नए रचनाकारों को सोशल मीडिया सिखा रहा सलीका, दे रहा आगे बढ़ने के अवसर
- नवोदित रचनाकारों को मिला वाट्सएप ग्रुप का नया प्लेटफार्म - ग्रुप पर ही रचना की वरिष्ठ समीक्षा कर रहे सुधार
आगरा: समय के साथ कविता भी हाईटेक होती गई। अब न प्रूफरीडिंग का झंझट और न समीक्षा को वरिष्ठ कवि के पास दौड़ने की जरूरत। सोशल मीडिया ये परेशानी दूर कर रहा है। साहित्यकारों और कवियों की नई रचनाएं सोशल मीडिया पर शेयर हो रही हैं और वरिष्ठ उस पर अपनी समीक्षा भी दे रहे हैं। इससे नवोदित सलीका तो सीख ही रहे हैं, उनकी प्रतिभा भी मंझ रही है।
ताजनगरी में बड़ी संख्या में साहित्यकार और कवि हैं। उनकी संस्थाएं हर माह नवोदित रचनाकारों से लेकर वरिष्ठों के बीच गोष्ठियां कराती हैं। रचनाओं की समीक्षा होती है। अब इंटरनेट के दौर में सोशल मीडिया ने ये काम आसान कर दिया है। कई संस्थाओं के साथ ही कुछ साहित्यकारों ने सोशल मीडिया पर समूह बना लिए हैं। खासकर वाट्सएप पर साहित्यकार और कवि सक्रिय हैं। वाट्सएप पर शेयर रचनाओं में जो भी कमियां हैं, वरिष्ठ उसकी समीक्षा कर तत्काल अपनी प्रतिक्रिया देते हैं और नवोदित उसमें संशोधन करते हैं। ये चल रहे प्रमुख वाट्सएप ग्रुप
ताज लिटरेचर क्लब, संस्थान संगम, आगरा राइटर्स क्लब, महानगर लेखिका मंच, साहित्य साधिका समिति, आराधना लेखिका मंच, अभिव्यक्ति। क्या कहते हैं वरिष्ठ साहित्यकार
ये अच्छी पहल है। इसके लिए जरूरी है कि लोग ग्रुप में मौलिक रचना ही लिखें। कई बार रचना कॉपी-पेस्ट कर दी जाती है। ये सरासर गलत है। वरिष्ठ मौलिक रचना पर टिप्पणी करेंगे तो नवोदित उसमें संशोधित कर सकते हैं।
डॉ. मधु भारद्वाज, वरिष्ठ साहित्यकार इससे निश्चित रूप से नवोदित रचनाकारों को प्रोत्साहन मिलेगा बल्कि उनमें सुधार भी होगा। नवोदित की रचनाओं में नियमों की अवहेलना होती है, उसमें भी सुधार होगा।
सर्वज्ञ शेखर गुप्ता, वरिष्ठ साहित्यकार
रचनाएं मैं और तुम आज फिर हथेली
सिक गयी तवे पर,
मन लगा था
तेरी हथेलियों के बीच।
जैसे चेहरा मेरा
गुलाब की मानिंद,
पलकों पर थे मोती
यूं सजे जैसे
ओस हो पंखुड़ी पर।
हथेली पर ये रक्तिम
सा धब्बा उभर आया,
जैसे रक्ताभ हो उठे
मेरे कपोल तेरे स्पर्श से।
दर्द धुएं की तरह
उड़ता जा रहा है।
हृदय के आलिंद से
जैसे तेरा प्रेम शनै-शनै
पूरे शरीर में फैलता
जा रहा है।
और झांक रहा है शिराओं
और धमनियों से।
त्वचा पर जैसे नयन उग
आए हैं,
देखना चाहते है तुम्हें
जी भर के।
ये दूरी, ये काल
सब विलीन हो जाएं,
और मैं तुम में
आत्मसात हो जाऊं। ललिता कर्मचंदानी
कविता क्या है ? कल्पनाओं के लोक में, यादों का कोई चलचित्र है,
या फिर आंखों में तिर आया बचपन का कोई मित्र है,
आखिर है तो क्या है, कोई बता दे, यह कविता क्या है?
बोझिल मन की, कागज पर उतरी कोई कहानी है,
या फिर गुजरे पल की यादों में,आंख से बहता पानी है,
आखिर है तो क्या है.
आसपास जो घटता है, क्या वो ही शब्द-शब्द जुड़ता है,
या फिर जो मन में घुटता है वो बनकर शब्द उमड़ता है।
आखिर है तो क्या है..
अतीत को परे धकेल जो वर्तमान में जीवन जीता है,
या फिर अपने सपनों को जो सारी उम्र सपनों में जीता है
आखिर है तो क्या है.. अलका अग्रवाल
हंसी
हंसी
कभी-कभी बोझ क्यों लगती है।
महज ऊपर से
ओढ़ी हुई,
एक खोखली औपचारिकता
या दूसरों का साथ देने की
एक नाकाम कोशिश,
जिसका मन से कोई कोई संबंध न हो
चाबी के खिलौने जैसी संवेदना रहित,
यात्रिक ,
होठ बेशक मुस्कुराते हों,
आंखें उनका साथ देने में असमर्थ हों,
दर्द की एक गहरी लकीर
मन के कैनवास पर उतरी हो,
जिस पर हंसी के फूल उकेरना अब संभव न हो। भावना वरदान शर्मा