Navratra 2020: आराधना के नाै दिनों में बढ़ जाती है तन और मन की ऊर्जा, जानिए क्या है कारण
Navratra 2020 देवी साधना के दिनों में पूरा दिन उपवास और कई घंटे की पूजा अर्चना के बावजूद भी उपासक के चेहरे पर एक ओज प्रभावी होता है। यह ओज उत्पन्न होता है मेरुप्रभा से। प्राणियों की शारीरिक और मानसिक स्थिति को भी ये प्रभावित करती हैं।
आगरा, जागरण संवाददाता। 17 अक्टूबर से आरंभ हो रहे आराधना के नौ दिन लेकर आएंगे जीवन में सकारात्मक प्रभा। कहा जाता है कि नवरात्र विशेष दिनों में विशेष ऊर्जा वातावरण में होती है इसके पीछे तर्क होता है प्रतिदिन लाखों हवन होना और उनमेंं सामग्री से आहुति करना लेकिन सही मायने में यह ऊर्जा वातावरण नहीं अपितु हमारे शरीर के अंदर होती है। धर्म वैज्ञानिक पंडित वैभव जोशी के अनुसार देवी साधना के दिनों में पूरा दिन उपवास और कई घंटे की पूजा अर्चना के बावजूद भी उपासक के चेहरे पर एक ओज प्रभावी होता है। यह ओज उत्पन्न होता है मेरुप्रभा से।
पंडित वैभव के अनुसार अन्तर्ग्रहीय ऊर्जा की दृष्टि से उत्तरी ध्रुव बहुत ही महत्वपूर्ण है और है रहस्यमय भी। यहां ऊर्जाओं के छनने की क्रिया टकराव या संघर्ष के रूप में देखी जा सकती है। टकराव या संघर्ष के फलस्वरूप एक विलक्षण प्रकार की ऊर्जा का कंम्पन उत्पन्न होता है जिससे प्रकाश उत्पन्न होता और उसे प्रत्यक्ष भी देखा जा सकता है। उसी प्रकाश की चमक को मेरुप्रभा कहा जाता है।
रीढ़ में छुपी होती है मेरुप्रभा
पंडित वैभव जोशी बताते हैं कि मेरुप्रभा का प्रत्यक्ष रूप जितना विलक्षण और अद्भुत है उससे कहीं अधिक विलक्षण और अद्भुत है उसका अदृश्य रूप। इस मेरुप्रभा का प्रभाव समस्त भूतल पर पड़ता है। इससे संपूर्ण पृथ्वी प्रभावित होती है। भूगर्भ में, समुद्र तल में, वायुमंडल में, ईथर के महासागर में विभिन्न प्रकार और विभिन्न स्तर की हलचलें होने लगती हैं। इतना ही नहीं उसकी हलचलें सजीव, निर्जीव वस्तुएं और प्राणधारियों पर भी पड़ती हैं। प्राणियों की शारीरिक और मानसिक स्थिति को भी ये प्रभावित करती हैं। मनुष्यों पर तो इस मेरुप्रभा का प्रभाव विशेष् रूप से पड़ता है।
मेरुप्रभा के कारण ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाती जिसके फलस्वरूप पृथ्वी का चुम्बकत्व है। चूंकि पृथ्वी के निर्माण में पृथ्वी तत्व के अतिरिक्त जल, अग्नि, वायु और आकाश, इन सभी तत्वों का संयोजन रहता है। इसी प्रकार मनुष्य के स्थूल शरीर की रचना में भी इन्ही पांचों तत्वों का सहयोग रहता है। इसीलिये पृथ्वी की तरह मनुष्य के भीतर भी चुम्बकत्व है और है अपनी विद्युत् चुम्बकीय ऊर्जा भी। मनुष्य के शरीर के भीतर रीढ़ की हड्डी में एक रहस्यमयी नाड़ी है जिसे सुषुम्ना नाड़ी के नाम से जाना जाता है, यहां परम शून्यता रहती है, इसलिए इसे शून्य नाड़ी भी कहते हैं। यहां स्थित परम शून्य उस तत्व का ही रूप है जो अनादि काल से मनुष्य के शरीर में सुप्तावस्था में रहता आया है।
नवरात्र में बढ़ जाती है तीव्रता
नवरात्र के दिनों में मनुष्य को अनायास ही एक ऐसा अनुकूल अलौकिक अवसर हाथ लग जाता है जब उसकी सुप्त चेतना होने लगती है। पंडित वैभव बताते हैं कि इस समय मनुष्य के भीतर चुम्बकीय शक्ति की वृद्धि हो जाती है। शोध से पता चला है कि सूर्य में तेज चमक दीखती है तो उसके एक दो दिन बाद ही ये मेरुप्रभा तीव्र हो उठती है। यह बढ़ी हुई सक्रियता सूर्य के विकरण तथा कणों की बौछार का ही प्रतीक है। शान्त अवस्था में भी यह सम्बन्ध बना रहता है। ये कण अति सूक्ष्म इलेक्ट्रॉन और प्रोटॉन होते हैं जो लगभग 1000 मील प्रति घण्टे की गति से दौड़ते हुए पृथ्वी तक आते हैं जबकि प्रकाश पृथ्वी तक पहुंचने में कुल आठ मिनट लेता है। प्रकाश की गति 186000 मील प्रति सेकेण्ड है। पृथ्वी सूर्य की विद्युतीय शक्ति से संबद्ध है। चुम्बकत्व पार्थिव कणों में विद्युत् प्रवाह के कारण होता है। पृथ्वी की चुम्बकीय क्षमता सूर्य के ही कारण है और सूर्य को शक्ति प्राप्त होती है अन्तर्ग्रहीय विद्युत् ऊर्जा तरंगों से जिनका मूल स्रोत है वही अनादि शक्ति, वही आद्या शक्ति मां भगवती है।