम वाली बगीची, गोपाल मंदिर, हरदेव मंदिर, आश्रम गोदाबिहार में भ्रमण करने के बाद ही मंदिर पहुंचे। मंदिर की सीईओ अघना श्रीनिवासन ने बताया कि बुधवार को भगवान मोहिनी रूप में भक्तों को कृतार्थ करने उनके यहां पहुंचे। बताया कि जिस समय समुद्र मंथन हुआ था, तब भगवान ने मोहिनी रूप रखकर दर्शन दिए। उसी लीला का दर्शन भगवान रंगनाथ ने करवाया। बताया कि जब समुद्र मंथन हुआ, भगवान ने मोहिनी अवतार धारण किया। भगवान को स्त्री स्वरूप को देख दावन मोहित हो गए। दानवों की सोच थी कि इस सुंदर स्त्री के हाथों से अमृत मिले ये आसुरी बुद्धि का प्रतीक थी। मगर, देवताओं की बुद्धि निर्मल थी। भगवान के रूप में उन्होंने पिता और मां दोनों का रूप देखा और बोले की मां के रूप में अमृत पिएंगे तो सौभाग्य होगा। कहा कि सात्विक बुद्धि रखने से जो भाव उत्पन्न होते हैं वे देवत्व व सुख को प्रदान करते हैं और स्त्री को देखकर के भौतिक विचार उत्पन्न होते हैं और वासना आती है तो वह असुरत्व व अनिष्ट के परिणाम देने वाले हाते हैं। राक्षसों की तामसिक बुद्धि थी, इसलिए उन्हें विष और देवताओं को अमृत मिला। भगवान ने नारी के प्रति सदैव पवित्र बुद्धि और सुंदर विचार रखने का संदेश दिया। इसी प्रकार शाम को भगवान सोने के सिंह सार्दूल पर विराजमान होकर नगर भ्रमण को निकले तो भक्तों ने पुष्पवर्षा कर उनका स्वागत किया।
आचार्य रंगदेशिक की इच्छा से हुआ रंगजी मंदिर का निर्माण
भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं का दर्शन करवाते मंदिरों की नगरी वृंदावन में दक्षिण भारतीय संस्कृति का रंगजी मंदिर भी प्रमुख पहचान बनाए है। चारों ओर से गौड़ीय वैष्णव संप्रदायों के बीच रामानुज संप्रदाय की पताका फहरा रहे इस मंदिर निर्माण का श्रेय भले ही श्रीरंगदेशिक स्वामी को जाता हो। मगर, मंदिर निर्माण में मथुरा के सेठ लक्ष्मीचंद और उनके भाइयों की भूमिका को भी नकारा नहीं जा सकता। तन, मन और धन आचार्य रंगदेशिक स्वामी को समर्पित कर तीनों भाइयों ने उनकी वृंदावन में श्रीगोदा देवी को रंगमन्नार के साथ ब्रज में प्रतिष्ठित करवाने की इच्छा पूरी की।
रंगजी मंदिर अभिलेखों में दर्ज है कि चेन्नई के अगरम गांव निवासी श्रीरंगदेशिक स्वामीजी का जन्म विक्रम संवत 1866 को कार्तिक कृष्ण सप्तमी को हुआ था। युवा अवस्था में ही वे उत्तर भारत की यात्रा करते हुए गोवर्धन पहुंचे। वहां वैष्णव संप्रदाय के गोवर्धन पीठाध्यक्ष स्वामी श्रीनिवासाचार्य के अनुगत हो वैदिक सनातन धर्म के प्रचार में जुटे। इसी दौरान उनकी मुलाकात मथुरा के सेठ लक्ष्मीचद, राधाकृष्ण और गोविंद दास से हुई। लक्ष्मीचंद को छोड़कर दोनों भाई राधाकृष्ण और गोविंद दास वैष्णवाचार्य श्रीशठकोप स्वामी की प्रेरणा से वैष्णव संप्रदाय के आचार्य रंगदेशिक स्वामी के तपोमय जीवन से प्रभावित हुए और उनके शिष्य बने। स्वामीजी ने दोनों को दीक्षित कर दक्षिण यात्रा करवाई। उसी समय श्रीगोदादेवी को रंगमन्नार के साथ ब्रज में प्रतिष्ठित करने की अपनी इच्छा भी जता दी। बस यहीं से श्रीरंगमंदिर के निर्माण का सूत्रपात हुआ, जिसकी पूर्ति के लिए सेठ लक्ष्मीचंद, राधाकृष्ण और गोविंदवदकृष्ण ने अपना तन, मन और धन स्वामीजी के चरणों में समर्पित कर दिया।
श्रीस्वामी रंगदेशिक ने सेठ भाईयों दिए गए विपुल धन से संवत् 1890 सन् 1833 में करीब 186 साल पहले मंदिर का निर्माण आरंभ करवाया। जिसमें तोताद्रि स्वामी की अगुवाई में श्रीगोदारंगमन्नार भगवान का मूल विग्रह व उत्सव मूर्ति तथा श्री गरुड़, श्रीसुदर्शन, श्रीविष्वकसेन, श्रीवेणुगोपाल आदि भगवान की बड़े समारोह के साथ प्रतिष्ठा की। तब से बराबर पांचरात्र आगम विधि से भगवान की सेवा होती आ रही है। जिसमें उष:काल, आगमनकाल, समाराधनकाल, इज्याकाल, शयनकाल की सेवा मुख्य है। वर्तमान में रंगजी मंदिर रामानुज संप्रदाय के उत्कर्ष में सहभागी होते हुए धर्म प्रचार में संलग्न है। वर्तमान पीठाधीश्वर स्वामी गोवर्धनरंगाचार्य महाराज पूर्ण निष्ठा से उत्सवों को समयानुसार संपन्न करवाने में तत्पर रहते हैं।