हैरान करने वाला आंकड़ा, महज 22 फीसद शिशुओं को ही मिलता है स्तनपान
नेशनल फैमिली हैल्थ सर्वे में हुआ खुलासा। शिशुओं को पानी पिलाने पर भी रहता है जोर।
आगरा, जेएनएन। डॉक्टर और विशेषज्ञ कहते हैं हर जन्म के तुरंत बाद हर नवजात को स्तनपान कराना चाहिए। लेकिन एटा जिले में हालात उलट हैं। महज 22 फीसद शिशुओं को ही स्तनपान मिल पा रहा है। जो उनके स्वास्थ्य के लिहाज से सही नहीं है। वहीं, छोटे शिशुओं में दूध के अलावा पानी पिलाने का चलन भी बच्चों की सेहत को खतरे में डाल रहा है।
कहा जाता है कि मां का पहला दूध बच्चे के लिए अमृत से कम नहीं होता। यह शिशु का पहला टीकाकरण है जो उसे तमाम बीमारियों से बचाता है। यही वजह है कि चिकित्सक और विशेषज्ञ हमेशा कहते हैं कि जन्म होते ही जल्द से बच्चे को मां का दूध पिलाया जाए। लेकिन कुछ रूढि़वादी परंपराओं और गलत जानकारियों के कारण लोग ऐसा नहीं करते। एनएफएचएस (नेशनल फैमिली हैल्थ सर्वे) के आंकड़े बताते हैं कि जिले में महज 21.9 फीसद मामलों में जन्म के तुरंत बाद बच्चे को स्तनपान मिल पाता है। जो साफ इशारा है कि लोगों में जागरूकता की बेहद कमी है। इसके अलावा बच्चों को खासतौर से गर्मी के मौसम में पानी पिलाने का भी काफी चलन है। हालांकि विशेषज्ञों का साफ कहना है कि 6 महीने तक शिशुओं को सिर्फ मां का दूध ही देना चाहिए। इसमें विभिन्न पोषक तत्वों सहित 80 फीसद पानी होता है।
छह महीने तक क्यों न पिलाएं पानी
शिशु को पानी पिला देने पर उसका पेट भर जाता है और मां के पोषक दूध के लिए जगह नहीं बचती।
पानी साफ और सुरक्षित न होने पर शिशुओं में संक्रमण की वजह भी बन सकता है।
शिशु को पानी देने से उसमें पीलिया के लक्षण, धुंधला दिखाई देने, अंग फड़कने, हाथ-पैर सही से काम न करने, सांस की समस्या उत्पन्न हो सकती है।
रहता है कुपोषण का खतरा
जिला कार्यक्रम अधिकारी सत्यप्रकाश पांडेय ने बताया कि गर्मी में शिशु को पानी देने का काफी प्रचलन है। जिसके कारण रुग्णता व कुपोषण का खतरा रहता है। जागरूकता के उद्देश्य से अगस्त तक पानी नहीं सिर्फ मां का दूध अभियान चलाया जाएगा।
सत्यप्रकाश पांडेय, जिला कार्यक्रम अधिकारी
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