ये मछली है कुछ खास, बताती है यमुना में कितना है पानी
एत्माद्दौला स्मारक के पिछले हिस्से में बनी है पत्थर की मछली। पारना, इलाहाबाद सहित अन्य क्षेत्रों में यमुना में उफान को करती है स्पष्ट।
आगरा, अमित दीक्षित। मछली जल की रानी है, जीवन इसका पानी है। हाथ लगाओगे तो डर जाएगी, बाहर निकालोगे तो मर जाएगी। ये पंक्तियां मछली की पूरी कहानी बयां करती हैं, लेकिन यह मछली कुछ खास है। यमुना में कितना पानी है। यह तुरंत बता देती है। यमुना के उफान को भांपने से लेकर आसपास के गांवों का 'भविष्य' भी। मुगल काल में मछली का रुतबा था, लेकिन अब यह संरक्षण की आस लगाए बैठी है। मुगल काल में अगर इसके इशारे समझ लिया जाता था तो पानी से होने वाली बर्बादी से बचाव समय रहते किया जाता था।
एत्माद्दौला स्मारक के पिछले हिस्से में संगमरमर की एक मछली बनी हुई है। इसका मुंह खुला हुआ है। यूं तो देखने में यह सामान्य मछली लगती है, लेकिन मुगल काल में नाविक मछली को देखकर यमुना नदी में पानी का पता लगा लेते थे। फिर आगे का समय तय करते थे। बाढ़ के दौरान नदी में उफान आने पर पानी मछली के मुंह में चला जाता था। इतिहासकारों और जानकारों के मुताबिक मछली पारना रियासत के जैतपुर और इलाहाबाद में यमुना नदी के उफान की जानकारी देती थी। पानी में मछली के डूबने का संकेत था, पारना अगले आठ और इलाहाबाद 15 दिनों में पानी से तबाह हो जाएगा। मछली के मुंह तक या फिर इससे निचले हिस्से में पानी रहने पर आगरा, इटावा सहित आसपास के अन्य जिलों में भारी बाढ़ का संकेत मिलता था।
इतिहास के पन्नों में भी मछली का अंकित है नाम
मछली का जिक्र इतिहास में भी है। हालांकि इस मछली को कब और किसने बनवाया, इसकी दस्तावेजी सुबूत नहीं हैं, लेकिन यह माना जाता है कि जहांगीर के शासनकाल में बेहतरीन नौवहन व्यवस्था थी। यमुना में चलने वाले पानी के जहाज के कैप्टन मछली के मुंह का इंडिकेटर के रूप में प्रयोग करते थे। तब नदी में पानी की कमी नहीं होती थी। इससे नदी में आगे कितना पानी होगा, इसकी जानकारी मछली के जरिए ही मिल जाती थी। आगरा के पहले सर्वेयर एसी कार्ल लॉयल थे। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के वॉल्यूम तीन में इस मछली के सुनहरे इतिहास के बारे में बताया गया है। विक्टोरिया मेमोरियल म्यूजियम कोलकाता में यमुना नेवीगेशन चैनल से संबंधित नक्शे और चित्र रखे हैं। इनमें भी इस मछली का जिक्र है। राजा जय सिंह ने अपने शासनकाल में मछली के संरक्षण का कार्य कराया था।
बड़ी संख्या में थे घाट
यमुना में एक से बढ़कर एक घाट बने थे। इनके माध्यम से सामान उतारा जाता था। प्रमुख घाटों में लंगड़े की चौकी, कचहरी घाट, पोइया घाट गिने जाते थे। वर्ष 1850 के आसपास यमुना में बड़ी संख्या में पानी के जहाज चलते थे।
व्यापार की धड़कन थी यमुना
शुरू से ही यमुना व्यापार की धड़कन रही है। लेकिन वर्ष 1873 में क्रांतिकारी बदलाव उस वक्त आया, जब आगरा कैनाल को खोदने का काम शुरू हुआ। इसके बाद यमुना में पानी के जहाजों का संचालन कम हो गया। नदी में सबसे अधिक चप्पू के जहाज चलते थे।
संरक्षण पर नहीं दिया जा रहा ध्यान
मछली रानी का संरक्षण नहीं किया जा रहा है। अब यह बच्चों के लिए यमुना में छलांग लगाने का मात्र चिन्ह बनकर रह गई है। वरिष्ठ इतिहासकार राजकिशोर राजे कहते हैं कि मछली का संरक्षण किया जाना चाहिए। नदी में उफान का आकलन होता था।