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Bhadli Navami 2022: 8 जुलाई को है आखिरी विवाह मुहूर्त, बन रहा है इस दिन विशिष्ट महायोग भी, पढ़ें पूजन विधि और महत्व

Bhadli Navami 2022 आषाढ़ शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि का आरंभ 7 जुलाई गुरुवार को शाम 728 बजे होगा। जोकि 8 जुलाई शुक्रवार को शाम शाम 06 बजकर 25 मिनट तक रहेगी। शिव सिद्ध और रवि योग का निर्माण हो रहा है। सभी योग बेहद शुभ माने गए हैं।

By Tanu GuptaEdited By: Published: Tue, 05 Jul 2022 03:52 PM (IST)Updated: Tue, 05 Jul 2022 03:52 PM (IST)
Bhadli Navami 2022: अक्षय तृतीया की तरह की भड़ली नवमी पर अबूझ सहालग होता है।

आगरा, जागरण संवाददाता। सनातन पंचांग के अनुसार भड़ली नवमी का दिन बहुत ही महत्वपूर्ण होता है क्योंकि अक्षय तृतीया की तरह भड़ली नवमी भी शादी विवाह, मुंडन और अन्य मांगलिक कार्य, शुभ कार्य या नये काम करने के लिए अबूझ मुहूर्त होता है। इस दिन जिनके शादी- विवाह का मुहूर्त न बन रहा हो वे भड़ली नवमी के दिन बिना किसी सोच विचार के शादी कर सकते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन कोइ भी नया या मांगलिक कार्य किया जा सकता है। ज्योतिषाचार्य डॉ शोनू मेहरोत्रा के अनुसार हर साल आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को भड़ली नवमी होती है।

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आषाढ़ शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि का आरंभ 7 जुलाई गुरुवार को शाम 7:28 बजे होगा। वहीं ये तिथि 8 जुलाई शुक्रवार को शाम शाम 06 बजकर 25 मिनट तक रहेगी। उदया तिथि के आधार पर भड़ली नवमी जुलाई शुक्रवार को होगी। इस दिन शिव, सिद्ध और रवि योग का निर्माण हो रहा है। ये सभी योग बेहद शुभ माने गए हैं। शास्त्रों के अनुसार इस योग में किया गया कोइ भी शुभ कार्य लाभकारी फल देता है। इन योगों में घर, गाड़ी या अन्य नयी चीजें खरीदना शुभ माना गया है। इस दिन सभी शुभ कार्यों के लिए शाम साढ़े छह बजे तक ही शुभ मुहूर्त रहेगा। इसके बाद चार माह तक कोयी भी शुभ कार्य नहीं किया जा सकेगा।

अबूझ सहालग में होंगी शादियां ही शादियां

भड़ली नवमी के दिन ही गुप्त नवरात्रि का समापन भी हो होता है। मान्यताओं के अनुसार देवशयनी एकादशी 10 जुलाई से भगवान विष्णु चातुर्मास के लिए गहरी योग निंद्रा में चले जाते हैं। इसके बाद भगवान विष्णु सीधा देवउठनी एकादशी पर चातुर्मास समाप्ति के साथ योग निंद्रा से जाग्रत होते हैं। उसके पश्चात शुभ एवं मांगलिक कार्य फिर से आरंभ हो जाते हैं। वैवाहिक जीवन का आरंभ बिना भगवान लक्ष्मी नारायण के आशीर्वाद से संपन्न नहीं होता है। इसी कारण भगवान श्री लक्ष्मीनारायण के योग निंद्रा में होने से कोइ शुभ कार्य नहीं किया जाता है।

पूजन विधि

शास्त्रों के अनुसार भड़ली नवमी के दिन भगवान लक्ष्मी नारायण की पूजा और और कथा की जाती है। भड़ली नवमी पर साधक को स्नान करके पूरे विधि विधान से धुले कपड़े पहनकर मौन रहकर पूजा- अर्चना करनी चाहिए। अर्चना के दौरान भगवान को फूल, धूप, दीप और नैवेद्य चढ़ाना चाहिए।

पूजा में बिल्व पत्र, हल्दी, कुमकुम या केसर से रंगे हुए चावल, पिस्ता, बादाम, काजू, लौंग, इलायची, गुलाब या मोगरे का फूल, किशमिश, सिक्का आदि का प्रयोग करना चाहिए। अर्चना के बाद पूजा में प्रयोग हुयी सामग्री को किसी ब्राह्मण या मंदिर में दान कर देना चाहिए। एेसा करने से भगान लक्ष्मी नारायण प्रसन्न होते हैं और भक्त की कामना पूरी करते हैं।  


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