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नीरज के हर अल्फाज में छिपा था संदेश

आगरा: उर्दू शायरी में गालिब ने जिस तरह अल्फाजों का चयन किया, उसी तरह से नीरज की भी महारत थी। उन्होंने भी शब्दों के चयन पर विशेष ध्यान दिया।

By JagranEdited By: Published: Sun, 22 Jul 2018 08:42 PM (IST)Updated: Mon, 23 Jul 2018 04:38 AM (IST)
नीरज के हर अल्फाज में छिपा था संदेश
नीरज के हर अल्फाज में छिपा था संदेश

जागरण संवाददाता, आगरा: उर्दू शायरी में गालिब ने अल्फाजों के चयन के माध्यम से एक मिट्टी के बर्तन में दरिया को भरने का प्रयास किया था। उसी तरह पद्मभूषण गोपालदास नीरज की गजल, शेर व गीत में भी अल्फाजों का चयन बहुत खास था।

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यह कहना है बैकुंठी देवी कॉलेज में उर्दू की विभागाध्यक्ष डॉ. नसरीन बेगम का। वह कहती हैं कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में तालीम के दौरान ही उन्होंने उन्हें सुना था। उनकी रचनाओं में जो दर्द और अल्फाज हैं, उनमें भी कई संदेश हैं। उनके लिखे गीत 'अब तो मजहब कोई, ऐसा भी चलाया जाए, जिसमें इंसान को इंसान बनाया जाए..' से समझा जा सकता है। इसमें सादगी के साथ हर युग के लिए बड़ा पैगाम छिपा है। हर दौर में इस शेर की अहमियत कभी कम नहीं होगी। डॉ. नसरीन कहती हैं कि अलीगढ़ के माहौल और सोहबत की छाप गोपालदास नीरज की गजल व शेर में दिखती है। उन्होंने लिखा है 'जिसकी खुशबू से महक जाए पड़ोसी का भी घर, फूल इस किस्म का हर दिन खिलाया जाए..'। उन्होंने अपनी रचनाओं से समाज को ऐसा संदेश दिया है कि उन्हें कभी भुलाया नहीं जा सकता।

शहर में पिछले 36 वर्षो से मुशायरे का आयोजन करा रहे चित्रांशी संस्था के संस्थापक अध्यक्ष केसी श्रीवास्तव बताते हैं कि ¨हदी और उर्दू दोनों के रचनाकारों के लिए गोपालदास नीरज आदर्श रहे हैं। सन् 90 के आसपास संस्था द्वारा कराए गए मुशायरे में वह शामिल हुए थे। अपनी रचनाओं में वह ¨हदी के साथ उर्दू शब्दों का प्रयोग बखूबी किया करते थे।


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