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बाबर के बनवाए रामबाग को संवारेगा एएसआइ, जानिए यहां के रोचक इतिहास के बारे में

पाथवे को सुधारने के साथ ड्रेन को किया जाएगा कवर्ड। यमुना किनारे है बाग अंग्रेजों ने बनाया था गेस्ट हाउस। बाबर ने वर्ष 1526 में ईरानी बहुतलीय और चारबाग पद्धति पर यमुना के तट पर बाग-ए-गुल-अफ्शां बनवाया था।

By Tanu GuptaEdited By: Published: Tue, 11 May 2021 03:53 PM (IST)Updated: Tue, 11 May 2021 03:53 PM (IST)
आगरा के यमुना किनारे पर बना रामबाग, जिसका निर्माण कराया था बाबर ने।

आगरा, जागरण संवाददाता। बाबर द्वारा आगरा में बनवाए गए रामबाग में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) द्वारा संरक्षण कार्य कराया जाएगा। यहां दक्षिणी दीवार के सहारे बने पाथवे को संवारने के साथ उस पर रेड सैंड स्टोन लगाए जाएंगे। बाग में बनी ड्रेन को भी कवर्ड किया जाएगा।

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अागरा आने के बाद मुगलों ने अपने निवास के लिए यमुना पार के क्षेत्र को चुना था। रामबाग मुगलों द्वारा भारत में बनवाए गए प्रारंभिक बागों में से एक है। यहां पाथवे की स्थिति खराब होने से पर्यटकों को परेशानी होती है। एएसआइ ने बाग की दक्षिणी दीवार के पास बने पाथवे को सही कराने को टेंडर किया है। बाग में बनी हुई ड्रेन खुली हुई है, इसे कवर्ड करने का काम किया जाएगा। अधीक्षण पुरातत्वविद डा. वसंत कुमार स्वर्णकार ने बताया कि रामबाग में पाथवे व ड्रेन का काम किया जाना है।

एएसआइ ने लगा रखा है कल्चरल नोटिस बोर्ड

एएसआइ द्वारा रामबाग में लगाए गए कल्चरल नोटिस बोर्ड के अनुसार बाबर ने यमुना के किनारे पर आरामबाग बनवाया था। वर्ष 1526 में उसने ईरानी बहुतलीय और चारबाग पद्धति पर बाग बनवाया था, ऐसे बाग उसने समरकंद में देखे थे। आगरा की गर्मी से बचने को उसने बाग में तलघर बनवाया था। मुगल शहंशाह जहांगीर ने वर्ष 1615-19 के दौरान बाग का पुनर्निर्माण कराया था। उसने इसका नाम बाग-ए-नूर अफ्शां रखा था। अंग्रेजों को भी यह बाग बहुत पसंद आया था और उन्होंने इसे गेस्ट हाउस के रूप में उपयोग किया था। वर्तमान में यह बाग रामबाग के नाम से संरक्षित है। 

ये है इतिहास

बाबर ने वर्ष 1526 में ईरानी बहुतलीय और चारबाग पद्धति पर यमुना के तट पर बाग-ए-गुल-अफ्शां बनवाया था। ऐसे बाग उसने समरकंद में देखे थे। आगरा की गर्मी से निजात पाने को उसने बाग में तीन तलों के साथ ही वाटर चैनल आदि बनवाए थे। उसके प्रपौत्र जहांगीर ने वर्ष 1615 से 1619 के मध्य बाग का पुननिर्माण कराया था। ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन वर्ष 1803-1857 के दौरान अंग्रेजों ने इसकी मरम्मत कराकर आरामगाह में तब्दील कर दिया था। बाद में यह रामबाग के नाम से विख्यात हो गया।

भारत में मुगलों द्वारा लगवाए गए बागों में यह बाग सबसे पहले लगा था। यहीं से बाग की बहुतलीय और चारबाग पद्धति की शुरुआत हुई। जल प्रणालियां, नहरें, प्रपात और तालाब यहीं से बाग से संबद्ध हुए, जिससे यह केवल वाटिका तक सीमित नहीं रहा। बाबर द्वारा की गई इस शुरुआत का उसके वंशजों ने दो सदियों से अधिक तक अनुपालन किया।


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