बिना मिट्टी के पानी में उगा रहे जैविक सब्जियां
आगरा संदीप शर्मा। बिना मिट्टी के भी खेती संभव है। यह सुनकर आपको थोड़ी हैरानी जरूर हो र
आगरा, संदीप शर्मा। बिना मिट्टी के भी खेती संभव है। यह सुनकर आपको थोड़ी हैरानी जरूर हो रही होगी। इसे नामनेर निवासी व नोएडा में आइटी (इंफोरमेंशन टेक्नोलाजी) कंपनी विप्रो में मैनेजर अरुण अग्रवाल ने सच कर दिखाया है।
लाकडाउन में कुछ लोगों ने आपदा को अवसर मानते हुए कुछ नए प्रयोग किए। उन्हीं में से एक अरुण अग्रवाल ने खाली समय में इंटरनेट से हाइड्रोपोनिक तकनीक से खेती करना सीखा। प्रयोग के तौर पर घर पर ही उन्होंने बेहद कम खर्च व जगह में बिना मिट्टी के इस जैविक खेती की शुरूआत की। उन्होंने अपने सिस्टम में 30 अलग-अलग तरह के पौधे लगाए हैं। इसके सुखद परिणाम मिल रहे हैं। लंबी तलाश के बाद मिली सफलता
अरुण बताते हैं कि लाकडाउन लगाने के साथ ही कंपनी ने वर्क फ्राम होम की शुरूआत कर दी थी, लिहाजा काम के बाद भी काफी समय बचता था। आइटी फील्ड से जुड़े होने के कारण ज्यादातर समय लैपटाप और इंटरनेट पर ही बीतता था। लिहाजा कुछ वीडियो देखने के बाद सब्जियों की खेती करने की सोची, लेकिन जगह और सीमित संसाधनों की समस्या थी। उन्होंने खोज जारी रखी, जो हाइड्रोपोनिक तकनीक पर आकर खत्म हुई।
इजरायल की है हाइड्रोपोनिक तकनीक
हाइड्रोपोनिक या जल संवर्धन, इजरायल की तकनीक है। कृषि क्षेत्र की कमी के चलते वहां इस तकनीक का प्रयोग किया जाता है। इस तकनीक में सब्जियां व फल सिर्फ पानी और पोषक तत्वों से उगाई जाती है। इस कारण इसे जलीय कृषि भी कहते हैं। पौधे उगाने की यह तकनीक पर्यावरण के लिहाज से भी काफी फायदेमंद है, क्योंकि इसमें पानी की भी बचत होती है।
10 हजार रुपये का आया खर्च
अरुण ने अपने घर के दो बाई तीन फुट के क्षेत्र में इस हाइड्रोपोनिक सिस्टम का प्रयोग किया, जिसमें उनका कुल खर्च करीब 10 हजार रुपये आया। इसमें उन्होंने चार इंच के पीवीसी पाइप, एक वाटर पंप का इस्तेमाल किया है। साथ ही पौधे तक ऑक्सीजन पहुंचाने के लिए एक ऑक्सीजन पंप लगाया है। इस तकनीक में पानी में कुछ घुलनशील पोषक तत्व भी मिलाए जाते हैं, जो पौधों के विकास में सहायता प्रदान करते हैं। साथ ही पानी में टीडीएस और पीएच लेवल का भी ध्यान रखना पड़ता है, जिसके लिए पीएच और टीडीएस मीटर का भी इस्तेमाल किया जाता है। व्यावसायिक इस्तेमाल रहेगा कारगर
अरुण चाहते हैं कि इस तकनीक को किसानों तक पहुंचाने व बढ़ावा देने के लिए सरकार भी आवश्यक कदम उठाए, ताकि कम जगह में भी बड़े स्तर इसे अपनाया जा सके और किसानों को फायदा हो। साथ ही उनकी मंशा भविष्य में इस तकनीक को आगे बढ़ाने की है, लिहाजा इच्छुक लोग उनसे अरूण अग्रवाल एट दी रेट जीमेल आइडी पर संपर्क कर इसकी जानकारी कर सकते हैं। वह इस तकनीक को बढ़ावा देने के लिए एक ट्रेनिग संस्थान खोलने के भी इच्छुक हैं।