गोलियों से ध्वस्त की दुश्मनों की रणनीति, चटाई थी धूल
-ढाका के कूच विहार में कैंप लगाकर छुड़ाए थे दुश्मनों के छक्के -25 जुलाई 1971 को पहुंचे थे सीमा पर, कब्रिस्तान में गुजारी रातें
आगरा, जागरण संवाददाता। हाथ में रोटी, मुंह में निवाला था, लेकिन उन्हें भूखे पेट की नहीं, देश की चिंता थी। बम धमाकों की गड़गड़ाहट से कैंप के कप्तान ने आवाज दी, दुश्मन है हथियार संभालो। रोटी छोड़ कर हथियार उठाया और दुश्मन की रणनीति को ध्वस्त कर दिया। चार कदम बढ़ने वाले दुश्मन को आठ कदम पीछे धकेल दिया।
खेरागढ़ के रघुपुरा के जवान सत्यदेव शर्मा वर्ष 1965 में सेना में भर्ती हुए थे। दैनिक जागरण को उन्होंने बताया कि वर्ष 1971 में उनकी सिलीगुड़ी में तैनाती थी। अचानक सूचना मिली और पूरी बटालियन ढाका बॉर्डर पर पहुंच गई। यहां कब्रिस्तान में रातें बितानी पड़ीं। यहां कूच विहार में कैंप लगा लिया। शाम के अंधेरे में दुश्मन आगे बढ़ रहा था। उसके मंसूबों को पस्त करने के लिए रात को जंगलों में निकल गए। बांस के पौधों को झुका कर निकलते, तो वह छोड़ने पर आवाज करते थे। दुश्मन आवाज पर ही गोली चला देता था। इसलिए बहुत सावधानी से निकलना पड़ता था। बटालियन में दर्जनों जवान शहीद हुए थे।
दुश्मनों के चंगुल से छुड़ाईं बेटियां
सूबेदार के पद से सेवानिवृत्त शर्मा ने बताया कि बांग्लादेश व कश्मीर के कुछ हिस्सों पर दुश्मनों का कब्जा हो गया था। 13 दिसंबर को दुश्मनों ने स्कूल, कॉलेज से आती लड़कियों को कैद कर लिया था। उन्हीं से वे मैग्जीन भरवाकर भारतीय सैनिकों पर गोलियां दागते थे। एक स्थान से दूसरे स्थान पर हथियार पहुंचाने के लिए भी लड़कियों का इस्तेमाल करते थे। रात को निकलने वाली दो लड़कियों ने उन्हें आपबीती बताई। तब सेना ने लड़कियों का रिहा कराया।
आम जनता ने दिया साथ
बाह निवासी कर्नल केके मिश्रा ंवर्ष 1967 में सेना में भर्ती हुए थे। वर्ष 1971 में पंजाब में तैनाती थी। गुम हुए सेना के जहाज को खोज रहे थे। अचानक पता चला कि पाकिस्तान से सटी राजस्थान की सीमा पर जाना है। रास्ते में गाड़ियों में पेट्रोल किसी पंप से भरवा लेते थे। युद्ध के दौरान आम जनता का काफी सहयोग मिला।