सोशल मीडिया का बढ़ता प्रयोग, संस्कारों में कमी
आगरा: बड़ों का आदर करना हमारे संस्कारों में शामिल होना चाहिए। इसकी शुरुआत अपने घर से ही होती है लेकिन वर्तमान में सोशल मीडिया के बढ़ते इस्तेमाल के कारण संस्कारों में कमी आई है।
आगरा: बड़ों का आदर करना हमारे संस्कारों में शामिल होना चाहिए। इसकी शुरुआत अपने घर से ही होती है, लेकिन अब सोशल मीडिया के दौर में बच्चों के संस्कारों में कमी आई है। बढ़ती टेक्नोलॉजी गलत संगत की ओर धकेल रही है।
बल्केश्वर स्थित डॉलीज पब्लिक इंटर कालेज में शनिवार को दैनिक जागरण की संस्कारशाला में 'शिक्षक का महत्व' विषय पर कार्यक्रम आयोजित हुआ। इसमें छात्र-छात्राओें ने संस्कारवान बनने का संकल्प लिया। कालेज की प्रधानाचार्य सुनयना नाथ ने कहा कि छात्र-छात्राओं की सफलता में गुरु की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। संस्कारवान छात्र-छात्राएं गुरु के मार्गदर्शन में ही घर, शहर और देश का नाम रोशन करते हैं। ये बने विजेता
जागरण संस्कारशाला में सुनाई गई कहानी के बाद छात्र-छात्राओं से पांच प्रश्न पूछे गए, इनके जबाव देकर नितिन परिहार, खुशबू दिवाकर, प्रथम सिंह, धुरु सिंघल विजेता बने। संस्कार सीखने के लिए दो घर होते हैं। पहला आपका घर और दूसरा स्कूल। घर में माता-पिता और स्कूल में गुरुजन ही संस्कारवान बनाते हैं।
हर्ष शर्मा कामयाबी के लिए संस्कारों का होना बेहद जरूरी है। जिनमें संस्कार नहीं होते उन्हें किसी भी मार्ग पर कामयाबी नहीं मिलती है।
शिवम संस्कारों की शिक्षा घर से ही दी जाती है। यदि छात्रों से गलती हो जाए, तो शिक्षक या बड़ों के क्षमा मांग लेनी चाहिए। वह भी हमारे संस्कार का ही हिस्सा है।
सनि यादव गुरु की सेवा हमारे संस्कार बताता है। माता-पिता भी हमारे गुरु ही हैं। अपने से छोटे भाई-बहन को प्यार करना भी संस्कार है।
लता पढ़ने से संस्कारवान नहीं होते। बहुत से बच्चे पढ़ाई में तो अव्वल होते हैं, लेकिन संस्कारहीन होते हैं। ऐसे में कामयाबी हासिल करना मुश्किल हो जाता है।
आस्था गरीब और दिव्यांग की हमेशा मदद करनी चाहिए। हम ऐसे काम तभी कर सकते हैं, जब हमारे घरवाले शुरुआत से ही हमें संस्कार दें।
हीनान