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Akshay Tritiya 2021: 14 को है अक्षय तृतीया का पर्व, यहां पढ़ें इस दिन की 11 अक्षय मान्यताएं

Akshay Tritiya 2021 अक्षय तृतीया के दिन ही महर्षि वेदव्यास ने महाभारत लिखना आरंभ की थी। त्रेता युग के शुरू होने पर धरती की सबसे पावन माने जानी वाली गंगा नदी इसी दिन स्वर्ग से धरती पर आई।

By Tanu GuptaEdited By: Published: Mon, 10 May 2021 04:13 PM (IST)Updated: Mon, 10 May 2021 04:13 PM (IST)
Akshay Tritiya 2021: 14 को है अक्षय तृतीया का पर्व, यहां पढ़ें इस दिन की 11 अक्षय मान्यताएं
14 मई को इस वर्ष अक्षय तृतीया का पर्व मनाया जाएगा।

आगरा, जागरण संवाददाता। 14 मई को इस वर्ष अक्षय तृतीया का पर्व मनाया जाएगा। वर्ष में आने वाले प्रमुख शुभ मुहूर्त में से अक्षय तृतीया का मुहूर्त विशेष माना जाता है। धर्म वैज्ञानिक पंडित वैभव जय जोशी के अनुसार सत्तू आदि के दान के अलावा इस दिन से जुड़ी 11 विशेष मान्यताएं हैं जो इस दिन का महत्व बढ़ाती हैं। 

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ये हैं 11 विशेष मानयताएं

- धार्मिक मान्यता के अनुसार विष्णुजी त्रेता एवं द्वापरयुग तक पृथ्वी पर चिरंजीवी (अमर) रहे। परशुराम सप्तऋषि में से एक ऋषि जमदगनी तथा रेणुका के पुत्र थे। यह ब्राह्मण कुल में जन्मे। इसीलिए अक्षय तृतीय तथा परशुराम जयंती को सभी हिन्दू बड़े धूमधाम से मनाते हैं।

- त्रेता युग के शुरू होने पर धरती की सबसे पावन माने जानी वाली गंगा नदी इसी दिन स्वर्ग से धरती पर आई। गंगा नदी को भागीरथ धरती पर लाये थे। इस पवित्र नदी के धरती पर आने से इस दिन की पवित्रता और बढ़ जाती है और इसीलिए यह दिन हिंदुओं के पावन पर्व में शामिल है। इस दिन पवित्र गंगा नदी में डुबकी लगाने से मनुष्य के पाप नष्ट हो जाते हैं।

- यह दिन रसोई एवं पाक (भोजन) की देवी मां अन्नपूर्णा का जन्मदिन भी माना जाता है। अक्षय तृतीया के दिन मां अन्नपूर्णा का भी पूजन किया जाता है और मां से भंडारे भरपूर रखने का वरदान मांगा जाता है। अन्नपूर्णा के पूजन से रसोई तथा भोजन में स्वाद बढ़ जाता है।

- दक्षिण प्रांत में इस दिन की अलग ही मान्यता है। उनके अनुसार इस दिन कुबेर (भगवान के दरबार का खजांची) ने शिवपुरम नामक जगह पर शिव की आराधना कर उन्हें प्रसन्न किया था। कुबेर की तपस्या से प्रसन्न हो कर शिवजी ने कुबेर से वर मांगने को कहा। कुबेर ने अपना धन एवं संपत्ति लक्ष्मीजी से पुनः प्राप्त करने का वरदान मांगा। तभी शंकरजी ने कुबेर को लक्ष्मीजी का पूजन करने की सलाह दी। इसीलिए तब से ले कर आजतक अक्षय तृतीया पर लक्ष्मीजी का पूजन किया जाता है। लक्ष्मी विष्णुपत्नी हैं, इसीलिए लक्ष्मीजी के पूजन के पहले भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। दक्षिण में इस दिन लक्ष्मी यंत्रम की पूजा की जाती है, जिसमें विष्णु, लक्ष्मीजी के साथ – साथ कुबेर का भी चित्र रहता है।

- अक्षय तृतीया के दिन ही महर्षि वेदव्यास ने महाभारत लिखना आरंभ की थी।

- इसी दिन महाभारत के युधिष्ठिर को अक्षय पात्र की प्राप्ति हुई थी। इस अक्षय पात्र की विशेषता थी, कि इसमें से कभी भोजन समाप्त नहीं होता था। इस पात्र के द्वारा युधिष्ठिर अपने राज्य के निर्धन एवं भूखे लोगों को भोजन दे कर उनकी सहायता करते थे। इसी मान्यता के आधार पर इस दिन किए जाने वाले दान का पुण्य भी अक्षय माना जाता है, अर्थात इस दिन मिलने वाला पुण्य कभी खत्म नहीं होता। यह मनुष्य के भाग्य को सालों साल बढाता है।

- महाभारत में अक्षय तृतीया की एक और कथा प्रचलित है। इसी दिन दुशासन ने द्रौपदी का चीरहरण किया था। द्रौपदी को इस चीरहरण से बचाने के लिए श्री कृष्ण ने कभी न खत्म होने वाली साड़ी का दान किया था।

- अक्षय तृतीया के पीछे हिंदुओं की एक और रोचक मान्यता है। जब श्री कृष्ण ने धरती पर जन्म लिया, तब अक्षय तृतीया के दिन उनके निर्धन मित्र सुदामा, कृष्ण से मिलने पहुंचे। सुदामा के पास कृष्ण को देने के लिए सिर्फ चार चावल के दाने थे, वही सुदामा ने कृष्ण के चरणों में अर्पित कर दिये। परंतु अपने मित्र एवं सबके हृदय की जानने वाले अंतर्यामी भगवान सब कुछ समझ गए और उन्होंने सुदामा की निर्धनता को दूर करते हुए उसकी झोपड़ी को महल में परिवर्तित कर दिया और उसे सब सुविधाओं से सम्पन्न बना दिया। तब से अक्षय तृतीया पर किए गए दान का महत्व बढ़ गया।

- भारत के उड़ीसा में अक्षय तृतीया का दिन किसानों के लिए शुभ माना जाता है। इस दिन से ही यहां के किसान अपने खेत को जोतना शुरू करते हैं। इस दिन उड़ीसा के जगन्नाथपूरी से रथयात्रा भी निकाली जाती है।

- अलग अलग प्रांत में इस दिन का अपना अलग ही महत्व है। बंगाल में इस दिन गणेशजी तथा लक्ष्मीजी का पूजन कर सभी व्यापारी द्वारा अपनी लेखा जोखा (ऑडिट बुक) की किताब शुरू करने की प्रथा है। इसे यहां च्च्हलखताज्ज् कहते हैं।

- पंजाब में भी इस दिन का बहूत महत्व है। इस दिन को नए मौसम के आगाज का सूचक माना जाता है। इस अक्षय तृतीया के दिन जाट परिवार का पुरुष सदस्य ब्रह्म मुहूर्त में अपने खेत की ओर जाते हैं। उस रास्ते में जितने अधिक जानवर एवं पक्षी मिलते हैं, उतना ही फसल तथा बरसात के लिए शुभ शगुन माना जाता है।  


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